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Monday, October 27, 2025

“खोई हुई ज़मीन” — एक किसान की सीख

 “खोई हुई ज़मीन” — एक किसान की सीख


एक छोटे से गाँव में सभी लोग खेती-बाड़ी कर अपना जीवन यापन करते थे। खेत ही उनका संसार थे और मिट्टी ही उनका गर्व। ज़्यादातर किसान अपने काम से संतुष्ट थे, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्हें अपनी किस्मत पर हमेशा शिकवा रहता था। उनमें से एक किसान था—रामू।


रामू अक्सर सोचता, “कैसी भाग्यशाली ज़िंदगी होती होगी उन लोगों की जिन्हें कोई काम नहीं करना पड़ता, जो बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं, जिनके पास महल जैसे घर हैं!”

वो हर दिन दूसरों की खुशहाली देखकर अपने जीवन से ऊब चुका था।

गाँव के बुज़ुर्ग कहा करते थे, “दूसरों की थाली का खाना सबको स्वादिष्ट लगता है, पर जब वही खाना अपनी थाली में आता है तो उसमें भी कमी ढूँढ़ी जाती है।”

रामू को ये बात कभी समझ नहीं आई।


धीरे-धीरे उसके भीतर असंतोष और नकारात्मकता घर करने लगी। अब उसे खेती करना बोझ लगने लगा। उसे बस यही इंतज़ार था कि कोई उसकी ज़मीन खरीद ले ताकि वह इस "कठिन जीवन" से छुटकारा पा सके।


और एक दिन उसकी किस्मत ने जैसे उसकी बात सुन ली—एक ज़मीन का खरीददार गाँव में आया। रामू ने बिना ज़्यादा सोचे-समझे अपनी पूरी ज़मीन बेच दी।

बदले में मिले पैसे देखकर वह मानो पागल-सा हो गया।

इतने पैसे उसने ज़िंदगी में कभी एक साथ नहीं देखे थे।


अब रामू का जीवन बदल गया था। उसने नए कपड़े खरीदे, शहर जाकर महंगे होटल में खाना खाया, गाड़ी किराये पर ली और अपने को "शहर वालों" जैसा महसूस करने लगा। धीरे-धीरे वह बुरी संगत में पड़ गया।

रातें मौज-मस्ती में बीतने लगीं, और दिन नशे में।


कहावत है, “जब बुद्धि घास चरने जाए, तो संपत्ति भी साथ चली जाती है।”

रामू के साथ भी यही हुआ।

कुछ ही महीनों में उसका सारा पैसा खत्म हो गया।

अब न पैसे बचे, न ज़मीन, न इज़्ज़त।


भूख और तंगी के मारे जब कोई रास्ता न बचा तो उसे मजबूर होकर फिर से खेतों की ओर लौटना पड़ा।

पर अब फर्क यह था कि जिन खेतों में कभी वह मालिक बनकर हल चलाता था,

आज वहीं वह मजदूर बन गया था।


मिट्टी वही थी, खेत वही थे, लेकिन ज़िंदगी का रूप बदल गया था।

उसकी आँखों में आँसू थे और दिल में पछतावा।

अब उसे अपने पुराने दिन याद आने लगे—वो दिन जब वह संतोष में जीता था, मेहनत करता था और चैन की नींद सोता था।


उसने तब समझा कि


“हमेशा उतने ही पैर फैलाने चाहिए जितनी लंबी चादर हो।

दूसरों से तुलना करने में अक्सर हम वो भी खो देते हैं,

जो हमारे पास पहले से होता है।”


सीख:


सच्ची खुशी धन या ऐशो-आराम में नहीं, बल्कि अपने परिश्रम और संतोष में छिपी होती है। जो व्यक्ति अपने वर्तमान से खुश रहना सीख लेता है, वही जीवन का सच्चा राजा होता है।

Monday, October 6, 2025

नाजीवाद और हिटलर का उदय, क्लास - 9

एक कक्षा में शिक्षक बच्चों को कहानी सुना रहे हैं।

शिक्षक: बच्चों, आज मैं तुम्हें एक बहुत बड़ी घटना की कहानी सुनाने जा रहा हूँ—दूसरे विश्व युद्ध की।

छात्रा अंजली: सर, क्या ये वही युद्ध है जिसमें हिटलर था?

शिक्षक: बिल्कुल सही अंजली। लेकिन उससे पहले हमें पहले विश्व युद्ध के बारे में जानना होगा। 1914 से 1918 तक पहला बड़ा युद्ध हुआ था। उसमें जर्मनी हार गया। हारने के बाद वहाँ के लोग बहुत परेशान हो गए।

छात्र रोहित: सर, क्यों परेशान हुए?

शिक्षक: क्योंकि हार के बाद जर्मनी को एक समझौता करना पड़ा जिसे वर्साय की संधि कहते हैं। इस संधि में जर्मनी से बहुत पैसा माँगा गया और कई सख्त नियम थोपे गए।

छात्रा नेहा: सर, क्या सब लोग चुपचाप मान गए?

शिक्षक: नहीं नेहा, जर्मनी के लोग खुश नहीं थे। इसी बीच एक नया नेता आया—एडॉल्फ हिटलर। उसने कहा, "मैं जर्मनी को फिर से ताकतवर बनाऊँगा।"

छात्र आदित्य: और लोग उसकी बात मान गए?

शिक्षक: हाँ, बहुत से लोग मान गए। लेकिन हिटलर की सोच बहुत गलत थी। उसने कहा कि सिर्फ "शुद्ध जर्मन" ही देश में रहेंगे। उसने यहूदियों और अन्य समुदायों को सताना शुरू कर दिया।

छात्रा सिया: सर, यह तो बहुत बुरा है!

शिक्षक: बिल्कुल। नफरत से कभी सुख नहीं मिलता। हिटलर ने युद्ध भी छेड़ दिया। 1939 में उसने पोलैंड पर हमला किया और दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया।

छात्र आरव: सर, क्या सारे देश युद्ध में शामिल हो गए?

शिक्षक: धीरे-धीरे हाँ। इंग्लैंड, फ्रांस, रूस और बाद में अमेरिका भी शामिल हो गया। यह युद्ध बहुत भयानक था। लाखों लोग मारे गए।

छात्रा अंजली: सर, अमेरिका ने क्या किया?

शिक्षक: युद्ध खत्म करने के लिए अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिए। यह हमला इतना भयानक था कि दुनिया काँप गई।

छात्र रोहित: और हिटलर का क्या हुआ?

शिक्षक: हिटलर हार गया। नाज़ीवाद की विचारधारा खत्म हो गई। उसके अत्याचारों का अंत हुआ और जर्मनी में फिर से लोकतंत्र की शुरुआत हुई।

छात्रा नेहा: तो सर, हमें इस कहानी से क्या सीख मिलती है?

शिक्षक (मुस्कुराते हुए): यही कि नफरत और हिंसा से केवल विनाश होता है। सच्ची ताकत भाईचारे, शांति और इंसानियत में है।



Friday, October 3, 2025

फ़्रांस की क्रांति की कहानी

 बहुत समय पहले की बात है। एक देश था फ़्रांस, जहाँ एक राजा रहते थे—राजा लुइस और उनकी रानी मैरी। राजा और उनका परिवार ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते थे। वे शानदार महलों में रहते, सोने-चाँदी के बर्तन इस्तेमाल करते और स्वादिष्ट भोजन करते।

लेकिन फ़्रांस का समाज तीन हिस्सों में बँटा हुआ था—

पहला हिस्सा: पादरी (धार्मिक नेता), जिन्हें विशेष अधिकार थे और कर नहीं देना पड़ता था।

दूसरा हिस्सा: जागीरदार और रईस लोग, जिनके पास बहुत सी जमीन और दौलत थी।

तीसरा हिस्सा: आम लोग—किसान, मजदूर, व्यापारी और कारीगर।

सबसे ज्यादा मेहनत यही आम लोग करते थे, लेकिन सबसे ज्यादा बोझ भी इन्हीं पर डाला जाता। उन्हें तरह-तरह के कर चुकाने पड़ते। उनकी ज़िंदगी मुश्किल और दुखों से भरी थी।

इन्हीं आम लोगों में से एक किसान था पियरे। वह खेतों में दिन-रात मेहनत करता, लेकिन घर में खाने के लिए रोटी भी मुश्किल से मिलती। उसकी बेटी अक्सर पूछती—

“पापा, हमारे पास रोटी क्यों नहीं है?”

पियरे दुखी होकर कहता—

“बेटी, राजा और अमीर लोग हमारा सारा अनाज और पैसा ले जाते हैं।”


पियरे जैसे हज़ारों लोग परेशान थे, लेकिन डर के कारण कोई आवाज नहीं उठाता था। जो भी राजा के खिलाफ बोलता, उसे कठोर सजा दी जाती—यहाँ तक कि मौत!


फिर एक दिन, कुछ पढ़े-लिखे लोग आगे आए। उनमें से एक था जॉन। उसने सबको इकट्ठा कर कहा—

“हम सब ईश्वर की संतान हैं। कोई बड़ा या छोटा नहीं होता। सब बराबर हैं। हमें समान अधिकार मिलने चाहिए।”


यह सुनकर लोगों के दिलों में हिम्मत जागी। धीरे-धीरे सबने आवाज उठानी शुरू की। वे चिल्लाने लगे—

“समानता चाहिए! आज़ादी चाहिए!”


पूरा फ़्रांस गूंजने लगा। लोग राजा की नाइंसाफी के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। लेकिन राजा लुइस और रानी मैरी ने उनकी बातें नहीं मानीं। इससे जनता और नाराज़ हो गई।


आखिरकार, एक दिन हजारों लोग राजा के महल की ओर बढ़े। पियरे भी उनमें शामिल था। गुस्से से भरी जनता ने महल के दरवाज़े तोड़ दिए। यही थी फ़्रांस की महान क्रांति की शुरुआत।


यह केवल विद्रोह नहीं था, बल्कि एक बदलाव की धारा थी। इसने पूरी दुनिया को सिखाया कि—


हर इंसान बराबर है।

सबको स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

और भाईचारे से रहना चाहिए।


क्रांति के बाद फ़्रांस में नया संविधान बना, जिसमें सभी लोगों के अधिकारों और आज़ादी की रक्षा की गई। अब कोई अकेला शासक लोगों पर अत्याचार नहीं कर सकता था।


और जब यह बदलाव आया, तो पियरे ने अपनी बेटी से कहा—

“बेटी, देखो! अब हमारे पास भी रोटी होगी, और हम सब बराबर होंगे।”


बच्चों, यही है फ़्रांस की क्रांति की कहानी—अन्याय के खिलाफ खड़े होने और समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे के लिए संघर्ष की कहानी।


भूपेंद्र रावत 

संजय गांधी स्कूल लाडवा, कुरुक्षेत्र 

Tuesday, September 30, 2025

कहानी:- दाग़ और गलती

 दाग़ और गलती


हमारी ज़िंदगी भी उन कपड़ों की तरह है जिनमें यदि एक छोटा-सा दाग़ लग जाए तो पूरा कपड़ा बेकार सा लगने लगता है। ठीक इसी तरह जीवन में की गई छोटी-सी गलती भी कभी-कभी हमारे पूरे जीवन पर भारी पड़ जाती है।


एक दिन कक्षा में मैडम बच्चों को समझा रही थीं—

"बच्चों! हमें जीवन के हर कदम पर सोच-समझकर चलना चाहिए। बचपन में शरारतें करना स्वाभाविक है, लेकिन कभी-कभी अनजाने में की गई शरारतें हमें उम्रभर का पछतावा दे सकती हैं।"


लेकिन बच्चे तो बच्चे थे। उनकी नटखट बातें और खेलकूद में डूबा मन इन बातों को हल्के में ले रहा था।


कुछ ही दिनों बाद स्कूल में एक विशेष कार्यक्रम रखा गया। सभी बच्चे उत्साह से भरे हुए थे और सुंदर-सुंदर नए कपड़े पहनकर आए थे। कार्यक्रम शुरू हुआ, सब बहुत आनंद ले रहे थे। तभी कुछ बच्चों के कपड़ों पर दाग़ लग गए। उनकी पोशाक बिगड़ गई और वह बहुत भद्दी लगने लगी।


अब उनके पास न तो बदलने के लिए दूसरा कपड़ा था और न ही नया लाने का समय। मजबूर होकर वे बच्चे बीच कार्यक्रम से ही घर लौट गए। उनके दोस्तों ने मज़े किए, लेकिन वे उदासी और अफसोस में रह गए।


अगले दिन जब सभी बच्चे स्कूल पहुँचे तो मैडम ने मुस्कराते हुए पूछा—

"तो बच्चों! कल का कार्यक्रम कैसा रहा? सबने मज़े किए?"


जवाब सुनते ही कुछ बच्चों के चेहरे उतर गए। मैडम उनकी उदासी पहचान गईं और पूछने लगीं—

"क्या हुआ बच्चों? तुम इतने चुप और उदास क्यों हो?"


बच्चों ने धीरे-धीरे कहा—

"मैडम, कल हमारी प्यारी पोशाक खराब हो गई थी। उस पर दाग़ लग गया था और हमें बीच में ही घर जाना पड़ा। इसलिए हम मज़ा नहीं कर पाए।"


मैडम ने मुस्कराते हुए कहा—

"याद है बच्चों, मैंने कुछ दिन पहले तुम्हें बताया था कि जीवन में कोई ऐसी गलती मत करना जिसका दाग़ मिटाया न जा सके। जैसे कपड़े पर लगे छोटे-से दाग़ ने तुम्हें पूरे कार्यक्रम से वंचित कर दिया, वैसे ही जीवन में हुई एक गलती कभी-कभी हमारे पूरे भविष्य को बिगाड़ देती है। उस गलती का पछतावा हमें उम्रभर सताता रहता है। इसलिए हर कदम सोच-समझकर बढ़ाना चाहिए।"


इस बार बच्चों ने मैडम की बात को गंभीरता से समझा। वे सबक पा चुके थे। उन्होंने मैडम से वादा किया कि वे आगे से ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे जिससे उनका भविष्य बिगड़ जाए।


बच्चे प्रसन्न थे, क्योंकि उन्होंने जीवन का एक महत्वपूर्ण सत्य सीख लिया था।

Friday, September 26, 2025

कहानी – जिम्मेदारी का महत्व

 कहानी – जिम्मेदारी का महत्व


एक छोटा बच्चा था। वह बहुत होशियार और समझदार था। किसी को उससे कोई शिकायत नहीं थी। लंबे समय बाद उसके दादाजी गाँव से उनके घर आए। दादाजी को देखकर बच्चा बहुत खुश हुआ, क्योंकि अब उसके पास खेलने और बातें करने वाला साथी मिल गया था। अब उसके दिन बोरिंग नहीं, बल्कि खुशी और उत्साह से बीतने लगे।


लेकिन दादाजी ने कुछ ही दिनों में घर का माहौल ध्यान से देखा। उन्हें महसूस हुआ कि बच्चे की बातें उसके माता-पिता अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। मम्मी-पापा एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपने कर्तव्य से बचते रहते थे। यह देखकर दादाजी चुप रहे, पर मन में उन्होंने परिवार को एक सीख देने का निश्चय किया।


एक दिन खाने की मेज़ पर सब बैठे थे। दादाजी ने पोते से कहा—

“बेटा, कल कुछ गमले और पौधे ले आना। घर पर मेरा समय अच्छे से कट जाएगा और हमें भी एक अच्छा काम करने को मिलेगा।”


अगले दिन पौधे आ गए। दादाजी ने प्रतियोगिता का सुझाव दिया। एक गमले की जिम्मेदारी दादाजी और पोते ने मिलकर ली, जबकि दूसरे गमले की जिम्मेदारी मम्मी-पापा को दी गई।


दादाजी और पोता रोज़ पौधे को पानी देते, उसकी देखभाल करते। धीरे-धीरे उनका पौधा हरा-भरा और सुंदर हो गया। दूसरी ओर, मम्मी-पापा अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते रहे। परिणामस्वरूप उनका पौधा कुछ ही दिनों में सूख गया।


निर्धारित दिन पर दोनों पौधों की तुलना हुई। दादाजी और पोते का पौधा हरा-भरा था, जबकि मम्मी-पापा का पौधा केवल एक सूखी टहनी बनकर रह गया।


तभी दादाजी ने गंभीर स्वर में कहा—

“बेटा, समय सबके पास बराबर होता है। फर्क सिर्फ़ इतना है कि हम उसका उपयोग कैसे करते हैं। जिस तरह तुम्हारी लापरवाही से यह पौधा सूख गया, उसी तरह यदि तुमने अपने बच्चे पर ध्यान नहीं दिया, तो एक दिन यह भी एक सूखी टहनी की तरह हो जाएगा। पैसे कमाने और समय की कमी का बहाना बनाकर तुम अपने कर्तव्यों से मुँह नहीं मोड़ सकते। बच्चा तुम्हारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।”


दादाजी की सीख सुनकर मम्मी-पापा की आँखें खुल गईं। उन्होंने वचन दिया कि अब वे अपने बच्चे को समय देंगे और सच्चे मन से माता-पिता होने का कर्तव्य निभाएँगे।


शिक्षा:

समय और जिम्मेदारी का सही उपयोग ही जीवन को सुंदर बनाता है। बच्चे को प्यार, साथ और ध्यान देना माता-पिता का पहला कर्तव्य है।

Wednesday, September 3, 2025

लालच का अंजाम

लालच का अंजाम


एक छोटे से गाँव में दो पुलिस वाले रहते थे। उनका स्वभाव लोगों की सेवा करने वाला नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ को पूरा करने वाला था। दोनों इतने लालची थे कि उन्हें हर जगह सिर्फ पैसे ही दिखाई देते थे। तनख्वाह उनके लिए पर्याप्त नहीं थी। महीने भर की कमाई से उनका कभी पेट नहीं भरता था।

धीरे-धीरे उनके घर के संदूक, अलमारी और कोने-कोने में पैसा भर गया, लेकिन उनकी नियत फिर भी खाली ही रही। एक दिन दोनों बैठकर नए तरीके सोचने लगे।

पहला पुलिस वाला बोला –

“कमाई पहले जैसी नहीं रही। ऐसा क्या करें कि जेब भी भरी रहे और किसी को शक भी न हो?”

दूसरा पुलिस वाला मुस्कुराया और बोला –

“क्यों न हम अपने जेल के कैदी को रात में चोरी करने भेज दें? वो चोरी करेगा, माल हमें देगा और सुबह वापस जेल में आकर बैठ जाएगा। किसी को शक भी नहीं होगा और हमारी जेब भी भरी रहेगी।”

यह योजना दोनों को बहुत भा गई।

उस रात से सिलसिला शुरू हो गया। चोर चोरी करता, ढेर सारा सामान और पैसे लेकर आता और पुलिस वाले बँटवारा कर लेते। सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था। लेकिन गाँव की जनता परेशान हो गई। रोज़ नई-नई चोरियाँ होतीं, पर चोर कभी पकड़ा न जाता।

धीरे-धीरे वही चोर सोच में पड़ गया –

“जो जोखिम मैं उठाता हूँ, जो खतरा मैं मोल लेता हूँ, उसका फायदा ये दोनों पुलिस वाले उठा रहे हैं। मेहनत मेरी, और माल उनका!”

उसने ठान लिया कि अबकी बार वह इन पुलिस वालों को सबक सिखाएगा।

एक रात उसने चोरी के लिए सीधे उन्हीं पुलिस वालों के घर का रुख किया। वहाँ से उसने सारा माल, गहने और पैसा समेटा और रातों-रात गाँव से भाग निकला।

सुबह पुलिस वाले बेचैन हो उठे। कैदी लौटकर जेल क्यों नहीं आया? तभी फोन बजा—

“क्या आप थाने से बोल रहे हैं? यहाँ कोल्हापुर और गोलापुर में दो घरों में चोरी हुई है।”

दोनों पुलिस वाले हक्के-बक्के रह गए, क्योंकि वो घर उनके ही थे!

अब उन्हें समझ आया कि जिसे वो अपना मोहरा समझते थे, वही उनकी चाल को पलट चुका है।

गाँववालों ने भी जब सच्चाई जोड़ी तो सबको साफ हो गया—अब तक की सारी चोरियों में पुलिस वालों का भी हाथ था। उनकी लालच और धोखेबाज़ी उजागर हो गई।

अंततः दोनों पुलिस वालों ने सिर्फ अपना धन ही नहीं, बल्कि अपनी इज़्ज़त और नौकरी भी गँवा दी। गाँव में यह बात फैल गई कि लालच का अंत हमेशा विनाश में होता है।

Chapter: Democratic Rights – (Class 9 Civics)

 Chapter: Democratic Rights – (Class 9 Civics) 1. Life Without Rights Rights are what make us free and equal in a democracy. Without rights,...