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Wednesday, September 3, 2025

लालच का अंजाम

लालच का अंजाम


एक छोटे से गाँव में दो पुलिस वाले रहते थे। उनका स्वभाव लोगों की सेवा करने वाला नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ को पूरा करने वाला था। दोनों इतने लालची थे कि उन्हें हर जगह सिर्फ पैसे ही दिखाई देते थे। तनख्वाह उनके लिए पर्याप्त नहीं थी। महीने भर की कमाई से उनका कभी पेट नहीं भरता था।

धीरे-धीरे उनके घर के संदूक, अलमारी और कोने-कोने में पैसा भर गया, लेकिन उनकी नियत फिर भी खाली ही रही। एक दिन दोनों बैठकर नए तरीके सोचने लगे।

पहला पुलिस वाला बोला –

“कमाई पहले जैसी नहीं रही। ऐसा क्या करें कि जेब भी भरी रहे और किसी को शक भी न हो?”

दूसरा पुलिस वाला मुस्कुराया और बोला –

“क्यों न हम अपने जेल के कैदी को रात में चोरी करने भेज दें? वो चोरी करेगा, माल हमें देगा और सुबह वापस जेल में आकर बैठ जाएगा। किसी को शक भी नहीं होगा और हमारी जेब भी भरी रहेगी।”

यह योजना दोनों को बहुत भा गई।

उस रात से सिलसिला शुरू हो गया। चोर चोरी करता, ढेर सारा सामान और पैसे लेकर आता और पुलिस वाले बँटवारा कर लेते। सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था। लेकिन गाँव की जनता परेशान हो गई। रोज़ नई-नई चोरियाँ होतीं, पर चोर कभी पकड़ा न जाता।

धीरे-धीरे वही चोर सोच में पड़ गया –

“जो जोखिम मैं उठाता हूँ, जो खतरा मैं मोल लेता हूँ, उसका फायदा ये दोनों पुलिस वाले उठा रहे हैं। मेहनत मेरी, और माल उनका!”

उसने ठान लिया कि अबकी बार वह इन पुलिस वालों को सबक सिखाएगा।

एक रात उसने चोरी के लिए सीधे उन्हीं पुलिस वालों के घर का रुख किया। वहाँ से उसने सारा माल, गहने और पैसा समेटा और रातों-रात गाँव से भाग निकला।

सुबह पुलिस वाले बेचैन हो उठे। कैदी लौटकर जेल क्यों नहीं आया? तभी फोन बजा—

“क्या आप थाने से बोल रहे हैं? यहाँ कोल्हापुर और गोलापुर में दो घरों में चोरी हुई है।”

दोनों पुलिस वाले हक्के-बक्के रह गए, क्योंकि वो घर उनके ही थे!

अब उन्हें समझ आया कि जिसे वो अपना मोहरा समझते थे, वही उनकी चाल को पलट चुका है।

गाँववालों ने भी जब सच्चाई जोड़ी तो सबको साफ हो गया—अब तक की सारी चोरियों में पुलिस वालों का भी हाथ था। उनकी लालच और धोखेबाज़ी उजागर हो गई।

अंततः दोनों पुलिस वालों ने सिर्फ अपना धन ही नहीं, बल्कि अपनी इज़्ज़त और नौकरी भी गँवा दी। गाँव में यह बात फैल गई कि लालच का अंत हमेशा विनाश में होता है।

मैं लिखूँगा तुम्हें

 मैं लिखूँगा तुम्हें मैं गढ़ूँगा क़सीदे तुम्हारे — तुम्हारे इतराने पर, तुम्हारे रूठ कर चले जाने पर, तुम्हारी मुस्कान में छुपी उजली धूप पर, औ...