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Thursday, October 16, 2025

इंसानियत का असली अर्थ

 इंसानियत का असली अर्थ


एक सुहावनी सुबह थी। आज घर के सभी सदस्यों की छुट्टी एक साथ पड़ी थी। सबने तय किया कि आज का दिन घर पर न बिताकर कहीं बाहर घूमने चलेंगे। काफी सोच-विचार के बाद सबने निश्चय किया कि वे आज विभिन्न धर्मस्थलों के दर्शन करने जाएंगे।


सुबह-सुबह सब तैयार हुए, प्रसन्न मन से निकले और दिनभर अलग-अलग मंदिरों और तीर्थस्थलों में घूमते रहे। हर कोई अपने-अपने तरीके से आनंद ले रहा था। परंतु परिवार का सबसे छोटा सदस्य—आरव—चुपचाप सब कुछ देख रहा था।


वह देख रहा था कि मंदिरों के बाहर लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियों से उतरते हैं, महँगे कपड़े पहने हुए हैं, लेकिन जो गरीब और जरूरतमंद वहाँ खड़े थे, कोई उनकी ओर देखना तक पसंद नहीं करता। कुछ लोग तो उन्हें दुत्कार देते, मज़ाक उड़ाते, और बिना वजह अपमानित करते।


आरव का मन यह सब देखकर बहुत बेचैन हो उठा। उसे लगा जैसे इंसानियत कहीं खो गई है।


शाम को सब लोग घर लौटे। सभी खुश थे कि दिन अच्छा बीता, पर आरव का चेहरा उदास था। दादी ने पूछा,

“क्या हुआ बेटा? तुम तो पूरे दिन चुप-चुप रहे, घूमने में मज़ा नहीं आया क्या?”


आरव कुछ देर चुप रहा, फिर बोला —

“दादी, मंदिरों में लोग भगवान से आशीर्वाद लेने तो आए थे, लेकिन वहाँ जो गरीब लोग मदद के इंतज़ार में थे, उनकी ओर किसी ने देखा तक नहीं। क्या भगवान केवल उन लोगों के लिए हैं जिनके पास पैसे हैं?”


सब उसके शब्द सुनकर चौंक गए। इतनी छोटी उम्र में ऐसी बात!


दादाजी मुस्कुराए और बोले —

“बेटा, एक कहावत है — ‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए।’

अगर समाज में हम केवल पैसा और अहंकार बोएँगे, तो फल के रूप में हमें इंसानियत नहीं मिलेगी।”


आरव ने हैरानी से पूछा, “दादू, इसका मतलब?”


तभी दादी ने प्यार से उसका सिर सहलाते हुए कहा —

“इसका मतलब यह है बेटा कि जैसा संस्कार हम अपने बच्चों को देंगे, वैसा ही समाज बनेगा। आज लोग पैसे कमाने की दौड़ में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें सहानुभूति और करुणा सिखाने का समय ही नहीं मिलता। हम सब उस खजूर के पेड़ जैसे बन गए हैं — जो ऊँचा तो बहुत होता है, लेकिन न किसी को छाया देता है, न फल आसानी से।”


फिर उन्होंने मीरा बाई के शब्दों में कहा —

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,

पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”


दादाजी बोले —

“इसलिए हमें चाहिए कि हम सिर्फ ‘बड़े आदमी’ नहीं, बल्कि ‘अच्छे इंसान’ बनने की कोशिश करें। पैसे से भले सुख मिल जाए, पर सच्ची शांति तो तभी मिलेगी जब हम दूसरों की मदद करेंगे।”


आरव के चेहरे पर अब मुस्कान लौट आई। उसने निश्चय किया कि वह आगे से जब भी किसी जरूरतमंद को देखेगा, उसकी मदद जरूर करेगा—भले ही छोटी सी ही क्यों न हो।


कहानी की सीख:

धर्म की शुरुआत मंदिर से नहीं, इंसानियत से होती है। अगर हम अच्छे इंसान बन गए, तो वही सबसे बड़ा धर्म है।

Monday, June 2, 2025

"कल कभी नहीं आता"

गर्मियों का समय था। स्कूल में छुट्टियाँ शुरू होने ही वाली थीं। सभी बच्चे बहुत खुश थे क्योंकि छुट्टियों का मतलब था—घूमना, मस्ती और नानी के घर जाना! लेकिन जैसे हर साल होता था, इस साल भी उनके शिक्षक ने गर्मियों का होमवर्क दिया।


छुट्टी से पहले मैडम ने बच्चों से कहा,

"बच्चों, छुट्टियों में मस्ती करना ज़रूरी है, लेकिन काम को मत भूलना। मस्ती के साथ-साथ होमवर्क भी समय पर करना है।"

सभी बच्चों ने एकसाथ कहा, "हाँ मैम, हम मस्ती भी करेंगे और काम भी।"

मैडम मुस्कुराई और सबको छुट्टियों की शुभकामनाएं दीं।


सोनू और पिंकी की छुट्टियाँ

सोनू और पिंकी अपनी मम्मी के साथ नानी के घर पहुँचे। वहाँ तो जैसे मस्ती की बारिश हो गई—खाना, खेल, टीवी, और ढेर सारी नींद!

जब मम्मी ने कहा,

"बच्चों, चलो होमवर्क कर लो, फिर खेलना,"

तो बच्चों ने जवाब दिया,

"अरे मम्मी, अभी तो बहुत दिन हैं। कल कर लेंगे।"

और ये "कल" हर दिन टलता गया।


छुट्टियाँ खत्म होते-होते जब वो घर लौटे, तो मम्मी ने कहा,

"अब तो स्कूल शुरू होने वाला है, जल्दी से काम पूरा करो।"

फिर क्या था—दिन-रात जागकर जैसे-तैसे अधूरा काम पूरा करने की कोशिश की गई।


सोनू बोला,

"ये स्कूल वाले भी कितना काम देते हैं, पूरा ही नहीं होता!"

पिंकी बोली,

"हाँ भैया, सही कहा आपने। इतने दिन से काम कर रहे हैं, फिर भी खत्म नहीं हुआ।"


स्कूल में सच्चाई का सामना

स्कूल शुरू हो चुका था। सभी बच्चों ने अपना काम जमा किया, लेकिन सोनू और पिंकी की कॉपी नहीं आई।

मैडम ने पूछा,

"तुम दोनों की कॉपी कहाँ है?"

सोनू ने कहा,

"मैडम, आज भूल गए। कल लाएंगे।"


अगले दिन भी कॉपी नहीं आई। अब मैडम को शक हुआ। उन्होंने घर पर फोन किया।

"हैलो, मैं सोनू और पिंकी के स्कूल से बोल रही हूँ। आपके बच्चों ने अभी तक काम जमा नहीं किया है। कृपया स्कूल आकर मिलिए।"


अगले दिन मम्मी स्कूल आईं और कॉपी दिखाई। कॉपी अधूरी थी।

मैडम ने सख़्त लेकिन प्यार भरे स्वर में कहा,

"बच्चों, काम पूरा न करना एक गलती है, लेकिन झूठ बोलना उससे भी बड़ी गलती है। आप दोनों ने हर बार बहाना बनाया और सच छुपाया।"


सीख और संकल्प

मैडम ने बच्चों को समझाया,

"काम को टालना और झूठ बोलना हमें जीवन में पीछे ले जाता है। सफल वही होते हैं जो समय का सम्मान करते हैं और ईमानदारी से काम करते हैं। ‘कल’ पर भरोसा मत करो, क्योंकि कल कभी आता नहीं है।"


सोनू और पिंकी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने मम्मी और मैडम से माफी माँगी और कहा,

"अब हम अपना हर काम समय पर करेंगे और कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे।"


शिक्षा

"समय पर किया गया काम, भविष्य में सफलता लाता है।"

"झूठ से बचो, सच्चाई अपनाओ।"

"जो आज का काम कल पर टालते हैं, वो पीछे रह जाते हैं।"


Chapter: Democratic Rights – (Class 9 Civics)

 Chapter: Democratic Rights – (Class 9 Civics) 1. Life Without Rights Rights are what make us free and equal in a democracy. Without rights,...