मैं लिखूँगा तुम्हें
मैं गढ़ूँगा क़सीदे तुम्हारे —
तुम्हारे इतराने पर,
तुम्हारे रूठ कर चले जाने पर,
तुम्हारी मुस्कान में छुपी उजली धूप पर,
और तुम्हारे खुशी से गले लग जाने पर।
मैं लिखूँगा तुम्हें —
उस चाँदनी रात में,
जब तुम्हारी घनी ज़ुल्फ़ों में
एक मुसाफ़िर की सरसराहट
धीरे-धीरे खो जाती है।
मैं लिखूँगा तुम्हारे जज़्बातों पर,
हम दोनों के हालातों पर,
उन लम्हों पर भी
जो अनकहे रह जाते हैं।
मैं लिखूँगा हर सूक्ष्म बात,
हर नन्ही-सी अनुभूति —
जब तक कि
स्वयं का अस्तित्व नगण्य न हो जाए।
Beautiful
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