तुमने, अश्रु तो छिपा लिए
लेकिन, ज़ख्म कैसे छिपाओगे
मिश्री जैसी वाणी से
मरहम कैसे लगाओगे?
कटाक्ष किया था तुमने जो
वो घाव बहुत ही गहरा है
विष जो फैला है, मन मे
उसकी औषधि, कहाँ से लाओगे?
डोर रिश्तों की कोमल है
रिश्ते मे पड़ी गांठ को
क्या, तुम खोल पाओगे?
बिखरे मोती माला के
कहाँ से समेट कर लाओगे ?
Bahut acha prayaas
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