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Monday, September 29, 2025

अभिभावक की भूमिका और पी.टी.एम. का महत्व

 अभिभावक की भूमिका और पी.टी.एम. का महत्व


स्कूल नियमित रूप से चल रहे थे। इसी दौरान बच्चों की सीखने की क्षमता का आकलन करने के लिए परीक्षा का आयोजन किया गया। परीक्षा का उद्देश्य केवल अंक देना नहीं था, बल्कि बच्चों की कमियों को पहचानना और उनके अभिभावकों तक उन कमियों को पहुँचाना भी था।


कुछ दिनों बाद जब पी.टी.एम. (Parent Teacher Meeting) का दिन आया तो सभी बच्चों के मन में हल्का-सा डर था कि आज उनके शिक्षक उनके अभिभावकों से शिकायत करेंगे। धीरे-धीरे अभिभावक अपने बच्चों के परिणाम देखने आए। कई अभिभावक अच्छे परिणाम देखकर प्रसन्न हुए और शिक्षकों का धन्यवाद भी दिया।


लेकिन कुछ अभिभावक ऐसे भी थे, जिन्हें अपने बच्चों के कम अंक देखकर आश्चर्य हुआ। वे कहते—

"हम तो बच्चे को रोज ट्यूशन भेजते हैं, घर का कोई काम नहीं करवाते, हर सुविधा उपलब्ध कराते हैं, फिर भी अंक इतने कम क्यों आए?"


शिक्षक उनकी बातें सुनकर हैरान थे, क्योंकि यही वे अभिभावक थे जिन्होंने कभी अपने बच्चे का स्कूल बैग तक नहीं देखा था। बच्चों की पढ़ाई और दिनचर्या में उनकी कोई भागीदारी नहीं थी। ये वे अभिभावक थे जो सिर्फ परिणाम आने पर जागते हैं, जैसे बरसात में मेंढक बाहर आ जाते हैं।


जब शिक्षकों को अपनी बात रखने का अवसर मिला तो उन्होंने कहा—

"क्या आपने कभी अपने बच्चे के स्कूल बैग को देखा है? यह जाना है कि वह रोज क्या काम करता है? क्या केवल पैसे देना ही आपकी जिम्मेदारी है? महंगे स्कूल और ट्यूशन ही समाधान नहीं हैं। बच्चों की भौतिक जरूरतें पूरी करना पर्याप्त नहीं, उन्हें आपके समय, स्नेह और मार्गदर्शन की भी आवश्यकता है।"


सच यह है कि बच्चों के अच्छे परिणाम में जितना योगदान शिक्षकों का होता है, उससे कहीं अधिक भूमिका अभिभावकों की होती है। यदि माता-पिता स्वयं बच्चे की पढ़ाई और दिनचर्या में रुचि लेंगे, तभी उनका भविष्य उज्ज्वल होगा।

छोटी-सी लापरवाही बच्चे के जीवन को गलत दिशा में मोड़ सकती है। और फिर अंत में अभिभावकों के पास किस्मत को दोष देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।


भूपेंद्र रावत

शिक्षक 

संजय गांधी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, लाडवा, कुरुक्षेत्र 

अभिभावक की भूमिका और पी.टी.एम. का महत्व

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