अब प्यार नहीं जताता कोई
अब गले नहीं लगाता कोई
आ गए है उम्र के उस पड़ाव पर
अब अपना नहीं बनाता कोई
ये कैसी कश्मकश है मन के अंदर
अब ज़िया नहीं जलाता कोई
प्यार तो अब भी है दरमियाँ
अब वैसे नहीं जताता कोई
इस क़दर उलझ गए है जीवन के चक्रव्यूह में
महफिल मे भी तन्हा रह जाता है कोई
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