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Wednesday, July 2, 2025

अब प्यार नहीं जताता कोई अब गले नहीं लगाता कोई

 अब प्यार नहीं जताता कोई

अब गले नहीं लगाता कोई


आ गए है उम्र के उस पड़ाव पर

अब अपना नहीं बनाता कोई


ये कैसी कश्मकश है मन के अंदर

अब ज़िया नहीं जलाता कोई


प्यार तो अब भी है दरमियाँ

अब वैसे नहीं जताता कोई


इस क़दर उलझ गए है जीवन के चक्रव्यूह में

महफिल मे भी तन्हा रह जाता है कोई



Thursday, June 19, 2025

नजाने किस पथ पर, चला जा रहा हूँ

 नजाने किस पथ पर, चला जा रहा हूँ

शायद कदमों को अपने, छला जा रहा हूँ

ना मंज़िल है अपनी, ना कोई ठिकाना

दाएं - बाएँ करता है, मुझे सारा ज़माना

रुक कर पथ पर, मैं बाट खोजता हूँ

आगे चलता हूँ तो, मैं फिर सोचता हूँ

चारों ओर देख कर, खुद को खरोंचता हूँ

सोचता हूँ, मंज़िल कहाँ है अपनी

चल चल कर क़दम भी अब हो गए जख्मी

नाजाने जीवन मे कैसा भ्रम है पाला

भ्रमित है जीवन, मृगतृष्णा का जाला

Monday, June 2, 2025

"पलायन"

पहाड़  हो गए खोखले,  

उनमे शेष रह गया एक जोड़ा, 

जो  ब्याह के लाया गया था, वर्षों पूर्व 

उन्होने सँजोये थे सपने 

पहाड़ को सुंदर बनाने के 

उन्होंने रचाए थे रंग

पहाड़ की मिट्टी में,

सजाया था हर पत्थर

अपनी उम्मीदों की बुनियाद से।

लेकिन वो अनभिज्ञ थे 

भविष्य के सत्य से, 

जहाँ सपनों की जड़ें

सूख जाती हैं 

बेरहम समय के सामने।

शहरों ने छीन लिए

उनके आंगन के गीत,

काम, शिक्षा, और इलाज के बहाने

पलायन कर गए उनके बीज।

उनके टूटते सपने बिखर कर 

पलायन करते रह शहरों की ओर 

काम, शिक्षा और चिकित्सा की तलाश मे, 

खेत हुए बंजर,

पानी ने छोड़ा साथ,

खेत मे शेष रह गयी 

दो सूखी टहनियाँ 

उन बुजुर्ग जोड़े की तरह 

जो अब भी देखता है 

पहाड़ों की ओर

एक नई सुबह की आस में।


भूपेंद्र रावत 

Thursday, May 29, 2025

पिता — जीवन का आधार

अंगुली पकड़कर पिता ने  चलना सिखाया,

हर ठोकर पर आगे बढ़ना सिखाया।

कंधों पे बिठा कर दुनिया को दिखाया,

हर डर को हंसी के साथ हरना सिखाया।


धूप में छाँव बने वो दरख़्त जैसे,

खुद दीपक जैसे जलकर, 

हमारे जीवन को जगमगाया । 

हर ज़िम्मेदारी को उन्होने हँसकर है निभाया,

हमारी खातिर उन्होने 

अपने सपनों को भी भुलाया।


बचपन की किलकारियों में जिनकी हँसी थी,

हर जीत में जिनकी आँखों में नमी थी।

खामोश रहकर भी बहुत कुछ कह जाते थे,

पिता... शब्दों से नहीं, अपने कर्मों से निभाते थे।


न वो कभी स्नेह जताते, न वो शिकायत करते थे,

लेकिन हर मोड़ पर हम में संबल भरते थे।

उनके कदमों के निशान ने ही तो हमें, 

हर मुश्किल से उबरना सिखाया।

जीवन की डगर में उन्होने हमें चलना सिखाया। 


पिता फ़क़त एक शब्द नहीं, 

जीवन का सार है। 

पिता हमारे जीवन का आधार है 

पिता में ही तो समाया समस्त संसार है। 



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