Thursday, June 19, 2025

नजाने किस पथ पर, चला जा रहा हूँ

 नजाने किस पथ पर, चला जा रहा हूँ

शायद कदमों को अपने, छला जा रहा हूँ

ना मंज़िल है अपनी, ना कोई ठिकाना

दाएं - बाएँ करता है, मुझे सारा ज़माना

रुक कर पथ पर, मैं बाट खोजता हूँ

आगे चलता हूँ तो, मैं फिर सोचता हूँ

चारों ओर देख कर, खुद को खरोंचता हूँ

सोचता हूँ, मंज़िल कहाँ है अपनी

चल चल कर क़दम भी अब हो गए जख्मी

नाजाने जीवन मे कैसा भ्रम है पाला

भ्रमित है जीवन, मृगतृष्णा का जाला

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