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Wednesday, June 18, 2025

ज़िंदगी मे एक दोस्त तो, ऐसा भी होना चाहिए

ज़िंदगी मे एक दोस्त तो, ऐसा भी होना चाहिए

जिसके पास हर दर्द के लिए एक मरहम होना चाहिए

कर सको अपने मन की बात जिससे  तुम

काँधे मे सिर रख, उसके रो सको तुम

दूर हो, फिर भी दूरी का एहसास न हो

मौन हो अधर, लेकिन प्यासे जज़्बात न हो

अंदर की व्यथा को वो जान ले 

हंसी के पीछे छिपे आँसुओ को पहचान ले,

रूह की माफिक साथ खड़ा नज़र वो आए 

वक़्त की आंधियों में वो साथ निभाए,

भूपेंद्र रावत 

Monday, June 9, 2025

कदमो की मदद से लांघा है, पहाड़ों की सबसे

मैंने देखा है, पहाड़ों को

और अपने अदने से 

कदमो की मदद से 

लांघा है, पहाड़ों की सबसे 

ऊंची चोटियों को

धरातल से जुड़े हुए,

घाटी बनाते, तथा ऊबड़-खाबड़

रास्ते भी, नहीं तोड़ पाये 

कभी जज़्बा मेरा

लेकिन, पहाड़ की सबसे ऊंची 

चोंटीयां भी नहीं छू पाई

कभी आसमां  को ,

बल्कि, उन्हें भी छिपना पड़ा

बादलों की ओंट मे

गुजरते वक़्त के साथ 

कमजोर होते पहाड़

झुके, और भूस्खलन के रूप मे

आखिर मिल गए धरातल मे   

      

Thursday, May 8, 2025

अंत होगा दुनिया का लुप्त होती मानवता के

अंत होगा दुनिया का 

लुप्त होती मानवता के 

अंत के पश्चात

और इस अंत के साथ 

शुरुआत होगी 

भावनाओं से रहित 

रोबोट युग की

इस आर्टिफिशियल दुनिया मे 

जब नहीं होगा,

मानवता का अस्तित्व, 

बस शेष रहेगा इतिहास

पन्नों और अजायबघरों में


रोबोटों की दुनिया में, 

नहीं होगी भावना

नहीं होगा प्रेम, 

नहीं होगी करुणा

केवल होगी मशीनें, 

जो करेंगी काम

बिना थके, बिना रुके.


क्या होगा मानवता का भविष्य?

क्या होगा हमारे अस्तित्व का परिणाम?

क्या हम खो जाएंगे 

होमो सेपियंस की भाँति

इस आर्टिफिशियल दुनिया में?

या हम ढूंढ पाएंगे अपना स्थान?


मानवता को बचाने के लिए

ढूँढने होंगे,

इन सवालों के जवाब, 

मानव को

आर्टिफिशियल दुनिया में, 

हमें बनाना होगा अपना रास्ता

और करने होंगे प्रयास

मानवता को बचाने के लिए, 

ताकि हम बचा सकें 

अपना अस्तित्व

रोबोट की दुनिया में।

Friday, April 25, 2025

मेरी हर सांस की, माँ शुरुआत हो तुम

 मैं जो भी हूँ, जहाँ भी हूँ 

उसकी बुनियाद हो तुम

मेरी हर सांस की, 

माँ शुरुआत हो तुम


माँ, तुम्हारी अंगुली पकड़ कर मैने पहली बार चलना सीखा

हर गिरते क़दम पर माँ,मैंने संभलना सीखा


मेरे सपनों की रखवाली कर 

माँ रातों की नींद तुमने त्यागी

अपना निवाला देकर मुझको

भूखी, प्यासी तुम कई रात जागी


तुमने न सिर्फ जन्म दिया, 

बल्कि जीना भी सिखाया है

हर दर्द और डर को

अपने आँचल मे छुपाया है


माँ, तुम सिर्फ एक शब्द नहीं

एक पूरी किताब हो

संघर्षों की गाथा मे माँ तुम एक विश्वास हो


इस धरा पर ईश्वर ने

एक सच्ची मूर्त बनाई

माँ के वजूद मे ही तो

ईश्वर की परछाई समाई

Wednesday, April 23, 2025

"मज़हब के नाम पर"

ये पहली बार नहीं, 

आतंकियों ने जब 

बेगुनाहों को मारा है। 

क्या, वो कोई पैगंबर है?

निर्दोषों को जो 

मौत के घाट उतारा है।

ये कायराना हरकत है,जो 

निहत्थों पर वार किया

मज़हब का रखवाला बन 

मज़हब को अपने शर्मसार किया। 

कौन सी शिक्षा मज़हब की तुम

धरा पर फैलाने आए थे। 

निर्दोषों को मारा तुमने 

कलंक मज़हब पर लगाए थे।

माना खुदा के बंदे हो तुम 

खुदा के परवदिगार हो 

क्या, अपने मज़हब के तुम 

इकलौते पहरेदार हो?

शांतिदूत हो तुम खुदा के 

क्या, मज़हब तुम्हारा हथियार है?

मौत के घाट निर्दोषों को उतारना 

क्या, तुम्हारा व्यपार है?


     


Thursday, March 6, 2025

सेवानिवृत हो गए बापू जी अपने कार्य से परंतु वह नहीं हुए सेवानिवृत अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों से

सेवानिवृत हो गए 

बापू जी अपने कार्य से

परंतु वह नहीं हुए सेवानिवृत 

अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों से



कर्तव्यों के बोझ तले 

बापू जी के कन्धों मे है जिम्मेदारियां, 

बूढ़े हो चुके माता - पिता की 

वर्षों पूर्व ब्याह के लायी गयी माँ की

और अपने सपने त्याग कर 

बच्चों के सपनों को पंख देने की

अपने लिए नहीं मिला समय 

बापू जी को कभी 

चेहरे की शिकन पर उन्होंने 

ओढ़ ली हंसी की चादर

जिम्मेदारियों के दरिया मे डूबे हुए

बापू जी ने नहीं होने दिया 

एहसास गहराइयों का

उन्होने जीवन मे 

कभी नहीं मानी हार

बापू जी हमेशा खड़े रहे 

पहाड़ की तरह

Wednesday, March 5, 2025

युद्ध और शांति

 युद्ध और शांति


युद्ध नहीं होते शांति के प्रतीक,

ना ही युद्ध से मिलती है शांति।

बल्कि युद्ध तब्दील कर देते है,

शोर को मौन मे 

शहर तब्दील हो जाते है, 

श्मशान मे 

जहाँ कभी गूंजती थी हँसी,

वहाँ शेष रह जाता है 

मलबा और अवशेष, 

सभ्यताओं का मिट जाता है, 

नामोनिशान,

इसके साथ  ही लुप्त हो जाती है,

सभ्यताएं 

बस शेष रह जाती है

जलती हुई लपटें 

धधकती हुई राख की चादर के साथ।

चारों ओर बिछ जाती है लाशें और 

शहर बदल जाते हैं, 

श्मशान में, 

और फिर मुर्दा के टीले मे  

जन्म लेती है, ख़ौफ़नाक शांति  


भूपेंद्र रावत 

Friday, February 14, 2025

हार तब नहीं होती, जब हार जाते है

हार तब नहीं होती, 

जब हार जाते है 

बल्कि हार तब होती है, 

जब हार मान जाते है। 

निराश हो कर 

हार मान जाना 

सफलता के रास्ते 

बंद कर देता है

सपने और लक्ष्यों को 

मंझधार मे छोड़ देता है

हार मानने से पहले 

पुनः प्रयास करो

आशावादी बनो और 

अभ्यास करो    




भूपेंद्र रावत 

 


Thursday, February 13, 2025

हार मान जाओगे तो जीतोगे कैसे?

हार मान जाओगे तो 
जीतोगे कैसे?
किताब अपनी किस्मत की 
लिखोगे कैसे?
प्रयास करने पर ही तो 
द्वार सफलता का खुलता है 
किस्मत वालों का नहीं 
मेहनत करने वालों का
भाग्य बदलता है
प्रयास अगर 
विफल हो भी जाये तो, 
संयम रखना होता है 
राह के कांटो को कुचल
आगे चलना होता है 
हार अंतिम 
परिणाम नहीं 
स्वीकार करों
उठो और अंतिम 
सांस तक प्रयास करों 

भूपेंद्र रावत 

 

Wednesday, February 12, 2025

खुशी और गम के साथ मैंने जिया है, जीवन को

खुशी और गम के साथ 
मैंने जिया है, जीवन को

गम के दिनों से 
मैं हुआ रूबरू
हँसते हुए,
जीवन की चुनौतियों से 
मैंने नहीं मानी हार 
बल्कि मैंने ज़िंदगी के 
हर पल का उठाया 
भरपूर लुत्फ 
जीने की, कि कोशिश 


जीवन की राह पर 
मैंने देखें कई मोड
नकाब ओढ़े हुए 
और बदलते हुए 
चेहरे के साथ  
लेकिन नहीं मानी
मैंने हार 

आशाओं से भरे 
जीवन मे 
मैंने सीखा 
ज़िंदगी को जीना
क्योंकि मुझे पता था 
अभी बहुत कुछ 
है शेष, जीवन में  

Tuesday, February 11, 2025

पुरुष जो मंडराते रहे भौरों की तरह हर एक स्त्री पर

पुरुष जो मंडराते रहे 

भौरों की तरह 

हर एक स्त्री पर, 

उनकी नज़रे चिपकी रहती है 

स्त्री की हर अदा पर 



वे स्त्री के पास मंडराते है 

जैसे भौरें  फूलों के आसपास,

उनकी बातें मीठी और मधुर होती है 

लेकिन उनके इरादे क्या होते है?

क्या उनके इरादे होते है, प्रेम के? 

क्या वे स्त्री का सम्मान करते है?

या बस अपने स्वार्थ के लिए

या  फिर शारीरिक संतुष्टि के लिए 

करते है उनका उपयोग ?


स्त्री को सावधान रहना चाहिए 

ऐसे पुरुषों से 

जो मंडराते रहते है

उनके इर्द-गिर्द 

उनकी नज़रों मे 

छुपा होता है 

एक खतरा जो 

पहुंचा सकता है

नुकसान स्त्री को। 


 

भूपेंद्र रावत 

Sunday, February 9, 2025

मैंने देखा है विशाल पर्वतों को सूक्ष्म होते हुए।




मैंने सुना है, बुजुर्गों से 

पहाड़ नहीं होते बूढ़े 

वो कल भी अटल थे 

आज भी अटल है 

और भविष्य मे भी ऐसे ही रहेंगे 

लेकिन मैंने महसूस की है 

उजड़ते हुए पहाड़ की पीड़ा 

कभी नहीं देखा मैंने 

खोखले होते पहाड़ को चीखते

और चिल्लाते हुए 

बल्कि मैंने देखा है उन्हें   

भूस्खलन के रूप मे 

नीचे खिसकते हुए

समतल बनते हुए 

मैंने देखा है 

विशाल पर्वतों को 

सूक्ष्म होते हुए।  

 



भूपेंद्र रावत 


 

दुनिया के शोर से दूर

दुनिया के शोर से दूर 
एकांत जरूरी है। 
मन की शांति के लिए 
स्वयं को समझने के लिए 
कमियों को दूर करने के लिए 
क्योंकि,
एक दिन की तपस्या से 
नहीं बना कोई बुद्ध, और विवेकानंद 
बल्कि भौतिक जीवन को 
त्याग कर, जिन्होने भी 
अपनाया एकांत 
उन्हें प्राप्त हुआ दिव्य ज्ञान  




भूपेंद्र रावत 

Saturday, February 8, 2025

दुनिया की शुरुआत हुई थी, शून्य से

दुनिया की 
शुरुआत हुई थी, 
शून्य से 
धीरे-धीरे बदलाव के साथ 
विकसित होती गयी, दुनिया और 
विकास की हर एक सीढ़ी पर 
दस्तक दी, विनाश ने 


धीरे-धीरे लुप्त होते गए 
वन्य-जीव 
और उनकी 
अस्थियों को रखा गया 
संग्रहालय मे 
वृक्ष काटने की श्रंखला मे 
लुप्त होते गए जंगल
अस्तित्व मे आई   
"मानव सभ्यता" और 
मानव बस्तियां,
समय के साथ होते बदलाव मे
जो नहीं कर सकें समायोजन  
धीरे-धीरे वो होते गए लुप्त   
शेष रह गयी 
जो मानव प्रजातियां
उसे नाम दिया गया 
"होमो सेपयंस" और 
उनके वंशज 
हर एक बदलाव और 
मानव प्रजातियों 
के दस्तावेजों को 
पुन: रखा गया 
संग्रहालयों मे  
लेकिन फिर से शून्य होती 
दुनिया के दस्तावेजों 
के लिए कौन 
बनाएगा "संग्रहालय" 

Thursday, February 6, 2025

स्त्री जिन्होने निस्वार्थ

स्त्री जिन्होने निस्वार्थ

प्रेम किया पुरुष से

समर्पित कर दिया

स्वयं के जीवन को

उनकी दास्तां को

रखा गया अमर

उनमे से कुछ बनी मीरा,

तो कुछ यशोधरा,

तथा कुछ को जाना गया

राधा के नाम से

परंतु जिन स्त्रियों  ने

बाहरी मोह मे

त्याग दिया स्त्री के

स्त्रीत्त्व और ममत्व को

अपने प्रेम से

ज्यादा तवज्जो दी

भौतिक सुख,

अपने स्वार्थ को

उनके लिए निजात हुआ

एक नया शब्द

उनके व्यक्तित्व को

परिभाषित करने के लिए

जरूरत पड़ी

उपसर्ग “बे” की

जिसे जोड़ा गया

“वफा” से पूर्व

और इस तरह बनी

“बेवफ़ा”


Sunday, February 2, 2025

मान दे माँ, सम्मान दे माँ

मान दे माँ, सम्मान दे माँ 
सृष्टि को वरदान दे माँ
दर पर तेरे बैठे, हम सब
हे, वाणिश्वरी, 
जीवन को हमारे 
तान दे माँ
हे, आदिशक्ति, ज्ञान की देवी
ज्ञान का भंडार दे माँ
तिमीर फैला है चारों ओर
हे, बुद्धिदात्री
ज्ञान की ज्योति का उपहार दे माँ
मूर्ख को विद्वान बना दे 
हे, वरदायनी
समस्त जग को ऐसा वरदान दे माँ 
शिवानुजा, मुरारी वल्लभा, तुम कहलाती
चारों ओर तुम हो समाती
प्रज्वालित तुम ज्ञान का दीपक कर जाती
जग को तुम ही चलाती.


भूपेंद्र रावत 




Saturday, February 1, 2025

तुमने, अश्रु तो छिपा लिए

तुमने, अश्रु तो छिपा लिए 

लेकिन, ज़ख्म कैसे छिपाओगे 

मिश्री जैसी वाणी से 

मरहम कैसे लगाओगे?

कटाक्ष किया था तुमने जो  

वो घाव बहुत ही गहरा है 

विष जो फैला है, मन मे 

उसकी औषधि, कहाँ से लाओगे? 

डोर रिश्तों की कोमल है 

रिश्ते मे पड़ी गांठ को 

क्या, तुम खोल पाओगे?

बिखरे मोती माला के 

कहाँ से समेट कर लाओगे ? 

Thursday, January 23, 2025

सफलता.......प्रयासों का अंतिम परिणाम


सफलता चूमती है, 

उनके कदमों को 

जिन्होने किए है, प्रयास 

एक नहीं, दो नहीं 

बल्कि, उस अंतिम पायदान तक 

जहाँ असफलताओं ने 

मान ली हार और 

कांटो से भरे उस सेज़ में 

सजा दिये पुष्प 

कुछ प्रयास करने के पश्चात 

जिन मुसाफिरों ने 

मान ली हार और 

उस परिणाम को ही 

मान लिया, अंतिम परिणाम

उन लोगों के लिए "अ" उपसर्ग ने 

शब्द के साथ जुड़कर 

सफलता का अर्थ 


कर दिया असफलता 

किस्मत के भरोसे 

बैठकर उन लोगों ने 

लगा दिये अपनी 

किस्मत के ताले 

Tuesday, January 21, 2025

बुढ़ापा एक संघर्ष

 कौन रखेगा ख्याल 

बुजुर्ग होते उन लोगों का

जिनकी संतान ने 

अपनी मजबूरी गिना कर 

छोड़ दिया साथ

अपने बुजुर्ग माता पिता का

और छोड़ दिया 

उन्हें, उनके हालातों पर

पाई - पाई जोड़ कर 

जिन्होंने लगा दी थी

अपनी उम्र भर की कमाई

संतानों की परवरिश पर

कर दिये थे, खाली 

अपने सेविंग एकाउंट 

बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की 

कामना हेतू

शायद वो अनभिज्ञ थे, 

इस बात से कि

बुजुर्ग होते ही दूसरी ओर

कर रहा है 

उनका इंतज़ार,"अंधेरा"

जो उन्हें बना देगा मोहताज़


जीवन के इस कडवे सत्य ने

उन्हें परिचित करवाया

उन अन्छुए पहलुओं से

जो उनकी कल्पना से थे परे.

दिव्यांगता (Divyangta) का अर्थ और भारतीय कानून के अनुसार इसके प्रकार

दिव्यांगता (Divyangta) का अर्थ और भारतीय कानून के अनुसार इसके प्रकार  दिव्यांगता (Divyangta) का अर्थ है—किसी व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, बौद...