Tuesday, February 4, 2025

मैंने इंसानी लिबास मे शैतान देखें है

मैंने इंसानी लिबास मे शैतान देखें है

इंसान नहीं मैंने तो हैवान देखें है


डगमगाता रहा ईमान इंसानों का

इंसानी वेश भूषा मे बेमान देखें है


लूट रहा है इंसान ही बस्ती इंसानों की

इन्सानों से ही मैंने इंसान पशेमान देखें है


ढूंढ रहा था कूँचों मे भगवान को

दैर-ओ-हरम के नाम पर मैंने श्मशान देखें है


कौन करेगा पछतावा अपने कर्मों का

इबादत पर ही होते मैंने इंतेकाम देखें है


इल्म है उस्तादों को, इबादत का

उन काजी के हाथों मे मैंने जंगी समान देखें है


लिबास ओढ़े खुतबा दे रहे थे खुदा पर, “भूपेंद्र” जो

जुबां से मैंने उनकी, निकलते खूनी फरमान देखें है


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