मैंने इंसानी लिबास मे शैतान देखें है
इंसान नहीं मैंने तो हैवान देखें है
डगमगाता रहा ईमान इंसानों का
इंसानी वेश भूषा मे बेमान देखें है
लूट रहा है इंसान ही बस्ती इंसानों की
इन्सानों से ही मैंने इंसान पशेमान देखें है
ढूंढ रहा था कूँचों मे भगवान को
दैर-ओ-हरम के नाम पर मैंने श्मशान देखें है
कौन करेगा पछतावा अपने कर्मों का
इबादत पर ही होते मैंने इंतेकाम देखें है
इल्म है उस्तादों को, इबादत का
उन काजी के हाथों मे मैंने जंगी समान देखें है
लिबास ओढ़े खुतबा दे रहे थे खुदा पर, “भूपेंद्र” जो
जुबां से मैंने उनकी, निकलते खूनी फरमान देखें है