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Tuesday, July 22, 2025

शारीरिक दिव्यांगता: चुनौतियाँ, समाधान और सामाजिक पुनर्वास

 शारीरिक दिव्यांगता: चुनौतियाँ, समाधान और सामाजिक पुनर्वास

शारीरिक दिव्यांगता केवल शारीरिक अंगों की सीमितता नहीं है, बल्कि यह सामाजिक स्वीकृति, अवसरों की समानता और भावनात्मक समर्थन की कमी को भी दर्शाती है। भारत जैसे देश में जहाँ सामाजिक ढांचे में विविधता है, वहाँ शारीरिक रूप से दिव्यांग लोगों को आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए विशेष समर्थन की आवश्यकता होती है।

शारीरिक दिव्यांगता क्या है?

शारीरिक दिव्यांगता (Physical Disability) वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति के शरीर का कोई अंग आंशिक या पूर्ण रूप से कार्य करने में असमर्थ हो जाता है। यह जन्मजात हो सकती है या किसी दुर्घटना, बीमारी या अन्य कारणों से जीवन के किसी भी चरण में हो सकती है।

प्रमुख प्रकार (RPWD Act 2016 के अनुसार):

  • बौनापन (Dwarfism):- यह एक आनुवंशिक या हार्मोनल स्थिति है जिसमें व्यक्ति की लंबाई औसत से बहुत कम रह जाती है। इसमें हड्डियों की वृद्धि प्रभावित होती है।
  • अस्थि बाधित (Locomotor Disability):- हाथ, पैर या रीढ़ की हड्डी में समस्या के कारण चलने-फिरने में असमर्थता।
  • मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy):- यह एक प्रगतिशील बीमारी है जिसमें मांसपेशियाँ धीरे-धीरे कमज़ोर होती जाती हैं।
  • एसिड अटैक पीड़ित (Acid Attack Victim):- किसी रासायनिक हमले के कारण चेहरे या शरीर के अन्य भागों पर स्थायी नुकसान।
  • सेलीब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy):- मस्तिष्क की क्षति के कारण शरीर की गति और संतुलन पर असर पड़ता है।
  • पोस्ट पोलियो / अंग उपयोग में असमर्थता:- पोलियो वायरस या किसी अन्य कारणवश अंगों का पूर्ण उपयोग न कर पाना।

 शैक्षिक पुनर्वास (Educational Rehabilitation):

शिक्षा के स्तर को शत प्रतिशत पाने के लिए हमें समाज के उन सभी वंचित वर्ग को भी साथ लेकर चलना होगा जो कि असुविधाओं और अक्षमता कि वजह से पिछड़े हुए है। शारीरिक दिव्यांग विद्यार्थियों को मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल करना आवश्यक है ताकि वे आत्मनिर्भर और सक्षम बन सकें।

 उपाय और कदम:- दिव्यांग विद्यार्थियों कि शिक्षा को सुनिश्चित करने और उन तक शिक्षा कि पहुँच को सुलभ बनाने के लिए सरकार द्वारा पॉलिसी और योजनाओं का निर्माण किया गया है। जिससे कि उनके  आस पास का  परिवेश उनके लिए बाधा उत्पन्न न करे और वह सरलता से बिना किसी कठिनाई के शिक्षा ग्रहण कर सकें। 

  • समावेशी शिक्षा (Inclusive Education): विशेष जरूरत वाले बच्चों को सामान्य कक्षा में शामिल करना।
  • विशेष शिक्षक (Special Educators): जो उनके लिए अनुकूल शिक्षण विधि अपनाएं।
  • सुलभ भवन और टॉयलेट (Barrier-free Infrastructure): रैंप, एलिवेटर, व्हीलचेयर स्पेस आदि।
  • डिजिटल उपकरणों का सहयोग: टेबलेट, ऑडियो बुक्स, स्पीच टूल्स आदि।

माता-पिता की भूमिका:- किसी भी बच्चे के विकास मे माता-पिता कि भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सबसे पहले यह मयाने करता है कि माता पिता का नजरिया अपने बच्चो के प्रति कैसा है और क्या वह अपने बच्चों कि कमियों को सविकार करते है और उन्हे दूर करने के लिए किस तरह के प्रयास कर रहे है या नहीं। 

  • स्वीकार्यता:- बच्चे की विशेषता को समझें, स्वीकार करें और उसे हतोत्साहित न करें।
  • प्रोत्साहन:- पढ़ाई, कला, खेल—हर क्षेत्र में उसका आत्मविश्वास बढ़ाएं।
  • सामाजिक मेलजोल:- बच्चों को अन्य बच्चों के साथ खेलकूद और बातचीत करने के अवसर दें।
  • सहयोगी बनें:- घर पर अनुकूल वातावरण बनाएं और स्कूल के साथ मिलकर उसकी प्रगति सुनिश्चित करें।

विद्यालयों की भूमिका:- 

  • समावेशी दृष्टिकोण अपनाना:- सभी बच्चों को बराबर सम्मान और अवसर देना।
  • सुलभ सुविधाएं:- स्कूल में व्हीलचेयर, रैंप, एडजस्टेबल फर्नीचर जैसे प्रबंध जरूरी हैं।
  • सहयोगी शिक्षक:- शिक्षक बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्थिति को समझते हुए पढ़ाएं।
  • सहपाठियों को जागरूक करना:- ताकि वे सहयोगी और सहानुभूति रखने वाले बन सकें।

समाज की भूमिका:

  • सकारात्मक नजरिया अपनाना:- दिव्यांगता को कमजोरी नहीं, विशेषता समझें।
  • रोजगार के अवसर:- कार्यस्थलों को दिव्यांगजनों के लिए अनुकूल बनाना।
  • संवेदनशीलता बढ़ाना:- फिल्मों, मीडिया और अभियान के माध्यम से जागरूकता फैलाना।
  • स्वयंसेवी संस्थाओं का योगदान:- दिव्यांगजनों के प्रशिक्षण, सहायता उपकरण, रोजगार, और पुनर्वास में एनजीओ बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

सरकार की योजनाएँ और अधिकार:- सरकार द्वारा दिव्यांगजन को प्रोत्साहित और आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए कई योजनाओं को लागू किया गया है। जिससे कि समाज मे उन्हें एक पहचान मिल सकें। और वह बिना किसी भेदभाव के सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकें। 

  • दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (DEPwD)
  • UDID कार्ड (Unique Disability ID Card)
  • पेंशन योजनाएं और छात्रवृत्तियाँ
  • दिव्यांगजन अधिनियम 2016
  • 4% आरक्षण शिक्षा व सरकारी नौकरियों में
  • Accessible India Campaign (सुगम्य भारत अभियान)

निष्कर्ष:

आज शारीरिक दिव्यांगता को लेकर हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है यह कोई अभिशाप नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए एक परीक्षा है कि वह इनके प्रति कितनी सहिष्णुता और समावेशिता का परिचय देता है। स्कूल, माता-पिता और समाज अगर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं और सुविधाएँ प्रदान करें, तो कोई भी दिव्यांग बच्चा पीछे नहीं रह सकता । हमें उन्हें सहानुभूति नहीं, समानता और सशक्तिकरण की दृष्टि से देखना चाहिए।

Monday, July 21, 2025

दिव्यांगता (Divyangta) का अर्थ और भारतीय कानून के अनुसार इसके प्रकार

दिव्यांगता (Divyangta) का अर्थ और भारतीय कानून के अनुसार इसके प्रकार 

दिव्यांगता (Divyangta) का अर्थ है—किसी व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदनात्मक क्षमताओं में ऐसा दीर्घकालिक बाधा जो उसके दैनिक जीवन के कार्यों को करने में अड़चन पैदा करती हो। सरल भाषा में कहें तो यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति को शिक्षा, रोजगार, संचार, या सामाजिक भागीदारी में कठिनाई होती है।


भारतीय कानून के अनुसार दिव्यांगता की परिभाषा:

  • RPWD Act 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) के अनुसार, दिव्यांग व्यक्ति वह है—
  • "जिसे शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी दुर्बलता है जो लंबे समय तक बनी रहती है और उसे समाज में बराबरी के आधार पर भाग लेने में बाधा पहुंचाती है।"

भारतीय कानून (RPWD Act, 2016) के अनुसार दिव्यांगता के प्रकार (Types of Disability):

भारत सरकार ने 21 प्रकार की दिव्यांगता को मान्यता दी है। इन्हें मुख्यतः 5 वर्गों में बांटा जा सकता है:

1. शारीरिक दिव्यांगता (Physical Disability):

  • बौनापन (Dwarfism)
  • अस्थि बाधित (Locomotor Disability)
  • मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy)
  • एसिड अटैक पीड़ित (Acid Attack Victim)
  • सेलीब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy)
  • पोलियो या किसी कारणवश अंग का उपयोग न कर पाना

2. बौद्धिक दिव्यांगता (Intellectual Disability):

  • बौद्धिक मंदता (Intellectual Disability)
  • विशिष्ट शिक्षा सम्बन्धी अक्षमता (Specific Learning Disabilities)
  • जैसे – डिस्लेक्सिया, डिस्कैल्कुलिया
  • स्वायत्तता विकार (Autism Spectrum Disorder)

3. मानसिक व्यवहार संबंधी विकार (Mental Behaviour/Illness):

  • मानसिक रोग (Mental Illness)
  • जैसे – अवसाद (Depression), स्किज़ोफ्रेनिया आदि

4. दृश्य और श्रवण दिव्यांगता (Visual & Hearing Disabilities):

  • दृष्टिहीनता (Blindness)
  • कम दृष्टि (Low Vision)
  • बहरापन (Deafness)
  • कम सुनाई देना (Hard of Hearing)
  • बधिर-बोल न सकने वाले (Deaf and Mute)

5. विविध दिव्यांगता (Multiple & Other Disabilities):

  • विविध दिव्यांगता (Multiple Disabilities) – दो या अधिक दिव्यांगताओं का होना
  • थैलेसेमिया
  • हीमोफीलिया
  • सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease)
  • क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन – जैसे मल्टीपल स्क्लेरोसिस, पार्किंसन रोग
  • स्पीच एंड लैंग्वेज डिसएबिलिटी (बोलने और भाषा में अक्षम)


शारीरिक दिव्यांगता: चुनौतियाँ, समाधान और सामाजिक पुनर्वास

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