युद्ध और शांति
युद्ध नहीं होते शांति के प्रतीक,
ना ही युद्ध से मिलती है शांति।
बल्कि युद्ध तब्दील कर देते है,
शोर को मौन मे
शहर तब्दील हो जाते है,
श्मशान मे
जहाँ कभी गूंजती थी हँसी,
वहाँ शेष रह जाता है
मलबा और अवशेष,
सभ्यताओं का मिट जाता है,
नामोनिशान,
इसके साथ ही लुप्त हो जाती है,
सभ्यताएं
बस शेष रह जाती है
जलती हुई लपटें
धधकती हुई राख की चादर के साथ।
चारों ओर बिछ जाती है लाशें और
शहर बदल जाते हैं,
श्मशान में,
और फिर मुर्दा के टीले मे
जन्म लेती है, ख़ौफ़नाक शांति
भूपेंद्र रावत
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