उलझा हूँ,जिंदगी की हर एक गुत्थियाँ सुलझाने मे
जब से दस्तक दी है दर्द ने मेरे सिराने मे
बड़ी मशक्कत से पाला था मैंने एक भ्रम
ठोकरों ने बताया ,कोई नहीं होता अपना इस जमाने मे
दोस्ती इतनी अच्छी भी नहीं कि भूल बैठो खुद को
दोस्त ही वार करता है,पीछे से जख्म को सहलाने मे
बेस्वार्थ प्यार कि डोर से जुड़ी हुई है, माँ
वरना सवार्थ कि डोर से जुड़ा है, हर रिश्ता जमाने मे
माँ की गोद ने भूला दिया जहाँ के दर्द को
कोई जादू हो जैसे माँ के सिराने मे
भूपेंद्र रावत
Nice👍👍👍👍👍
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