सामाजिक-भावनात्मक अधिगम (SEL) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें छात्र अपने भावनाओं को समझना, नियंत्रित करना, दूसरों के साथ सहानुभूति रखना, सकारात्मक संबंध बनाना और ज़िम्मेदारी से निर्णय लेना सीखते हैं। यह न केवल उनके शैक्षणिक विकास के लिए बल्कि उनके संपूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए भी बेहद आवश्यक है। आज इस लेख के माध्यम से हम समझेंगे कि सामाजिक-भावनात्मक अधिगम (SEL) क्या है। और सामाजिक-भावनात्मक अधिगम (SEL) के विकास मे स्कूल और माता-पिता कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
सामाजिक-भावनात्मक अधिगम के महत्व:
आत्म-चेतना (Self-awareness):
छात्र अपनी भावनाओं, मूल्यों और आत्मविश्वास को पहचानना सीखते हैं। इससे उन्हें खुद को बेहतर समझने और सकारात्मक आत्म-छवि विकसित करने में मदद मिलती है।
आत्म-नियंत्रण (Self-management):
यह छात्रों को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने, तनाव से निपटने और लक्ष्यों को पाने के लिए प्रेरित रहने में मदद करता है।
सामाजिक जागरूकता (Social awareness):
छात्र दूसरों के दृष्टिकोण और भावनाओं को समझना और उनका सम्मान करना सीखते हैं। यह विविधता को स्वीकारने और सहानुभूति विकसित करने में सहायक होता है।
संबंध निर्माण कौशल (Relationship skills):
यह छात्रों को अच्छे संचार, सहयोग और संघर्ष समाधान के कौशल सिखाता है, जिससे वे मजबूत और सकारात्मक संबंध बना पाते हैं।
उत्तरदायी निर्णय लेना (Responsible decision-making):
छात्र सोच-समझ कर नैतिक और सामाजिक रूप से उचित निर्णय लेना सीखते हैं, जिससे वे अपने और दूसरों के लिए बेहतर विकल्प चुन पाते हैं।
सामाजिक-भावनात्मक अधिगम(Social Emotional Learning - SEL) के विकास में स्कूल के साथ-साथ माता-पिता भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। और सकारात्मक भूमिका निभाते है।
स्कूल की भूमिका:
सकारात्मक वातावरण प्रदान करना:
स्कूल ऐसा माहौल तैयार करे जहाँ छात्र खुद को सुरक्षित, सम्मानित और स्वीकार महसूस करें।
SEL को पाठ्यक्रम में शामिल करना:
विद्यालयों को SEL को पढ़ाई के साथ जोड़ना चाहिए, जिससे बच्चे रोज़मर्रा की कक्षा में ही भावनात्मक शिक्षा पा सकें।
शिक्षकों का प्रशिक्षण:
शिक्षकों को SEL की रणनीतियों का प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि वे छात्रों के व्यवहार और भावनाओं को सही दिशा में मोड़ सकें।
समूह गतिविधियाँ और चर्चा:
छात्रों के बीच सहयोग, संवाद और सहानुभूति बढ़ाने के लिए गतिविधियाँ आयोजित की जानी चाहिए, जैसे कि भूमिका निभाने वाले खेल, समूह चर्चा आदि।
मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना:
परामर्शदाता (counselors) और शिक्षक मिलकर बच्चों की मानसिक समस्याओं को समय रहते पहचानकर उन्हें सहयोग दे सकते हैं।
माता-पिता की भूमिका:
भावनाओं को समझने में मदद करना:
माता-पिता को बच्चों की भावनाओं को मान्यता देनी चाहिए और उन्हें सही शब्दों में व्यक्त करना सिखाना चाहिए।
घर में सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करना:
बच्चे बड़ों के व्यवहार की नकल करते हैं, इसलिए माता-पिता को सहानुभूति, धैर्य और सम्मान दिखाने की आवश्यकता है।
खुले संवाद को बढ़ावा देना:
बच्चों को अपने विचार और भावनाएँ खुलकर व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें।
नियम और अनुशासन सिखाना:
प्रेमपूर्वक अनुशासन और ज़िम्मेदारी सिखाना SEL का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
स्कूल के साथ समन्वय:
माता-पिता को नियमित रूप से स्कूल से संपर्क में रहना चाहिए और बच्चे के सामाजिक-भावनात्मक विकास में स्कूल का सहयोग करना चाहिए।