“खोई हुई ज़मीन” — एक किसान की सीख
एक छोटे से गाँव में सभी लोग खेती-बाड़ी कर अपना जीवन यापन करते थे। खेत ही उनका संसार थे और मिट्टी ही उनका गर्व। ज़्यादातर किसान अपने काम से संतुष्ट थे, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्हें अपनी किस्मत पर हमेशा शिकवा रहता था। उनमें से एक किसान था—रामू।
रामू अक्सर सोचता, “कैसी भाग्यशाली ज़िंदगी होती होगी उन लोगों की जिन्हें कोई काम नहीं करना पड़ता, जो बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं, जिनके पास महल जैसे घर हैं!”
वो हर दिन दूसरों की खुशहाली देखकर अपने जीवन से ऊब चुका था।
गाँव के बुज़ुर्ग कहा करते थे, “दूसरों की थाली का खाना सबको स्वादिष्ट लगता है, पर जब वही खाना अपनी थाली में आता है तो उसमें भी कमी ढूँढ़ी जाती है।”
रामू को ये बात कभी समझ नहीं आई।
धीरे-धीरे उसके भीतर असंतोष और नकारात्मकता घर करने लगी। अब उसे खेती करना बोझ लगने लगा। उसे बस यही इंतज़ार था कि कोई उसकी ज़मीन खरीद ले ताकि वह इस "कठिन जीवन" से छुटकारा पा सके।
और एक दिन उसकी किस्मत ने जैसे उसकी बात सुन ली—एक ज़मीन का खरीददार गाँव में आया। रामू ने बिना ज़्यादा सोचे-समझे अपनी पूरी ज़मीन बेच दी।
बदले में मिले पैसे देखकर वह मानो पागल-सा हो गया।
इतने पैसे उसने ज़िंदगी में कभी एक साथ नहीं देखे थे।
अब रामू का जीवन बदल गया था। उसने नए कपड़े खरीदे, शहर जाकर महंगे होटल में खाना खाया, गाड़ी किराये पर ली और अपने को "शहर वालों" जैसा महसूस करने लगा। धीरे-धीरे वह बुरी संगत में पड़ गया।
रातें मौज-मस्ती में बीतने लगीं, और दिन नशे में।
कहावत है, “जब बुद्धि घास चरने जाए, तो संपत्ति भी साथ चली जाती है।”
रामू के साथ भी यही हुआ।
कुछ ही महीनों में उसका सारा पैसा खत्म हो गया।
अब न पैसे बचे, न ज़मीन, न इज़्ज़त।
भूख और तंगी के मारे जब कोई रास्ता न बचा तो उसे मजबूर होकर फिर से खेतों की ओर लौटना पड़ा।
पर अब फर्क यह था कि जिन खेतों में कभी वह मालिक बनकर हल चलाता था,
आज वहीं वह मजदूर बन गया था।
मिट्टी वही थी, खेत वही थे, लेकिन ज़िंदगी का रूप बदल गया था।
उसकी आँखों में आँसू थे और दिल में पछतावा।
अब उसे अपने पुराने दिन याद आने लगे—वो दिन जब वह संतोष में जीता था, मेहनत करता था और चैन की नींद सोता था।
उसने तब समझा कि
“हमेशा उतने ही पैर फैलाने चाहिए जितनी लंबी चादर हो।
दूसरों से तुलना करने में अक्सर हम वो भी खो देते हैं,
जो हमारे पास पहले से होता है।”
सीख:
सच्ची खुशी धन या ऐशो-आराम में नहीं, बल्कि अपने परिश्रम और संतोष में छिपी होती है। जो व्यक्ति अपने वर्तमान से खुश रहना सीख लेता है, वही जीवन का सच्चा राजा होता है।