पहाड़ हो गए खोखले,
उनमे शेष रह गया एक जोड़ा,
जो ब्याह के लाया गया था, वर्षों पूर्व
उन्होने सँजोये थे सपने
पहाड़ को सुंदर बनाने के
उन्होंने रचाए थे रंग
पहाड़ की मिट्टी में,
सजाया था हर पत्थर
अपनी उम्मीदों की बुनियाद से।
लेकिन वो अनभिज्ञ थे
भविष्य के सत्य से,
जहाँ सपनों की जड़ें
सूख जाती हैं
बेरहम समय के सामने।
शहरों ने छीन लिए
उनके आंगन के गीत,
काम, शिक्षा, और इलाज के बहाने
पलायन कर गए उनके बीज।
उनके टूटते सपने बिखर कर
पलायन करते रह शहरों की ओर
काम, शिक्षा और चिकित्सा की तलाश मे,
खेत हुए बंजर,
पानी ने छोड़ा साथ,
खेत मे शेष रह गयी
दो सूखी टहनियाँ
उन बुजुर्ग जोड़े की तरह
जो अब भी देखता है
पहाड़ों की ओर
एक नई सुबह की आस में।
भूपेंद्र रावत
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