नेटिव भारतीय खेल: CBSE का योगदान नेटिव भारतीय खेलों को बढ़ावा देने में
आज के दौर में जहाँ बच्चे मोबाइल और वीडियो गेम्स में अधिक समय बिताने लगे हैं, वहीं ‘भारतीय खेल’ पहल ने पारंपरिक भारतीय खेलों को फिर से जीवन में उतारने की कोशिश की है। यह पहल न सिर्फ बच्चों के शारीरिक विकास के लिए जरूरी है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने में भी मददगार है।
स्कूल के नज़रिए से
- स्कूल शिक्षा का सिर्फ किताबों तक सीमित रहना अब पुराना विचार है। नई शिक्षा नीति (NEP 2020) ने खेलों को पढ़ाई के बराबर महत्व दिया है। नेटिव भारतीय खेल जैसे कबड्डी, खो-खो, मलखंभ, पिट्ठू, गिल्ली-डंडा आदि को स्कूल खेलों में शामिल किया जा रहा है।
- इससे बच्चों में टीम भावना, सहनशीलता और नेतृत्व क्षमता का विकास होता है।
- कई स्कूल अब हर सप्ताह ‘भारतीय खेल दिवस’ मनाते हैं जिससे बच्चों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ रही है।
छात्रों के नजरिए से
- छात्रों के लिए यह पहल बहुत रोमांचक है क्योंकि ये खेल खेलने में आसान होते हैं, ज्यादा संसाधन नहीं चाहिए होते और इन्हें किसी भी मैदान या खाली जगह में खेला जा सकता है।
- ये खेल बच्चों को शारीरिक रूप से सक्रिय रखते हैं और खेल भावना विकसित करते हैं।
- साथ ही, ये खेल बच्चों को ग्रुप में मिल-जुलकर खेलने की आदत सिखाते हैं, जिससे दोस्ती और आपसी समझ भी मजबूत होती है।
अभिभावकों के नजरिए से
- अभिभावक भी अब समझने लगे हैं कि नेटिव भारतीय खेल बच्चों के लिए मोबाइल गेम्स से कहीं बेहतर हैं।
- गांवों में तो आज भी ये खेल बच्चों की पहली पसंद हैं।
- अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे स्वस्थ रहें और स्क्रीन टाइम कम करें।
- अतः वे स्कूलों से आग्रह कर रहे हैं कि इन पारंपरिक खेलों को स्कूल कार्यक्रमों में जरूरी रूप से शामिल किया जाए।
- कई माता-पिता स्वयं भी बच्चों के साथ ये खेल खेलते हैं और बच्चों को पारंपरिक खेलों की कहानियां सुनाते हैं।
भविष्य में संभावनाएँ और योगदान
- ‘भारतीय खेल’ पहल से भविष्य में कई संभावनाएँ हैं:
- ये खेल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान पा सकते हैं।
- ग्रामीण प्रतिभाओं को पहचानकर प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी जा सकती है।
- सरकार और स्कूल मिलकर ‘खेल गांव’ बना सकते हैं जहाँ बच्चों को पारंपरिक खेलों की कोचिंग दी जाए।
- बच्चों में खेलों के माध्यम से कैरियर के नए विकल्प खुल सकते हैं जैसे खेल शिक्षक, कोच या प्रोफेशनल खिलाड़ी।
- सबसे बड़ी बात, हमारी नई पीढ़ी अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़ी रहेगी।
नेटिव भारतीय खेलों को बढ़ावा देने के लिए CBSE द्वारा उठाए गए कदम
नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुसार
- CBSE ने नई शिक्षा नीति 2020 को अपनाते हुए खेलों को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बना दिया है।
- अब खेल सिर्फ सह-पाठ्यक्रम गतिविधि नहीं बल्कि ‘समग्र विकास’ का आधार माना जा रहा है।
- CBSE सर्कुलर के अनुसार हर स्कूल में सप्ताह में कम से कम एक दिन ‘खेल दिवस’ रखा जाता है जिसमें नेटिव भारतीय खेलों को प्राथमिकता दी जाती है।
इंट्रा स्कूल और इंटर स्कूल प्रतियोगिताएँ
- CBSE ने कई क्लस्टर, जोनल और राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताएँ आयोजित करनी शुरू की हैं।
- इनमें कबड्डी, खो-खो, मलखंभ, कुश्ती जैसे पारंपरिक खेलों के इवेंट्स शामिल किए जाते हैं।
- इससे बच्चों में इन खेलों के प्रति रुचि बढ़ती है और ग्रामीण प्रतिभाएँ भी मंच पर आती हैं।
खेल शिक्षक और कोच नियुक्ति
CBSE स्कूलों में अब फिजिकल एजुकेशन टीचर्स को पारंपरिक खेलों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है ताकि वे बच्चों को केवल क्रिकेट या फुटबॉल तक सीमित न रखें, बल्कि गिल्ली-डंडा, पिट्ठू, लंगड़ी, रस्साकशी जैसे खेल भी सिखाएँ।
खेल-आधारित प्रोजेक्ट वर्क
- कई CBSE स्कूलों में प्रोजेक्ट वर्क के तौर पर भी पारंपरिक खेलों का अध्ययन कराया जाता है — जैसे:
- किस खेल की उत्पत्ति कहाँ हुई?
- गाँव में कौन-कौन से खेल खेले जाते हैं?
- उनकी तकनीक और नियम क्या हैं?
- इससे बच्चों को खेलों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जानकारी भी मिलती है।
अभिभावकों और समुदाय को जोड़ना
CBSE स्कूल अब ‘ग्रैंड पैरेंट्स डे’, ‘लोकल गेम्स वीक’ जैसे आयोजन करते हैं। इसमें बच्चे, माता-पिता और दादा-दादी साथ मिलकर पारंपरिक खेल खेलते हैं।
इससे सामुदायिक भागीदारी भी बढ़ती है और खेलों के प्रति अपनापन आता है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जागरूकता
CBSE अपने पोर्टल्स और स्कूलों के सोशल मीडिया पर भी नेटिव खेलों से जुड़े वीडियो, नियम और कहानियाँ शेयर करता है। इससे बच्चों को खेलों के नए-नए रूप जानने को मिलते हैं।
निष्कर्ष
CBSE ने यह सुनिश्चित किया है कि शिक्षा प्राप्ति के लिए छात्र सिर्फ किताबों तक सीमित न रहे, बल्कि बच्चों के कुल व्यक्तित्व विकास में खेल भी बराबरी से शामिल हों — खासकर भारतीय पारंपरिक खेल, जो हमारी संस्कृति और समाज की पहचान हैं। नेटिव भारतीय खेलों को बढ़ावा देना सिर्फ शारीरिक व्यायाम या मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे संस्कृति गौरव, सामूहिकता, और स्वस्थ जीवन शैली का प्रतीक है।
छात्र, अभिभावक और स्कूल मिलकर इस पहल को सफल बना सकते हैं। आज जरूरत है कि हम सब मिलकर इन खेलों को फिर से हर गली-मोहल्ले, स्कूल और गांव तक पहुँचाएँ और ‘खेलो इंडिया, बढ़ो इंडिया’ के सपने को साकार करें।
Right
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