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Tuesday, April 22, 2025

ऑफिस पॉलिटिक्स (Office Politics) हर कार्यस्थल पर एक आम समस्या

आजकल ऑफिस पॉलिटिक्स (Office Politics) हर कार्यस्थल पर एक आम समस्या बन चुकी है, और यह ना सिर्फ काम के माहौल को बिगाड़ती है बल्कि व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकती है। आइए इस लेख के माध्यम से इसे विस्तार से समझते हैं:

ऑफिस पॉलिटिक्स क्या है?

ऑफिस पॉलिटिक्स का मतलब है—ऐसा व्यवहार या गतिविधियाँ जो कार्यस्थल पर किसी व्यक्ति या समूह को फायदा, या फिर दूसरों की हानि पहुंचाने के उद्देश्य से की जाती हैं। इस तरह के व्यवहार आमतौर पर शक्ति, प्रभाव, पद, या मान्यता पाने के लिए किया जाता है।

इसमें शामिल हो सकते हैं:

  • चुगली करना (Backbiting)
  • दूसरों की सफलता को दबाना
  • ज़रूरत से ज़्यादा बॉस की चापलूसी
  • जानबूझकर किसी की गलती उजागर करना
  • किसी के खिलाफ माहौल बनाना

ऑफिस पॉलिटिक्स के दुष्परिणाम: ऑफिस मे इस तरह के नकारात्मक वातावरण  के कारण इसका प्रभाव  कर्मचारियों के मानसिक,और  शारीरिक स्वास्थ्य  के साथ उनकी Productivity पर भी देखने को मिलता है। इसके अतिरिक्त ऑफिस पॉलिटिक्स के मुख्य दुष्परिणाम इस प्रकार है।   

  • काम में मन न लगना
  • आत्मविश्वास में कमी
  • टीम वर्क में बाधा
  • मानसिक तनाव और निराशा
  • योग्य व्यक्ति का हतोत्साहित होना

ऑफिस पॉलिटिक्स से निपटने के उपाय:

1. पेशेवर (Professional) बने रहें

  • अपनी बातों और व्यवहार में हमेशा शालीनता रखें।
  • किसी के बहकावे में न आएं और न ही बेवजह किसी विवाद में पड़ें।

2. गॉसिप से दूरी बनाए रखें

  • ऑफिस में होने वाली चुगली या अफवाहों में भाग न लें।
  • यदि कोई आपके पास आकर किसी की बुराई करता है, तो उस चर्चा को बढ़ावा न दें।

3. अपने काम पर फोकस करें

  • अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाएं।
  • आपका काम ही आपकी पहचान बनाता है।

4. स्मार्ट तरीके से संवाद करें

  • जब भी किसी कठिन स्थिति का सामना हो, शांत रहकर और तथ्यों के आधार पर बात करें।
  • बातों को भावनात्मक नहीं, तार्किक ढंग से रखें।

5. सभी से संतुलित व्यवहार रखें

  • किसी एक ग्रुप में न फँसें, सभी के साथ विनम्रता से पेश आएं।
  • ऑफिस फ्रेंडशिप हो, लेकिन प्रोफेशनल सीमाएँ भी स्पष्ट हों।

6. अपना नेटवर्क बनाएं

  • अपने जैसे सकारात्मक और भरोसेमंद लोगों से जुड़ें।
  • इससे आपको मानसिक समर्थन भी मिलेगा और पॉलिटिक्स से निपटना आसान होगा।

7. सीनियर या एचआर से बात करें (यदि मामला बढ़ जाए)

अगर किसी की गतिविधियाँ आपको बार-बार नुकसान पहुँचा रही हैं, तो उचित तरीके से सीनियर या HR से बातचीत करें।

निष्कर्ष:

ऑफिस पॉलिटिक्स को पूरी तरह से रोकना मुश्किल हो सकता है, लेकिन समझदारी, संयम और प्रोफेशनल रवैये से आप इससे सुरक्षित रह सकते हैं। सबसे ज़रूरी है—खुद को सही बनाए रखना, भले ही परिस्थिति कितनी भी गलत क्यों न हो।


Tuesday, March 11, 2025

बच्चों के आक्रामक व्यवहार: कारण और समाधान

परिवर्तन संसार का नियम है, कई बार यह परिवर्तन समाज को सही मार्ग की ओर अग्रसर करता है तो कई बार इसका दुष्प्रभाव समाज मे देखने को मिलता है। आज हम इस लेख के माध्यम से बच्चों के व्यवहार मे होने वाले   नकारात्मक परिवर्तन की बात करने जा रहे है। बच्चों में आक्रामक (Aggressive) या हिंसक (Violent) व्यवहार आजकल एक आम चिंता का विषय बन गया है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत विकास बल्कि उनके सामाजिक और पारिवारिक संबंधों पर भी प्रभाव डाल सकता है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारक शामिल हैं।




बच्चों में आक्रामकता के मुख्य कारण:

1. पारिवारिक वातावरण

✅ परिवार में तनाव: माता-पिता के बीच झगड़े, तलाक, या घरेलू कलह का बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

✅ अत्यधिक अनुशासन या लापरवाही: बहुत ज्यादा सख्ती करने या बच्चे को पूरी तरह आज़ाद छोड़ देने से वे विद्रोही हो सकते हैं।

✅ माता-पिता का आक्रामक व्यवहार: यदि माता-पिता खुद गुस्सैल या हिंसक हैं, तो बच्चा भी उसी व्यवहार को सीख सकता है।

2. डिजिटल मीडिया और हिंसक कंटेंट

✅ वीडियो गेम और टीवी शो: हिंसक वीडियो गेम, कार्टून और वेब सीरीज़ देखने से बच्चे आक्रामक व्यवहार की नकल कर सकते हैं।

✅ सोशल मीडिया का प्रभाव: साइबर बुलिंग या ऑनलाइन नकारात्मक कंटेंट देखकर बच्चे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो सकते हैं।

3. भावनात्मक और मानसिक कारण

✅ भावनाओं को सही से व्यक्त न कर पाना: कई बच्चे अपनी नाराजगी या दुःख को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते और गुस्से के रूप में प्रतिक्रिया देते हैं।

✅ असुरक्षा की भावना: जब बच्चे को पर्याप्त प्यार और ध्यान नहीं मिलता, तो वे आक्रामक हो सकते हैं।

✅ तनाव और दबाव: पढ़ाई, प्रतिस्पर्धा, या सामाजिक अपेक्षाओं के कारण वे चिड़चिड़े हो सकते हैं।

4. हार्मोनल और जैविक कारण

✅ हार्मोनल बदलाव: किशोरावस्था में टेस्टोस्टेरोन और एड्रेनालिन हार्मोन बढ़ने से गुस्सा जल्दी आ सकता है।

✅ मस्तिष्क में असंतुलन: कुछ न्यूरोलॉजिकल कारण, जैसे ADHD (Attention Deficit Hyperactivity Disorder), भी आक्रामकता का कारण बन सकते हैं।

5. सामाजिक प्रभाव और संगति

✅ गलत संगति: यदि बच्चे के दोस्त आक्रामक हैं, तो वह भी वैसा ही व्यवहार अपना सकता है।

✅ समाज में बढ़ती हिंसा: समाचारों, फिल्मों और सोशल मीडिया के माध्यम से हिंसा देखने से बच्चों में आक्रामकता बढ़ सकती है।

बच्चों के आक्रामक व्यवहार को कैसे सुधारें?

✔️ सकारात्मक पालन-पोषण (Positive Parenting): प्यार और धैर्य के साथ बच्चों को सही दिशा दें।

✔️ भावनात्मक समझ बढ़ाएँ: उन्हें अपनी भावनाएँ खुलकर व्यक्त करने का मौका दें।

✔️ संवाद करें: बच्चों से खुलकर उनकी भावनाओं और समस्याओं पर चर्चा करें।

✔️ मीडिया पर नियंत्रण रखें: हिंसक गेम और कंटेंट देखने से बचाएँ।

✔️ शारीरिक गतिविधियों में लगाएँ: खेल, योग और ध्यान से गुस्से को नियंत्रित किया जा सकता है।

✔️ प्रोत्साहित करें: अच्छे व्यवहार के लिए उनकी सराहना करें और नकारात्मकता को सुधारने की कोशिश करें।

निष्कर्ष

बच्चों में आक्रामकता के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सही मार्गदर्शन और प्यार भरे वातावरण से इसे बदला जा सकता है। माता-पिता, शिक्षक और समाज को मिलकर बच्चों की मानसिक और भावनात्मक सेहत का ध्यान रखना चाहिए ताकि वे एक संतुलित और खुशहाल जीवन जी सकें। 😊

Monday, January 20, 2025

दम तोड़ते रिश्तों की वजह

रिश्ते अक्सर कच्चे धागे की डोर के समान होते है। अगर रिश्तों की नींव कमजोर हो तो वह रिश्ता अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। भारतीय समाज और संस्कृति की इन रिश्तों की कड़ी मे पति और पत्नी का रिश्ता सभी रिश्तों मे से एक पवित्र रिश्ता माना गया है और यह नाजुक कड़ी के समान होता है। लेकिन मानो आज के भारतीय समाज के रिश्तों को पाश्चत्य स्भ्यता की नज़र सी लग गयी हो। आधुनिक और सव्वालंबी, बनने की इस दौड़ मे आज रिश्ते पीछे छूटते जा रहे है और बच रहा है, एक टूटा परिवार लेकिन,जहाँ एक ओर विवाह से पूर्व कई तरह की जानकारी एकत्रित या छान-बिन की जाती है। उसके बावजूद रिश्ते कुछ ही दिनों या वर्षों मे टूट जाते है। लेकिन इतनी सावधानी बरतने के पश्चात भी आखिरकार, ऐसा क्यों हो रहा है? 

रिश्तों को मजबूत बनाने वाली सबसे मजबूत कड़ी का नाम है "विश्वास" और इस विश्वास की कड़ी को कमजोर बनाता है संदेह करने की बीमारी या आदत। किसी रिश्ते के बीच अगर संदेह उत्पन्न हो जाये तो समय के साथ धीरे धीरे वो रिश्ता कमजोर होने लगता है। जिसकी वजह से रिश्ते एक दूसरे मे बोझ बन जाते है। और उन बोझ से लदे हुए रिश्तों को ज्यादा दूर तक ले जाना सबके लिए मुश्किल हो जाता है। जिसकी वजह से रिश्ते टूट जाते है या फिर समाज को दिखाने के लिए मात्र छलावा बन कर रह जाते है। 

इसके अतिरिक्त रिश्तों मे आपसी सहयोग न होना, गलतफ़हमी, धोखा देना, सहनशील न होना तथा आपस मे बाते न करना आदि भी रिश्ता टूटने के अहम कारणों मे से एक होता है। लेकिन इन सब कारणों के बारे मे पता होने के बावजूद भी अक्सर हम इन सभी को अनदेखा कर देते है और सोचते है कि वक़्त के साथ सभी समस्या और परेशानी का हल अपने आप ही हो जाएगी। लेकिन वास्तविक जीवन मे वक़्त के साथ  ये समस्याएं कम होने के बावजूद बढ़ती जाती है। अगर समय रहते उचित कदम उठा लिया जाये तो रिश्तों को टूटने से बचाया जा सकता है। 

रिश्तों की डोर को मजबूत बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है अपने अहं को त्यागना और एक  दूसरे को समझना, स्वीकार करना और हर एक विषय पर खुल कर बाते करना आदि। बातों से ही हमें सारे प्र्श्नो के जवाब मिल सकते है। कई बार हम प्र्श्नो का बिना जवाब जाने अपनी एक अलग  विचारधारा बना लेते है जिससे  हमारे विचार हमारे रिश्तों पर हावी होने लग जाते है और सिसकिया लेते खोखले रिश्ते दम तोड़ देते है जो अपनी मंज़िल तक  पहुँच नहीं पाते।   



भूपेंद्र रावत  

 

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