समानता के नाम पर
निर्धारित की गई सीमाएँ—
पुरुषों को मिला
अनंत आकाश,
और स्त्री के हिस्से आया
वही आकाश का शेष टुकड़ा,
जिसे भी
पुरुषों ने नकार दिया।
खोखली मर्यादाओं ने।
समानता के नाम पर ही
स्त्रियों के कंधों पर
थोप दी ज़िम्मेदारियाँ—
परिवार की, समाज की,
और इसे कहा गया
कर्तव्यों का पालन।
आदर्शवादी समाज में
आदर्श स्त्री को मिली परिभाषा—
वही जो न लड़ी
अपने अधिकारों के लिए,
जो अपनी आवाज़ को
विरोध की गूँज में
बदल न सकी,
बस उम्रभर
सिसकियों को ओढ़ती रही।
समानता दिखने के बावजूद
वह झेलती रही अवहेलना—
कभी परिवार से,
कभी समाज से।
और आज भी
पुरुष-प्रधान दुनिया में
आज़ाद कहलाकर भी
कैद है वह
विचारों की बेड़ियों में।
भूपेंद्र रावत

No comments:
Post a Comment