शिक्षक की असुरक्षित दुनिया: जिम्मेदार कौन?
1. प्रस्तावना : “शिक्षक”—एक शब्द, कई अर्थ
“शिक्षक”—यह शब्द सुनने में जितना सरल, सम्माननीय और पवित्र लगता है, उसके भीतर उससे कहीं अधिक भार, अपेक्षा और त्याग छिपा है। शिक्षक समाज और विश्व के निर्माता माने जाते हैं, पर आज का वास्तविक परिदृश्य इससे बिल्कुल उलट दिखाई देता है। विशेष रूप से प्राइवेट स्कूलों में कार्यरत शिक्षक अपनी ही सुरक्षा और अस्तित्व के लिए संघर्ष करते दिखते हैं।
2. वर्तमान परिप्रेक्ष्य : शिक्षक बने असुरक्षा के प्रतीक
आज शिक्षक होना जितना सम्मानजनक है, उतना ही जोखिम भरा भी।
स्कूलों में शिक्षकों पर बढ़ते हमले,
गाली-गलौज,
अभद्र व्यवहार,
और कई मामलों में हथियारों से हमला—
अब दुर्लभ घटनाएँ नहीं रहीं, बल्कि एक खतरनाक सामान्य-सी बात बन गई हैं।
वे स्कूल जहाँ बच्चों का भविष्य सुरक्षित होना चाहिए, वहाँ शिक्षक स्वयं असुरक्षित हो चुके हैं।
3. शिक्षक से अपेक्षा: “चुप रहो… क्योंकि तुम शिक्षक हो”
समाज का सबसे बड़ा विरोधाभास यही है—
अपराध का शिकार शिक्षक होता है,
और चुप रहने की अपेक्षा भी उसी से की जाती है।
उसे कहा जाता है:
“तुम शिक्षक हो, सब सहो।”
“तुम्हें गुस्सा नहीं करना चाहिए।”
“तुम्हें ही शांत रहना होगा।”
मानो शिक्षक इंसान नहीं, सिर्फ बलिदान देने वाला कोई जीव हो।
आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक—तीनों स्तरों पर उसका शोषण सामान्य माना जाने लगा है।
4. अपराध और नाबालिग का भ्रम: क्या अपराध उम्र देखकर कम हो जाता है?
जब अपराधी कोई नाबालिग छात्र होता है, तो समाज का एक बड़ा वर्ग अचानक ढाल बनकर उसके साथ खड़ा हो जाता है।
उसे “बच्चा” कहकर अपराध को हल्का किया जाता है।
शिक्षक के दर्द को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
और उसके परिवार को सिर्फ औपचारिक सांत्वना देकर छोड़ दिया जाता है।
लेकिन सवाल है—
यदि एक नाबालिग को अपराध करने की समझ है,
तो उसे यह क्यों न समझाया जाए कि उसके परिणाम भी होंगे?
अपराध को उम्र देखकर नहीं, इच्छा और कृत्य देखकर परखा जाना चाहिए।
5. कानूनी और संस्थागत उदासीनता : शिक्षक अकेला क्यों रह जाता है?
दुखद सच्चाई यह है कि—
सरकार
स्कूल प्रबंधन
सामाजिक संस्थाएँ
लगभग सभी जिम्मेदारी से बच निकलते हैं।
अपराध के बाद शिक्षक—जो पीड़ित है—कानूनी, सामाजिक और मानसिक रूप से अकेला छोड़ दिया जाता है।
उसके पास ना सुरक्षा होती है, ना आर्थिक सहायता, ना ही कोई विशेष कानूनी संरक्षण।
6. कहाँ है शिक्षक-सुरक्षा कानून?
हर वर्ष समाज में नई-नई नीतियाँ और कानून बनते हैं,
लेकिन शिक्षक सुरक्षा के लिए कोई ठोस, राष्ट्रीय स्तर का कानून आज तक नहीं बनाया गया।
विशेषकर प्राइवेट स्कूलों में—
न नौकरी सुरक्षित है,
न वेतन,
न ही शारीरिक सुरक्षा।
यह विडंबना है कि जिस व्यक्ति पर भविष्य निर्माण की जिम्मेदारी है, वही अपने वर्तमान को सुरक्षित नहीं कर पाता।
7. जिम्मेदार कौन?
इस दुर्दशा के कई जिम्मेदार हैं—
सरकार, जिसने शिक्षक सुरक्षा को कभी प्राथमिकता नहीं दी।
स्कूल प्रबंधन, जो अपने कर्मचारियों के लिए सुरक्षा ढांचा नहीं बनाता।
अभिभावक, जो बच्चों की गलती को दोष आने पर स्कूल के ऊपर डाल देते हैं।
समाज, जो अपराधी को “बच्चा” कहकर छिपाता है लेकिन पीड़ित शिक्षक के साथ खड़ा नहीं होता।
कानून व्यवस्था, जिसमें शिक्षक के अधिकारों को विशेष महत्व नहीं दिया गया।
8. समाधान की दिशा में: क्या होना चाहिए?
समस्या का समाधान तभी संभव है जब शिक्षक की सुरक्षा को प्राथमिकता के रूप में स्वीकार किया जाए।
आवश्यक कदम—
राष्ट्रीय शिक्षक सुरक्षा कानून
स्कूलों में सुरक्षा प्रोटोकॉल और CCTV निगरानी
शिक्षक पर हमले को गंभीर गैर-जमानती अपराध घोषित करना
प्राइवेट शिक्षकों के लिए स्थायी वेतन और बीमा का प्रावधान
अभिभावकों और छात्रों में नैतिक शिक्षा एवं कानूनी जागरूकता
9. निष्कर्ष : शिक्षक की सुरक्षा, समाज का भविष्य
यदि शिक्षक ही सुरक्षित नहीं रहेगा, तो शिक्षा, मूल्य और भविष्य कैसे सुरक्षित रहेंगे?
शिक्षक सिर्फ एक पेशा नहीं—एक समाज का आधारस्तंभ है।
इस आधार को हिलने देना पूरे समाज को कमजोर करना है।
आवश्यक है कि हम शिक्षक को केवल अपेक्षाओं का बोझ न दें,
बल्कि सुरक्षा, सम्मान और अधिकार भी दें—
तभी वह दूसरों का भविष्य बनाने की शक्ति जुटा पाएगा।
Most relevant but still underestimated thing
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