Monday, January 20, 2025

दम तोड़ते रिश्तों की वजह

रिश्ते अक्सर कच्चे धागे की डोर के समान होते है। अगर रिश्तों की नींव कमजोर हो तो वह रिश्ता अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। भारतीय समाज और संस्कृति की इन रिश्तों की कड़ी मे पति और पत्नी का रिश्ता सभी रिश्तों मे से एक पवित्र रिश्ता माना गया है और यह नाजुक कड़ी के समान होता है। लेकिन मानो आज के भारतीय समाज के रिश्तों को पाश्चत्य स्भ्यता की नज़र सी लग गयी हो। आधुनिक और सव्वालंबी, बनने की इस दौड़ मे आज रिश्ते पीछे छूटते जा रहे है और बच रहा है, एक टूटा परिवार लेकिन,जहाँ एक ओर विवाह से पूर्व कई तरह की जानकारी एकत्रित या छान-बिन की जाती है। उसके बावजूद रिश्ते कुछ ही दिनों या वर्षों मे टूट जाते है। लेकिन इतनी सावधानी बरतने के पश्चात भी आखिरकार, ऐसा क्यों हो रहा है? 

रिश्तों को मजबूत बनाने वाली सबसे मजबूत कड़ी का नाम है "विश्वास" और इस विश्वास की कड़ी को कमजोर बनाता है संदेह करने की बीमारी या आदत। किसी रिश्ते के बीच अगर संदेह उत्पन्न हो जाये तो समय के साथ धीरे धीरे वो रिश्ता कमजोर होने लगता है। जिसकी वजह से रिश्ते एक दूसरे मे बोझ बन जाते है। और उन बोझ से लदे हुए रिश्तों को ज्यादा दूर तक ले जाना सबके लिए मुश्किल हो जाता है। जिसकी वजह से रिश्ते टूट जाते है या फिर समाज को दिखाने के लिए मात्र छलावा बन कर रह जाते है। 

इसके अतिरिक्त रिश्तों मे आपसी सहयोग न होना, गलतफ़हमी, धोखा देना, सहनशील न होना तथा आपस मे बाते न करना आदि भी रिश्ता टूटने के अहम कारणों मे से एक होता है। लेकिन इन सब कारणों के बारे मे पता होने के बावजूद भी अक्सर हम इन सभी को अनदेखा कर देते है और सोचते है कि वक़्त के साथ सभी समस्या और परेशानी का हल अपने आप ही हो जाएगी। लेकिन वास्तविक जीवन मे वक़्त के साथ  ये समस्याएं कम होने के बावजूद बढ़ती जाती है। अगर समय रहते उचित कदम उठा लिया जाये तो रिश्तों को टूटने से बचाया जा सकता है। 

रिश्तों की डोर को मजबूत बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है अपने अहं को त्यागना और एक  दूसरे को समझना, स्वीकार करना और हर एक विषय पर खुल कर बाते करना आदि। बातों से ही हमें सारे प्र्श्नो के जवाब मिल सकते है। कई बार हम प्र्श्नो का बिना जवाब जाने अपनी एक अलग  विचारधारा बना लेते है जिससे  हमारे विचार हमारे रिश्तों पर हावी होने लग जाते है और सिसकिया लेते खोखले रिश्ते दम तोड़ देते है जो अपनी मंज़िल तक  पहुँच नहीं पाते।   



भूपेंद्र रावत  

 

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