विषय: “शिक्षक द्वारा पिटाई – बुराई या भलाई?”
माननीय प्रधानाचार्य, आदरणीय शिक्षकों और मेरे प्रिय साथियों,
आप सबको मेरा सादर प्रणाम।
आज मैं एक ऐसे विषय पर बोलने जा रहा हूँ जो हम सबके व्यवसायिक जीवन से जुड़ा है – क्या शिक्षक द्वारा पिटाई बुराई है या भलाई?
मित्रों! महाभारत हमें सिखाती है कि जब कोई अपने मार्ग से भटक जाए तो गुरु या मार्गदर्शक का कर्तव्य है कि वह उसे सही राह दिखाए। श्रीकृष्ण ने भी अपने ही बुआ के पुत्र शिशुपाल को दंड दिया, क्योंकि बार-बार चेतावनी के बाद भी वह अपनी गलती से नहीं माना। उसी तरह दुर्योधन को भी दंड मिला, क्योंकि उसने अन्याय और अहंकार का रास्ता चुना।
अब मैं आपसे पूछना चाहता हूँ –
अगर कोई छात्र बार-बार गलती करे, प्यार से समझाने पर भी न माने, तो क्या उसकी गलतियों को हमेशा अनदेखा किया जा सकता है?
यहाँ पर उपस्थित सभी शिक्षक का उत्तर शायद नहीं ही होगा।
प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था में दीक्षा का अर्थ था कठोर अनुशासन। वहाँ पिटाई का उद्देश्य केवल दर्द देना नहीं था, बल्कि अहंकार तोड़ना और एकाग्रता लाना था। गुरु का डंडा प्रेम और शिक्षा का प्रतीक था।
लेकिन आज के वर्तमान पारिदृश्य मे यह सवाल उठना सवभाविक है कि –
क्या पिटाई आज भी अधिगम (Learning) का मार्ग हो सकती है?
मनोविज्ञान कहता है कि कभी-कभी पिटाई reinforcement का कार्य कर सकती है – जब बच्चा बार-बार गलती दोहराता है और बाकी सभी उपाय विफल हो जाएँ। उस समय एक हल्का अनुशासनात्मक दंड उसे चेतावनी का काम दे सकता है। लेकिन शर्त यह है कि यह पिटाई गुस्से की नहीं, बल्कि प्रेम की हो।
जैसे किसी ने कहा है –
- “गुरु का दंड तभी सार्थक है, जब उसमें करुणा छिपी हो।”
- परंतु अगर पिटाई अपमानजनक हो, बार-बार हो या केवल शिक्षक की झुंझलाहट का परिणाम हो, तो इसके परिणाम बहुत नकारात्मक होते हैं –
- बच्चा पढ़ाई से दूरी बनाने लगता है,
- आत्मविश्वास खो देता है,
- और कभी-कभी विद्रोही भी हो जाता है।
तो साथियों, असली प्रश्न यह है कि — पिटाई कैसी होनी चाहिए?
उत्तर है – ऐसी पिटाई जो शारीरिक कम और मानसिक चेतावनी अधिक हो।
एक हल्की सज़ा, जो यह संदेश दे कि गलती सुधारनी है, न कि यह कि तुम निकृष्ट हो।
अब अंतिम कुछ पंक्तियों के साथ मे अपनी वाणी को विराम देना चाहूँगा।
डर से अनुशासन तो मिल सकता है,
पर प्रेम से चरित्र गढ़ा जाता है।
डंडे से कदम रुक सकते हैं,
पर संवाद से सपनों को दिशा मिलती है।
उम्मीद करता हूँ कि, मेरे द्वारा दिया गया भाषण आप सभी के लिए ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा और यहाँ पर उपस्थित सभी श्रोता इस सीख को अपने जीवन मे आत्मसात करने का प्रयास करेंगे।
मुझे धैर्यपूर्वक सुनने के लिए आप सभी का तह दिल आभार।