Thursday, February 20, 2025

किसी दबाव मे नहीं बल्कि छात्र अपनी रुचि के अनुसार स्ट्रीम का करें चयन

कक्षा 10 पास करने के बाद विषय चयन को लेकर छात्र और अभिभावक अक्सर तनाव में रहते हैं, क्योंकि यह उनके भविष्य के करियर पर असर डालता है।



कक्षा 11 मे विषय चयन से संबंधित तनाव को कैसे दूर करें और सही विषय कैसे चुनें?

1. छात्र की रुचि और क्षमता को समझें

सबसे पहले यह देखें कि छात्र की रुचि किस विषय में है।
जिन विषयों में छात्र को अच्छा लगता है और जिनमें वह बेहतर प्रदर्शन करता है, उन्हें प्राथमिकता दें।
जबरदस्ती किसी स्ट्रीम को न चुनें, बल्कि उस क्षेत्र को देखें जिसमें छात्र आनंद के साथ सीख सकता है।

2. किसी दबाव मे नहीं बल्कि छात्र अपनी रुचि के अनुसार स्ट्रीम का करें चयन 

(A) साइंस (Science) - मेडिकल और नॉन-मेडिकल
अगर किसी छात्र की रुचि गणित (Maths) और विज्ञान (Science) में है और वह इंजीनियरिंग, मेडिकल, रिसर्च या टेक्नोलॉजी में जाना चाहता है, तो उस छात्र के लिए साइंस स्ट्रीम सही होगी। 

PCM (Physics, Chemistry, Mathematics) – इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, NDA, डिफेंस, डाटा साइंस
PCB (Physics, Chemistry, Biology) – डॉक्टर, फार्मेसी, बायोटेक, नर्सिंग
PCMB (Physics, Chemistry, Maths, Biology) – दोनों क्षेत्रों के लिए विकल्प खुले रहते हैं।

(B) कॉमर्स (Commerce) - बिजनेस और फाइनेंस
अगर छात्र का झुकाव बिजनेस, एकाउंटिंग, फाइनेंस और एनालिसिस की ओर है, तो बेहतर भविष्य के लिए कॉमर्स स्ट्रीम सही हो सकती है।

Commerce with Maths – CA, CS, CFA, MBA, बैंकिंग
Commerce without Maths – बिजनेस मैनेजमेंट, मार्केटिंग, होटल मैनेजमेंट

CA - Charted Accountant
CS - Company Secretary 
CFA - Charted Financial Analyst 

(C) आर्ट्स/ह्यूमैनिटीज (Arts/Humanities) - सोशल साइंस और क्रिएटिव फील्ड्स

अगर छात्र को इतिहास, राजनीति, मनोविज्ञान, मीडिया, डिजाइनिंग या कानून (Law) में रुचि है, तो आर्ट्स स्ट्रीम सही हो सकती है।
Political Science, History, Geography – UPSC, लॉ, टीचिंग, रिसर्च
Psychology, Sociology, Philosophy – काउंसलिंग, सोशल वर्क
Fine Arts, Journalism, Media Studies – फिल्ममेकिंग, ग्राफिक डिजाइन, डिजिटल मार्केटिंग

3. करियर की संभावनाओं को समझें
हर स्ट्रीम में ढेर सारे करियर विकल्प होते हैं। आजकल नए करियर ऑप्शंस (AI, Data Science, Ethical Hacking, Game Development, Digital Marketing) भी उभर रहे हैं, जिनमें भविष्य के लिए अच्छे अवसर हैं।

4. एक्सपर्ट की सलाह लें
करियर काउंसलर से परामर्श लें।
अपने स्कूल के शिक्षकों और गाइडेंस काउंसलर से बात करें।
11वीं-12वीं में पढ़ रहे सीनियर्स और प्रोफेशनल्स से राय लें।

5. गलत स्ट्रीम चुनने का डर न रखें

अगर एक बार कोई स्ट्रीम चुन ली और बाद में समझ आया कि यह सही नहीं है, तो भी आगे बदलने के मौके होते हैं। कई कोर्सेस में स्ट्रीम की बाध्यता नहीं होती, जैसे UPSC, MBA, Digital Marketing, Entrepreneurship आदि।

6. अभिभावक दबाव न बनाएं

माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों की पसंद को समझें और उन्हें उनकी रुचि के अनुसार आगे बढ़ने दें।
समाज या रिश्तेदारों की राय से ज्यादा, बच्चे की रुचि और क्षमता को प्राथमिकता दें।

7. करियर लक्ष्य तय करें
अगर आपको अभी करियर का पक्का आइडिया नहीं है, तो ऐसे विषय चुनें जो आपके लिए अधिक अवसर खोलें।


निष्कर्ष
बच्चे की रुचि, क्षमता और भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए विषय चुनना चाहिए। अगर कोई संदेह हो, तो एक्सपर्ट से बात करें और भविष्य के करियर विकल्पों को अच्छे से समझें।

Tuesday, February 18, 2025

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 बनाम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986: मे मुख्य अंतर

NEP का मतलब है National Education Policy (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) है। इस शिक्षा नीति की घोषणा भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को की गयी थी। 1986 की  शिक्षा नीति के स्थान पर एनईपी 2020 शिक्षा नीति को लाया गया। एनईपी 2020 का मुख्य उद्देश्य देश की शिक्षा प्रणाली को दिशा और रूपरेखा प्रदान करने के साथ शिक्षा को अधिक समावेशी, लचीला और गुणवत्तापूर्ण बनाना है, ताकि छात्रों को 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया जा सके। 

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थी.
  • इस कमिटी ने मई 2019 में सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए एनईपी का ड्राफ़्ट सौंपा था.



2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) की मुख्य विशेषताएं:

शिक्षा का प्रारंभिक ढांचा:

5+3+3+4 का संरचना मॉडल:

5 साल: फाउंडेशनल स्टेज (प्रारंभिक बाल शिक्षा और कक्षा 1-2)

3 साल: प्रिपरेटरी स्टेज (कक्षा 3-5)

3 साल: मिडिल स्टेज (कक्षा 6-8)

4 साल: सेकेंडरी स्टेज (कक्षा 9-12)

बहुभाषी शिक्षा:

प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा या स्थानीय भाषा में पढ़ाने पर जोर।

तीन-भाषा फॉर्मूला: क्षेत्रीय भाषा, हिंदी और अंग्रेज़ी।

कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा:

कक्षा 6 से ही व्यावसायिक शिक्षा और इंटर्नशिप के अवसर।

हायर एजुकेशन में सुधार:

स्नातक पाठ्यक्रम 3 या 4 साल के होंगे, मल्टी-एंट्री और मल्टी-एग्जिट विकल्प के साथ।

एक नई नियामक संस्था: HECI (Higher Education Commission of India) स्थापित की जाएगी।

डिजिटल शिक्षा:

ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहन और डिजिटल संसाधनों का विकास।

शिक्षकों के लिए सुधार:

शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार और उनकी गुणवत्ता को बढ़ावा देना।

अन्य महत्वपूर्ण पहल:

राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र - PARAKH की स्थापना, जो छात्रों के मूल्यांकन को सुधारने में मदद करेगा।

बोर्ड परीक्षाओं में सुधार: रटने के बजाय समझ और विश्लेषणात्मक कौशल पर जोर।


  • NEP 2020 की खासियत 


राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की खासियतें इसे भारत की शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव के रूप में प्रस्तुत करती हैं। इसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

1. नया संरचना मॉडल (5+3+3+4):

  • पुरानी 10+2 प्रणाली को बदलकर 5+3+3+4 मॉडल लागू किया गया है:
  • 5 साल: फाउंडेशनल स्टेज (बालवाटिका, कक्षा 1-2)
  • 3 साल: प्रिपरेटरी स्टेज (कक्षा 3-5)
  • 3 साल: मिडिल स्टेज (कक्षा 6-8)
  • 4 साल: सेकेंडरी स्टेज (कक्षा 9-12)

इस मॉडल का उद्देश्य बच्चों के सीखने के तरीके और मानसिक विकास के अनुरूप पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों को तैयार करना है।

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2. मातृभाषा में शिक्षा पर जोर:

प्राथमिक स्तर (कक्षा 5 तक, यदि संभव हो तो कक्षा 8 तक) में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाने पर जोर।

इससे बच्चों की समझने की क्षमता और संज्ञानात्मक विकास में सुधार की उम्मीद है।

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3. व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास:

कक्षा 6 से व्यावसायिक शिक्षा और इंटर्नशिप के अवसर।

बच्चों में व्यावहारिक कौशल और रोजगार के लिए तैयार करने पर फोकस।

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4. फ्लेक्सिबल और मल्टी-एंट्री, मल्टी-एग्जिट सिस्टम:

  • उच्च शिक्षा में छात्र किसी भी स्तर पर प्रवेश या निकास ले सकते हैं:
  • 1 साल: सर्टिफिकेट
  • 2 साल: डिप्लोमा
  • 3 साल: बैचलर डिग्री
  • 4 साल: रिसर्च के साथ बैचलर डिग्री

इससे छात्रों को अपने करियर की दिशा बदलने और अपनी रुचियों के अनुसार कोर्स चुनने की स्वतंत्रता मिलती है।

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5. बोर्ड परीक्षाओं में सुधार:

बोर्ड परीक्षाओं का उद्देश्य अब केवल रट्टा लगाने की बजाय समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता को परखना है।

छात्रों को तनाव से मुक्त करने के लिए, बोर्ड परीक्षाओं को आसान और मॉड्यूलर बनाने की योजना।

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6. डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा:

ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहन और डिजिटल संसाधनों का विकास।

ई-लर्निंग के लिए डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना।

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7. शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार:

शिक्षकों के लिए 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड B.Ed. कोर्स अनिवार्य।

शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार और उन्हें आधुनिक शिक्षण विधियों में प्रशिक्षित करना।

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8. उच्च शिक्षा में सुधार:

एक नई नियामक संस्था: HECI (Higher Education Commission of India) बनाई जाएगी, जो UGC और AICTE को एकीकृत करेगी।

अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) की स्थापना।

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9. समग्र (Holistic) शिक्षा और बहुविषयी दृष्टिकोण:

छात्रों को कला, विज्ञान, खेल, व्यावसायिक विषयों का चुनाव करने की आज़ादी।

विषयों के बीच कठोर विभाजन को समाप्त किया गया है, जिससे छात्र अपनी रुचियों के अनुसार विषय चुन सकते हैं।

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10. मूल्यांकन में सुधार (PARAKH):

राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र - PARAKH की स्थापना, जो एक व्यापक और निरंतर मूल्यांकन प्रणाली को लागू करेगा।

छात्रों के समग्र विकास को ध्यान में रखते हुए उनकी आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और समस्या-          समाधान कौशल का आकलन किया जाएगा।

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NEP 2020 की खासियतें क्यों महत्वपूर्ण हैं?

यह नीति छात्रों को 21वीं सदी के कौशल से लैस करने के लिए डिज़ाइन की गई है।

रटने वाली पढ़ाई को हटाकर समझ आधारित और व्यावहारिक ज्ञान को प्राथमिकता दी गई है।

यह भारत को वैश्विक शिक्षा मानकों के अनुरूप बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को भारत की शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है। यह पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 (जिसे 1992 में संशोधित किया गया था) से कई मामलों में अलग और अधिक उन्नत है।

मुख्य अंतर NEP 2020 बनाम NEP 1986:


1. संरचना में बदलाव:

पुरानी नीति (1986/1992):

  • 10+2 मॉडल:
  • 10 साल की स्कूली शिक्षा (प्राथमिक से माध्यमिक)
  • 2 साल की सीनियर सेकेंडरी (11वीं और 12वीं)

नई नीति (NEP 2020):

  • 5+3+3+4 मॉडल:
  • 5 साल: फाउंडेशनल स्टेज (बालवाटिका, कक्षा 1-2)
  • 3 साल: प्रिपरेटरी स्टेज (कक्षा 3-5)
  • 3 साल: मिडिल स्टेज (कक्षा 6-8)
  • 4 साल: सेकेंडरी स्टेज (कक्षा 9-12)

यह मॉडल बच्चों के मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक विकास को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।

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2. भाषा नीति:

पुरानी नीति:

त्रिभाषा फार्मूला था, लेकिन इसे सख्ती से लागू नहीं किया गया।

अंग्रेज़ी पर अधिक जोर था, विशेषकर माध्यमिक और उच्च शिक्षा में।

नई नीति:

मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में प्राथमिक शिक्षा देने पर जोर।

त्रिभाषा फॉर्मूला को लचीलेपन के साथ लागू किया गया है (मातृभाषा, हिंदी, अंग्रेज़ी)।

विदेशी भाषाओं को भी माध्यमिक स्तर पर वैकल्पिक विषय के रूप में पेश करने का प्रावधान।

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3. बोर्ड परीक्षाओं में सुधार:

पुरानी नीति:

रटने और याद करने पर आधारित मूल्यांकन प्रणाली।

परीक्षा-उन्मुख और तनावपूर्ण वातावरण।

नई नीति:

बोर्ड परीक्षाओं को समझ, विश्लेषणात्मक क्षमता और सोचने की योग्यता पर केंद्रित किया गया है।

मॉड्यूलर परीक्षा प्रणाली: छात्र सेमेस्टर के आधार पर भी परीक्षा दे सकते हैं।

परीक्षा का उद्देश्य केवल अंक प्राप्त करना नहीं, बल्कि सीखने की गुणवत्ता को मापना है।

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4. विषयों का चयन और लचीलापन:

पुरानी नीति:

विज्ञान, वाणिज्य और कला जैसे कड़े स्ट्रीम विभाजन।

छात्रों को एक निश्चित स्ट्रीम का चुनाव करना होता था।

नई नीति:

स्ट्रीम का लचीलापन: छात्र विज्ञान, कला, वाणिज्य और व्यावसायिक विषयों को एक साथ चुन सकते हैं।

बहुविषयी दृष्टिकोण को अपनाया गया है, जिससे छात्र अपनी रुचि के अनुसार विषयों को संयोजित कर सकते हैं।

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5. व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास:

पुरानी नीति:

व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा से अलग माना जाता था।

व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए बहुत कम अवसर।

नई नीति:

कक्षा 6 से ही व्यावसायिक शिक्षा और इंटर्नशिप के अवसर।

कौशल विकास पर जोर, जिससे छात्र रोजगार के लिए तैयार हो सकें।

कोडिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और आधुनिक तकनीक से संबंधित विषय शामिल किए गए हैं।

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6. उच्च शिक्षा में सुधार:

पुरानी नीति:

कठोर तीन वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम।

UGC और AICTE जैसी अलग-अलग नियामक संस्थाएं।

नई नीति:

  • मल्टी-एंट्री और मल्टी-एग्जिट सिस्टम:
  • 1 साल: सर्टिफिकेट
  • 2 साल: डिप्लोमा
  • 3 साल: बैचलर डिग्री
  • 4 साल: रिसर्च के साथ बैचलर डिग्री

एकल नियामक निकाय: HECI (Higher Education Commission of India), जो UGC और AICTE को मिलाकर बनाया जाएगा।

राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) की स्थापना, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए।

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7. डिजिटल शिक्षा और तकनीकी उपयोग:

पुरानी नीति:

तकनीक का सीमित उपयोग, ई-लर्निंग पर ज्यादा जोर नहीं।

नई नीति:

ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा।

डिजिटल सामग्री विकसित करने और इसे दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंचाने पर जोर।

AI, मशीन लर्निंग जैसे आधुनिक तकनीकों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

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8. शिक्षक प्रशिक्षण और गुणवत्ता:

पुरानी नीति:

शिक्षक प्रशिक्षण और उनकी गुणवत्ता में सुधार के लिए कम प्रावधान।

नई नीति:

शिक्षकों के लिए 4 वर्षीय इंटीग्रेटेड B.Ed. कोर्स अनिवार्य।

निरंतर प्रोफेशनल डेवलपमेंट (CPD) पर जोर।

शिक्षकों के लिए आधुनिक शिक्षण विधियों का प्रशिक्षण।

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9. मूल्यांकन प्रणाली में बदलाव:

पुरानी नीति:

परीक्षा-उन्मुख और अंक आधारित मूल्यांकन।

नई नीति:

राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र - PARAKH की स्थापना।

समग्र मूल्यांकन प्रणाली: जिसमें सोचने की क्षमता, विश्लेषण, रचनात्मकता और समस्या-समाधान कौशल को महत्व दिया गया है।

होलिस्टिक रिपोर्ट कार्ड, जिसमें शैक्षणिक प्रदर्शन के साथ-साथ सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों में भी मूल्यांकन होगा।

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निष्कर्ष:

NEP 2020 में शिक्षा को अधिक लचीला, समावेशी और समग्र बनाने का प्रयास किया गया है।

मूल्य आधारित, अनुभवात्मक और कौशल केंद्रित शिक्षा पर जोर दिया गया है।

वैश्विक मानकों के अनुसार शिक्षा प्रणाली को ढालने की कोशिश की गई है।




Monday, February 17, 2025

जेमिनी 2.0 AI मॉडल के साथ गूगल बना और स्मार्ट

हाल ही मे गूगल ने अपना अब तक का सबसे सक्षम AI मॉडल लॉन्च किया है। गूगल के अनुसार इस नए AI मॉडल को एजेंटिक युग के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) पर आधारित सिस्टम है, जो गूगल के चैटबॉट या डिजिटल सहायक के रूप में कार्य करता है। यह GPT-3 या GPT-4 जैसे मॉडल्स से प्रभावित है, लेकिन इसमें गूगल की विशेषताओं और डेटा संसाधन का उपयोग होता है।

जेमिनी 2.0 में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की कई खासियतें हैं जो इसे डीप सीक और AI से एक उन्नत और शक्तिशाली तकनीकी प्रणाली बनाती हैं। 




1. बेहतर प्राकृतिक भाषा समझ:
  • गूगल ने जेमिनी 2.0 को और ज्यादा बेहतर और प्रभावशाली बनाने के लिए, इसमे नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) का इस्तेमाल किया है, जो इसे अधिक प्रभावी तरीके से मानव भाषा को समझने और उसके अनुसार प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाता है। इसका मतलब है कि यह जटिल सवालों और संवादों को भी अच्छे से समझ सकता है।
2. संवादात्मक क्षमता:

  • जेमिनी 2.0 में कंटेक्स्ट-अवेयर (context-aware) संवाद क्षमताएँ हैं, जिसका मतलब है कि यह किसी बातचीत के पिछले संदर्भ को ध्यान में रखते हुए अगले सवाल का उत्तर देता है। इससे यह अधिक स्वाभाविक और निरंतर संवाद करता है।
3. इंटेलिजेंट सुझाव और अनुकूलन:
  • यह व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं की पसंद और प्राथमिकताओं के आधार पर स्मार्ट सुझाव और अनुकूलित प्रतिक्रिया देने की क्षमता रखता है। जैसे कि एक वर्चुअल सहायक के रूप में काम करते हुए, यह उपयोगकर्ता की आदतों और सवालों के हिसाब से अपने उत्तरों को समायोजित करता है।
4. मल्टी-टास्किंग और रचनात्मकता:
  • जेमिनी 2.0 विभिन्न प्रकार के क्रिएटिव टास्क जैसे कि लेखन, डिजाइन, और विचारों को उत्पन्न करने में सक्षम है। यह केवल सवालों का जवाब नहीं देता, बल्कि नए विचारों और रचनात्मक सामग्री को भी उत्पन्न करता है।
5. बेहतर डेटा प्रोसेसिंग और रिस्पॉन्स टाइम:
  • जेमिनी 2.0 उच्च गति से डेटा प्रोसेसिंग करने की क्षमता रखता है, जिससे यह बहुत तेज़ी से जानकारी प्राप्त और प्रोसेस करता है। इसका मतलब है कि यह कम समय में अधिक सटीक जवाब देता है।
6. इंटेग्रेटेड फीचर्स:
  • जेमिनी 2.0 को गूगल के अन्य प्रोडक्ट्स और सेवाओं के साथ इंटेग्रेट किया गया है, जैसे गूगल सर्च, गूगल असिस्टेंट, और गूगल क्लाउड, जिससे यह अधिक प्रभावी और बहुपरतीय हो जाता है।
7. बेहतर सुरक्षा और गोपनीयता:
  • इस सिस्टम में डेटा सुरक्षा और गोपनीयता पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिससे उपयोगकर्ताओं की जानकारी सुरक्षित रहती है। इसके अलावा, यह उपयोगकर्ताओं को उनकी जानकारी पर अधिक नियंत्रण प्रदान करता है।
अगर हम गूगल के नए टूल जेमिनी 2.0 की बात करें तो यह एआई की वह तकनीक है, जो अन्य AI टूल की तुलना मे अधिक सटीक, तेज़, और स्मार्ट है। यह सामान्य प्रश्नों से लेकर अधिक जटिल कार्यों तक को आसानी से कर सकता है, और उन सभी लोगों को बेहतर अनुभव प्रदान करता है, जो कि अपनी पर्सनल और प्रोफ़ेसनल जिंदगी मे इसका उपयोग कर रहे/करते  है।

Saturday, February 15, 2025

प्रयास करते जाओ, आगे बढ़ते जाओ जीवन के इस पथ पर निखरते जाओ

 हार तब नहीं होती, जब हार जाते हैं, बल्कि हार तब होती है, जब हार मान जाते हैं।

हर एक शख्स को अपने जीवन मे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस दौरान कई लोग संघर्ष की सीढ़ी पर चलकर सफलता की राह से कांटो को हटाते है और कुछ उनसे डरकर अपनी राह मे विराम लगा देते है। लेकिन असली हार तब होती है, जब हम जीवन की चुनौतियों और कठिनाइयों के सामने हार मान लेते हैं। सफलता की राह इतनी भी आसान नहीं होती, जितनी की सबको लगती है।  लेकिन उस रास्ते पर चलने वाला हर व्यक्ति अगर कभी गिरता है तो वह सिर्फ एक अस्थायी असफलता होती है, जो आगे चलकर उसे एक मजबूत और बेहतर इंसान बना देती है।

जीवन की असली चुनौती

हमारे सामने कभी न कभी ऐसी स्थिति आती है, जहां हमें लगता है कि बार बार प्रयास करने के बावजूद भी हम असफल हो रहे है या हम असफल हो गए हैं। जिससे हम निराश होकर थक जाते, और हमारे मन मे नकारात्मक विचार पनपने लगते है।  इसके कारण सब कुछ छोड़ देने का मन करता है। लेकिन सच यही है कि असफलता एक प्रक्रिया है, और जब तक हम कोशिश करते रहते हैं, हम हार नहीं सकते। असली हार तब होती है, जब हम अपने सपनों और लक्ष्यों के रास्ते में आने वाली मुश्किलों को देखकर उनसे पीछे हट जाते हैं।

असफलता: एक सबक

असफल होने के डर से प्रयास ना करना कायरता की सबसे बड़ी निशानी है। प्रयासरत रहते हुए असफल होना अक्सर दर्शाता है कि अभी हम जीवित है और हमारे अंदर जज्बा है कुछ नया करने और सीखने का, जितना हम प्रयास करते है, उतना ही कुछ नया सीखते हैं। असफलता को अगर सही तरीके से देखा जाए, तो यह एक सबक है जो हमें और बेहतर बनाने का काम करता है। यह हमें हमारी कमजोरी और ताकत का एहसास कराता है। हमारा हर एक प्रयास हमे मंज़िल के करीब ले जाता है। अगर हम लगातार प्रयास करते रहें, तो वह दिन दूर नहीं होता जब हमें हमारी मेहनत का फल मिलेगा।

हार मानने से पहले कोशिश करें

अगर आप किसी लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं और राह में मुश्किलें आती भी हैं तो, तो यह कदापि नहीं सोचें कि लक्ष्य को पाना कठिन है। आपकी हर एक कोशिश राह से कांटो को हटा कर मुश्किलों को सरल बनाती है। इस दौरान यह अवश्य सोचे कि अगर आप बीच मे ही हार मान लेते हैं तो आपका वह सपना अधूरा रह जाएगा, जिसके लिए आपने रात-दिन कड़ी मेहनत की। हार मानने से पहले एक बार पुनः कोशिश करें, और हर एक प्रयास से सीख ले इस तरह से आपका आत्मविश्वास तो बढ़ता ही है, बल्कि आपको सफलता का मार्ग भी दिखाई देता है। जब हम निरंतर अभ्यास और प्रयास करते रहते हैं, तो असफलता हमारे जीवन मे सीख का एक नया अध्याय जोड़ती है, जो हमें समय के साथ और बेहतर बनाती है।

सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास

परिस्थिति कैसी भी हो हमें अपने ऊपर नकारात्मक विचारों को हावी नहीं होने देना चाहिए। आपकी सकारात्मक सोच ही आपके अंदर आत्मविश्वास बनाए रखती हैं, जिससे हम किसी भी मुश्किल का सामना आसानी से कर सकते हैं। जीवन के संघर्षों को जीतने के लिए सबसे जरूरी चीज है हमारी मानसिकता। अगर हम परिस्थितियों को अवसर के रूप मे देखते है और खुद पर विश्वास रखते हैं तो  हम अपनी विफलता से भी सीख ले सकते है, और असफलता को अंततः सफलता में बदल सकते है।

निष्कर्ष

कभी न कभी जीवन में सब कुछ सही नहीं होता, लेकिन जब तक हम हार नहीं मानते, तब तक जीत की उम्मीद रहती है। याद रखें, हार तब नहीं होती, जब हार जाते हैं, बल्कि हार तब होती है, जब हार मान जाते हैं। जब आप अपनी पूरी कोशिश करें और फिर भी न सफल हों, तो इसे एक सबक के रूप में लें और फिर से शुरुआत करें। इस तरह से आप न केवल अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे, बल्कि आप एक सशक्त और आत्मविश्वासी इंसान के रूप में उभरेंगे।




हार के डर से, जो राह अपनी बदल लेते है

कांटो को  जीवन मे अपने  भर लेते है

मंज़िल को करके दूर खुद से

असफलता को वो चुन लेते है।   

आपके प्रयास ही, आपको सफलता दिलाते है

जो प्रयास नहीं करते, वो असफल हो जाते है

लगा देते है विराम, जो अपने प्रयासों मे

असफलताओं को वो गले लगाते है


प्रयास असफल होने के पश्चात यह बात अपने दिमाग मे जरूर रखें कि असली हार तब होती है जब आप अपने उस परिणाम को अंतिम परिणाम मान लेते है, और पुन: प्रयास नहीं करते। इसलिए जब तक सफलता प्राप्त नहीं होती तब तक कभी हार मत मानिए!


भूपेंद्र रावत 

Friday, February 14, 2025

हार तब नहीं होती, जब हार जाते है

हार तब नहीं होती, 

जब हार जाते है 

बल्कि हार तब होती है, 

जब हार मान जाते है। 

निराश हो कर 

हार मान जाना 

सफलता के रास्ते 

बंद कर देता है

सपने और लक्ष्यों को 

मंझधार मे छोड़ देता है

हार मानने से पहले 

पुनः प्रयास करो

आशावादी बनो और 

अभ्यास करो    




भूपेंद्र रावत 

 


Thursday, February 13, 2025

हार मान जाओगे तो जीतोगे कैसे?

हार मान जाओगे तो 
जीतोगे कैसे?
किताब अपनी किस्मत की 
लिखोगे कैसे?
प्रयास करने पर ही तो 
द्वार सफलता का खुलता है 
किस्मत वालों का नहीं 
मेहनत करने वालों का
भाग्य बदलता है
प्रयास अगर 
विफल हो भी जाये तो, 
संयम रखना होता है 
राह के कांटो को कुचल
आगे चलना होता है 
हार अंतिम 
परिणाम नहीं 
स्वीकार करों
उठो और अंतिम 
सांस तक प्रयास करों 

भूपेंद्र रावत 

 

Wednesday, February 12, 2025

खुशी और गम के साथ मैंने जिया है, जीवन को

खुशी और गम के साथ 
मैंने जिया है, जीवन को

गम के दिनों से 
मैं हुआ रूबरू
हँसते हुए,
जीवन की चुनौतियों से 
मैंने नहीं मानी हार 
बल्कि मैंने ज़िंदगी के 
हर पल का उठाया 
भरपूर लुत्फ 
जीने की, कि कोशिश 


जीवन की राह पर 
मैंने देखें कई मोड
नकाब ओढ़े हुए 
और बदलते हुए 
चेहरे के साथ  
लेकिन नहीं मानी
मैंने हार 

आशाओं से भरे 
जीवन मे 
मैंने सीखा 
ज़िंदगी को जीना
क्योंकि मुझे पता था 
अभी बहुत कुछ 
है शेष, जीवन में  

Tuesday, February 11, 2025

पुरुष जो मंडराते रहे भौरों की तरह हर एक स्त्री पर

पुरुष जो मंडराते रहे 

भौरों की तरह 

हर एक स्त्री पर, 

उनकी नज़रे चिपकी रहती है 

स्त्री की हर अदा पर 



वे स्त्री के पास मंडराते है 

जैसे भौरें  फूलों के आसपास,

उनकी बातें मीठी और मधुर होती है 

लेकिन उनके इरादे क्या होते है?

क्या उनके इरादे होते है, प्रेम के? 

क्या वे स्त्री का सम्मान करते है?

या बस अपने स्वार्थ के लिए

या  फिर शारीरिक संतुष्टि के लिए 

करते है उनका उपयोग ?


स्त्री को सावधान रहना चाहिए 

ऐसे पुरुषों से 

जो मंडराते रहते है

उनके इर्द-गिर्द 

उनकी नज़रों मे 

छुपा होता है 

एक खतरा जो 

पहुंचा सकता है

नुकसान स्त्री को। 


 

भूपेंद्र रावत 

Sunday, February 9, 2025

मैंने देखा है विशाल पर्वतों को सूक्ष्म होते हुए।




मैंने सुना है, बुजुर्गों से 

पहाड़ नहीं होते बूढ़े 

वो कल भी अटल थे 

आज भी अटल है 

और भविष्य मे भी ऐसे ही रहेंगे 

लेकिन मैंने महसूस की है 

उजड़ते हुए पहाड़ की पीड़ा 

कभी नहीं देखा मैंने 

खोखले होते पहाड़ को चीखते

और चिल्लाते हुए 

बल्कि मैंने देखा है उन्हें   

भूस्खलन के रूप मे 

नीचे खिसकते हुए

समतल बनते हुए 

मैंने देखा है 

विशाल पर्वतों को 

सूक्ष्म होते हुए।  

 



भूपेंद्र रावत 


 

दुनिया के शोर से दूर

दुनिया के शोर से दूर 
एकांत जरूरी है। 
मन की शांति के लिए 
स्वयं को समझने के लिए 
कमियों को दूर करने के लिए 
क्योंकि,
एक दिन की तपस्या से 
नहीं बना कोई बुद्ध, और विवेकानंद 
बल्कि भौतिक जीवन को 
त्याग कर, जिन्होने भी 
अपनाया एकांत 
उन्हें प्राप्त हुआ दिव्य ज्ञान  




भूपेंद्र रावत 

Saturday, February 8, 2025

दुनिया की शुरुआत हुई थी, शून्य से

दुनिया की 
शुरुआत हुई थी, 
शून्य से 
धीरे-धीरे बदलाव के साथ 
विकसित होती गयी, दुनिया और 
विकास की हर एक सीढ़ी पर 
दस्तक दी, विनाश ने 


धीरे-धीरे लुप्त होते गए 
वन्य-जीव 
और उनकी 
अस्थियों को रखा गया 
संग्रहालय मे 
वृक्ष काटने की श्रंखला मे 
लुप्त होते गए जंगल
अस्तित्व मे आई   
"मानव सभ्यता" और 
मानव बस्तियां,
समय के साथ होते बदलाव मे
जो नहीं कर सकें समायोजन  
धीरे-धीरे वो होते गए लुप्त   
शेष रह गयी 
जो मानव प्रजातियां
उसे नाम दिया गया 
"होमो सेपयंस" और 
उनके वंशज 
हर एक बदलाव और 
मानव प्रजातियों 
के दस्तावेजों को 
पुन: रखा गया 
संग्रहालयों मे  
लेकिन फिर से शून्य होती 
दुनिया के दस्तावेजों 
के लिए कौन 
बनाएगा "संग्रहालय" 

Friday, February 7, 2025

सीबीएसई बोर्ड 2025 की आन्सर शीट भरते समय छात्र निम्न निर्देशों का करें पालन

सीबीएसई बोर्ड 2025 की परीक्षा देने जा रहे छात्रों के मन मे संशय है कि, कहीं बोर्ड की आन्सर शीट भरते समय उनसे कोई गलती ना हो जाये। वह बोर्ड कि आन्सर शीट सावधानी पूर्वक कैसे भरें ।  




1. छात्र शीट भरने के लिए जेल पेन का प्रयोग ना करें। जेल पेन के स्थान पर काले या नीले बॉल प्वाइंट पेन का प्रयोग करें।

2. छात्र  अपना नाम, रोल नंबर, सेंटर नंबर,सब्जेक्ट कोड, स्कूल नंबर,इत्यादि उचित रूप से भरे। तथा उसके नीचे दिये गए बुलबुलों को पूरी तरह से काला कर दें। 

3. आपकी शीट पर जहाँ यह निर्देश दिया गया है कि, आपको बुलबुलों को पूरी तरह से भरना है, वहाँ टिक मार्क या क्रॉस मार्क न लगाएँ। अगर कोई छात्र बुलबुलों को अच्छे तरह से नहीं भरता है या फिर आधा भरा छोड़ कर आ जाता है तो इस  भरे हुए या ज़्यादा भरे हुए बुलबुलों को सॉफ़्टवेयर अच्छे से पढ़ नहीं पाएगा।

4. जब तक ऐसा न कहा जाए, अपने उत्तरों को चिह्नित करने के लिए कभी भी पेंसिल का उपयोग न करें, ऐसी स्थिति में केवल HB या 2B पेंसिल का ही उपयोग करें।

5.  आन्सर शीट को भरते समय छात्र, त्रुटियों को सुधारने के लिए  कोई भी ऐसी तकनीक का प्रयोग ना करे जिससे की उनकी शीट खराब हो जाए। परीक्षा केंद्र मे व्हाइटनर का उपयोग न करें क्योंकि इससे स्कैनिंग और मूल्यांकन प्रक्रिया बाधित/समस्या  हो सकती है।

6. ओएमआर शीट पर केवल उस स्थान पर ही लिखने की अनुमति है जहां पर निर्देश दिये गए है। इसके अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर लिखने से स्कैनिंग के दौरान समस्या उत्पन्न कर सकता है।

7.    ओएमआर शीट पर कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर छात्रों  को कुछ भी लिखने से मना किया जाता है। चिह्नित क्षेत्रों पर कोई भी रफ वर्क न करें।

8. अगर किसी छात्र को आन्सर शीट भरते समय किसी भी तरह का संदेह होता है तो वह भरने से पूर्व वहाँ उपस्थित  निरीक्षक (invigilator) से पूछ ले। 

9. ओएमआर शीट को मोड़ें नहीं।  उत्तर पुस्तिका पर कोई भी निशान न लगाएं

10. सुनिश्चित करें कि निरीक्षक ने आपकी ओएमआर उत्तर पुस्तिका पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।

11. निरीक्षक के सामने उचित आयताकार बक्सों में अपने हस्ताक्षर और अंगूठे का निशान लगाएं।

12. यदि अभ्यर्थी ने अपना रोल नंबर, पेपर कोड, प्रश्न पुस्तिका सीरीज, उत्तर पुस्तिका आदि नहीं भरी है तो उसका मूल्यांकन नहीं किया जाएगा।

13. छात्र अपने एड्मिट कार्ड मे दिये हुए निर्देशों को सावधानी पूर्वक पढ़ ले। तथा प्रश्न पत्र मे दिये गए सेट नंबर, विषय कोड आदि को अपनी आन्सर शीट मे सावधानी पूर्वक भरें। 



भूपेंद्र रावत 

Thursday, February 6, 2025

स्त्री जिन्होने निस्वार्थ

स्त्री जिन्होने निस्वार्थ

प्रेम किया पुरुष से

समर्पित कर दिया

स्वयं के जीवन को

उनकी दास्तां को

रखा गया अमर

उनमे से कुछ बनी मीरा,

तो कुछ यशोधरा,

तथा कुछ को जाना गया

राधा के नाम से

परंतु जिन स्त्रियों  ने

बाहरी मोह मे

त्याग दिया स्त्री के

स्त्रीत्त्व और ममत्व को

अपने प्रेम से

ज्यादा तवज्जो दी

भौतिक सुख,

अपने स्वार्थ को

उनके लिए निजात हुआ

एक नया शब्द

उनके व्यक्तित्व को

परिभाषित करने के लिए

जरूरत पड़ी

उपसर्ग “बे” की

जिसे जोड़ा गया

“वफा” से पूर्व

और इस तरह बनी

“बेवफ़ा”


Wednesday, February 5, 2025

मात-पिता, बच्चों के व्यवहार मे सकारात्मक परिवर्तन कैसे लाएं

उम्र बढ़ने के साथ-साथ बच्चों के व्यवहार मे कई तरह के परिवर्तन होते है/और होना स्वाभाविक भी है। इनमे से कुछ परिवर्तन सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक होते है। अक्सर यह देखा जाता है कि माता-पिता के द्वारा इन परिवर्तनों को इग्नोर कर दिया जाता है/या फिर सिरियस नहीं लिया जाता है। उन्हें लगता है कि अभी बच्चा छोटा है, और समय के साथ आदतों या व्यवहार ठीक हो जाएगा। लेकिन कई बार होता इसके उल्टा है। अगर सही समय मे हस्तक्षेप नहीं किया जाये तो एक दिन का व्यवहार उसकी आदत बन जाता है और भविष्य मे एक समस्या बन जाता/सकता है। 




एक बढ़ती हुई उम्र के बच्चे को अक्सर नहीं पता होता कि उसके अंदर/शरीर मे हो रहे परिवर्तन के साथ किस तरह सामंजसय बैठाना है और ऐसा होने के पीछे क्या कारण है। इस उम्र मे उसे नहीं मालूम होता है कि उसके लिए क्या सही है और क्या गलत। ऐसी स्थिति मे बच्चे कई बार गलत तरह की एक्टिविटी करने लग जाते है, या फिर उनसे जुड़ जाते है, और धीरे धीरे उनका शरीर उन सभी एक्टिविटी को आदि बन जाता है। और जब तक माता-पिता को बच्चों कि उन सभी एक्टिविटी के बारे मे  पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। क्योंकि बच्चे का शरीर और उसके अंदर के हार्मोन, जो कि अब पूर्ण रूप से उन सभी क्रियाओं (एक्टिविटी) के शिकार/आदि हो चुके है। ऐसी स्थिति मे बच्चा चाहकर भी उनसे अपना पीछा नहीं छूटा पाता है। 

माता-पिता जिन्होने समय रहते उचित कदम नहीं लिया और अपने बच्चों की छोटी छोटी गलतियों को इग्नोर कर दिया या फिर उन्हें सिरियस नहीं लिया। समय गुजर जाने के पश्चात, उनके पास  समाधान के नाम पर होता है, बच्चों को डांटना, ताने मारना, शारीरिक दंड देना या फिर अपनी किस्मत को कोसना। 

अक्सर बच्चों को जन्म दे देने तक ही माता-पिता की ज़िम्मेदारी पूरी नहीं जाती है। जन्म देने के पश्चात बच्चों के अंदर अच्छी आदतों का निर्माण करना समय समय पर उनका उचित मार्गदर्शन/परामर्श करना भी माता-पिता की जिम्म्दारियों मे सर्वप्रथम शामिल है।  बच्चों के अंदर अच्छी आदतों का निर्माण करना या उसके व्यवहार मे परिवर्तन करना किसी एक की ज़िम्मेदारी नहीं है और ना ही अपनी ज़िम्मेदारी से विमुख होकर किसी एक पर थोपना भी उचित नहीं है। बल्कि दोनों की समान भागीदारी से ही बच्चों बच्चों के व्यवहार मे सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है। अब ऐसे मे माता-पिता क्या करें कि जिससे उनके बच्चे के व्यवहार मे सकारात्मक परिवर्तन के साथ वह  रिसपोनसीबल बन जाए। 

माता-पिता अपने बच्चों कि बातों को इग्नोर ना करें:- बच्चों के प्रति रिसपोनसीबल बने और यह समझे कि वह आप दोनों कि ज़िम्मेदारी है। उनकी हर बात के लिए जवाबदेही आपकी ही बनती है। उनके जितने भी संदेह है वो आपके साथ शेयर नहीं करेगा तो किसके साथ करेगा। आपका इस तरह का व्यवहार बच्चों मे आत्मविश्वास तो बढ़ाता ही है, साथ मे उनको रिसपोनसीबल भी बनाता है। अगर आपको लगता है किसी कारणवश आप अपने बच्चे कि बाते नहीं सुन पाये तो आप बाद मे जाकर अपने बच्चे उसके संदेह पूछ सकते है। 

समस्या का सही समय मे हस्तक्षेप करें :- माता-पिता कई बार बच्चों के असमान्य व्यवहार को अनदेखा कर देते है या फिर उसे सिरियस नहीं लेते। माता-पिता का इस तरह का लापरवाह रवैया समस्या बन सकता/जाता है। ऐसे मे माता-पिता दोनों को ही रिस्पोन्सिबिलिटी बनती है कि अपने बच्चों कि परेशानी/समस्या को ट्रैक करें और समय रहते उचित हस्तक्षेप और समाधान करें। 
 
बच्चों के मार्गदर्शक/परामर्शदाता बने:- माता-पिता ही अपने बच्चों के सबसे अच्छे मार्गदर्शक और परामर्शदाता बन सकते है। बच्चों की समस्या को सुनकर उनका उचित मार्गदर्शन करें। अपने बच्चों को अकेला महसूस ना होने दे।  उन्हे बिलकुल भी ऐसा प्रतीत ना होने दे कि कोई भी उनकी बाते नहीं सुनता। 

अपने बच्चों के प्रति अच्छे श्रोता बने:-  जब आप अपने बच्चों कि बाते ध्यान से सुनेंगे तो वह भी आपकी बातें ध्यान से सुनेगा। अगर आपने उनके प्रति इग्नोरेंस रवैया अपनाएंगे तो उनका रवैया भी आपके प्रति ऐसा ही बन जाएगा। क्योंकि बच्चों का व्यवहार आपके व्यवहार का प्रतिबिंब होता है। 

बच्चों के दोस्त बने:- बच्चों के साथ उसके हम उम्र की तरह पेश आए ना कि किसी "हिटलर" कि तरह अगर आप एक डोमिनटर कि तरह पेश आएंगे तो वह आपसे डरेगा और अपने मन कि बात आपको नहीं बताएगा।  

बच्चों की गलती मे उन्हे प्यार से समझाए ना कि डांट और मार से:- अगर आप बच्चों से उपेक्षा करते हो कि बच्चा कोई गलती ना करें तो आप बिलकुल गलत है, गलतिया करना सीखने कि एक प्रक्रिया है। अगर हम कुछ नया करेंगे नहीं तो सीखेंगे कैसे। 
अगर बच्चों ने कोई गलती जाने या अंजाने मे करी भी है तो, इसका मतलब यह बिलकुल नहीं कि हम बिना कारण जाने उन्हे डांटना या मारना शुरू कर दे। सबसे पहले बच्चों से कारण पूछ कर उसे बताया जाए कि इसके परिणाम उसके लिए घातक भी हो सकते है। 

भूपेंद्र रावत  

Tuesday, February 4, 2025

मैंने इंसानी लिबास मे शैतान देखें है

मैंने इंसानी लिबास मे शैतान देखें है

इंसान नहीं मैंने तो हैवान देखें है


डगमगाता रहा ईमान इंसानों का

इंसानी वेश भूषा मे बेमान देखें है


लूट रहा है इंसान ही बस्ती इंसानों की

इन्सानों से ही मैंने इंसान पशेमान देखें है


ढूंढ रहा था कूँचों मे भगवान को

दैर-ओ-हरम के नाम पर मैंने श्मशान देखें है


कौन करेगा पछतावा अपने कर्मों का

इबादत पर ही होते मैंने इंतेकाम देखें है


इल्म है उस्तादों को, इबादत का

उन काजी के हाथों मे मैंने जंगी समान देखें है


लिबास ओढ़े खुतबा दे रहे थे खुदा पर, “भूपेंद्र” जो

जुबां से मैंने उनकी, निकलते खूनी फरमान देखें है


Sunday, February 2, 2025

मान दे माँ, सम्मान दे माँ

मान दे माँ, सम्मान दे माँ 
सृष्टि को वरदान दे माँ
दर पर तेरे बैठे, हम सब
हे, वाणिश्वरी, 
जीवन को हमारे 
तान दे माँ
हे, आदिशक्ति, ज्ञान की देवी
ज्ञान का भंडार दे माँ
तिमीर फैला है चारों ओर
हे, बुद्धिदात्री
ज्ञान की ज्योति का उपहार दे माँ
मूर्ख को विद्वान बना दे 
हे, वरदायनी
समस्त जग को ऐसा वरदान दे माँ 
शिवानुजा, मुरारी वल्लभा, तुम कहलाती
चारों ओर तुम हो समाती
प्रज्वालित तुम ज्ञान का दीपक कर जाती
जग को तुम ही चलाती.


भूपेंद्र रावत 




Saturday, February 1, 2025

एग्जाम फोबिया से निपटने और अच्छे मार्क्स लाने का मूल मंत्र

एग्जाम शब्द से अच्छे से परिचित होने के बावजूद भी नजाने इस शब्द मे ऐसा कौन सा काला जादू है, जिसका नाम सुनकर बच्चों के मन मे डर पैदा हो जाता है। रात को सोते समय भी एग्जाम के सपने रातों की नींद हराम कर देते है।  जबकि हम सब जानते है कि स्कूल मे दाखिल होने के पश्चात, परीक्षा हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन जाती है।  इसके बावजूद भी परीक्षा शब्द सुनकर हमारे मन मे  चिंता और भय का माहौल पैदा होने लगता है। और कई तरह के प्रश्न हमारे मन मे आने लगते है। जैसे कि परीक्षा मे हम कैसे पास हो पाएंगे,अगर अच्छे मार्क्स नहीं आए तो क्या होगा इत्यादि। इसी चिंता मे वह अपना क्वालिटी समय गवा देते है। परीक्षा के दौरान इस तरह कि मनोदशा छात्रों के परिणाम को भी प्रभावित करती है। 

एग्जाम फोबिया कि वजह से छात्र अधिकतर वक़्त तनाव मे होते है जिसके कारण एग्जाम के दौरान या परीक्षा वाले दिन अंजाने मे कई तरह कि गलतियां कर बैठते है। जिससे कि वह परीक्षा मे अच्छा रिज़ल्ट/मार्क्स प्राप्त नहीं कर पाते।

इस लेख के माध्यम से हम बताएँगे कि परीक्षा के दिनों मे छात्रों को किस तरह अपने आप को तैयार करना चाहिए जिससे कि उनका डर उनके ऊपर हावी ना हो सकें और वह अच्छे मार्क्स प्राप्त कर सकें।   



अपने आप को रखें सकारत्मक :- अपने मन से नकारात्मक विचारों से दूर रखें तथा अपने डर को अपने ऊपर हावी ना होने दे। अपने मन से परीक्षा मे कम नंबर या फ़ेल होने का डर निकाल ले। छात्रों को यह समझना चाहिए कि किसी भी विषय मे आपकी समझ और नॉलेज ज्यादा महत्वपूर्ण है। कम या ज्यादा मार्क्स आपके भविष्य को प्रभावित नहीं कर सकते। 

टाइम टेबल करें निर्धारित : - एक सफल परिणाम पाने के लिए सबसे जरूरी होता है अपने समय को निर्धारित करना। इसके लिए जरूरी है, दिनचर्या का टाइम टेबल तैयार करना। आपको यह समझना जरूरी है कि बिना अनुशासन के आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। टाइम टेबल केवल आपके पढ़ने का ही नहीं होना चाहिए। बल्कि हर एक उस एक्टिविटी को टाइम टेबल मे शामिल करे। जो कि आप अपनी दिनचर्या मे करते हो। 


व्यायाम और मेडिटेशन :- नियमित तौर पर अपने आप को मानसिक और शारीरिक फिट रखने के लिए व्यायाम और मेडिटेशन करना जरूरी है। नियमित रूप से व्यायम और मेडिटेशन करने से हमारा दिमाग पॉज़िटिव और फ्रेश रहता है। 

शांत माहौल मे बैठे :-  कई बार हम अपने आस-पास शोर होने के कारण मानसिक रूप मे परेशान हो जाते है। इसलिए मन को शांत रखने के लिए कुछ समय शांत वातावरण में बैठना जरूरी है। ऐसा करने से आपको सिर्फ अच्छी सोच आएगी। अगर आप इन चीजों को फॉलो करती है तो आप आसानी से नकारात्मक सोच से दूर रहोगे।


सेल्फ़ नोट तैयार करें :-  विषय को पढ़ने और समझने के बाद उसके सेल्फ़ नोट्स तैयार करें। इससे छात्रों का  लिखने के कौशल मे सुधार तो आएगा ही साथ ही गलतियां भी दूर या कम होगी। अपने हाथ से लिखे नोट्स याद भी शीघ्र/जल्दी  होंगे। 


इच्छानुसार  मनोरंजन : - मानसिक तनाव को दूर करने के लिए जरूरी है कि पढ़ने के बाद दिमाग को थोड़ा आराम दिया जाए। इस दौरान छात्र गाने सुन सकते है या किसी भी तरह कि एक्टिविटी कर सकते है। जिससे वह  मानसिक तनाव से दूर अपने आप को फ्रेश महसूस करेंगे। 


साफ -साफ तथा स्टेप मे करें प्रश्नों को हल :-  कई बार छात्र एग्जाम मे इस बात पर ध्यान नहीं देते और एक कहानी कि तरह वह उतर लिखते जाते है। छात्रों को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि हर एक उत्तर स्टेप मे लिखे। इसके अतिरिक्त वह लिखने के दौरान जल्दबाज़ी ना करें। हरेक प्रश्न सप्ष्ट और साफ राइटिंग से लिखे । 



भूपेंद्र रावत



तुमने, अश्रु तो छिपा लिए

तुमने, अश्रु तो छिपा लिए 

लेकिन, ज़ख्म कैसे छिपाओगे 

मिश्री जैसी वाणी से 

मरहम कैसे लगाओगे?

कटाक्ष किया था तुमने जो  

वो घाव बहुत ही गहरा है 

विष जो फैला है, मन मे 

उसकी औषधि, कहाँ से लाओगे? 

डोर रिश्तों की कोमल है 

रिश्ते मे पड़ी गांठ को 

क्या, तुम खोल पाओगे?

बिखरे मोती माला के 

कहाँ से समेट कर लाओगे ? 

Friday, January 31, 2025

बोर्ड परीक्षा मे बैठने जा रहे छात्रों के लिए दिशा निर्देश

फरवरी माह से लगभग सभी राज्य की बोर्ड परीक्षाएं शुरू होने जा रही है। इस दौरान परीक्षा केंद्र मे जाने से पूर्व छात्रों, खास तौर पर वह छात्र जो कि पहली बार बोर्ड की परीक्षा मे बैठने जा रहे है और उनके अभिभावक के मन मे कई तरह के संदेह रहते है। उनके मन मे डर रहता है कि परीक्षा केंद्र मे जाने से पूर्व या प्रवेश करते समय कौन से डोक्यूमेंट ले जाने जरूरी है। छात्रों के मन मे बैठे डर और संदेह को दूर करने के लिए बोर्ड द्वारा कई तरह के दिशा निर्देश जारी किए गए है। आज हम इस लेख के माध्यम से बताएँगे कि छात्रों को परीक्षा केंद्र मे जाने से पूर्व किस तरह कि सावधानी बरतनी चाहिए और प्रवेश करते समय कौन कौन से डोक्यूमेंट अपने साथ ले जाने आवश्यक है। 

बोर्ड द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड  :-

  • रेगुलर स्टूडेंट्स के लिए - स्कूल यूनिफ़ोर्म 
  • प्राइवेट स्टूडेंट्स के लिए - लाइट कलर के हल्के कपड़े  

बोर्ड परीक्षा में जाने से पूर्व, परीक्षा केंद्र मे प्रवेश करते समय छात्रों को निम्न चीजों को लाने की होगी अनुमति :- 

  • प्रवेश पत्र और स्कूल पहचान पत्र (रेग्यूलर छात्रों के लिए)
  • एडमिट कार्ड और वैलिड आईडी प्रूफ (प्राइवेट छात्रों के लिए)
  • स्टेशनरी आइटम्स, जैसे- ट्रांसपेरेंट पाउच, ज्योमेट्री/पेंसिल बॉक्स, नीला/रॉयल ब्लू इन्क /बॉल प्वाइंट/जेल पेन, स्केल, इरेज़र,
  • एनालॉग घड़ी,
  • पारदर्शी पानी की बोतल
  • मेट्रो कार्ड, बस पास और पैसे 
  • अगर कोई छात्र दिवयांग ( डिसबिलिटी) या मेडिकल अनफ़िट है तो उस छात्र को अपने साथ दिवयांग /अनफ़िट  सर्टिफिकेट को ले जाना आवश्यक है  
परीक्षा केंद्र मे निम्न चीजों को अपने साथ ले जाने मे बैन 
  • कोई भी प्रिंटेड या लिखी हुई पाठ्य सामाग्री 
  • किसी भी तरह की इलेक्ट्रोनिक डिवाइस ( स्मार्ट वॉच, मोबाइल फोन, ब्लुटूथ, ईयरफोन, पेजर इत्यादि) 

नोट :- सीबीएसई ने परीक्षा केंद्र मे शांति पूर्वक परीक्षा आयोजित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए है जिससे की बिना किसी अड़चन के परीक्षा का आयोजन हो सकें। सीबीएसई ने साफ तौर पर कहा है कि नियमों का उल्लंघन करने वालों के बख्सा नहीं जाएगा उनके खिलाफ सख़्त कारवाई करने के अनुदेश जारी किए है । 

भूपेंद्र रावत   

Thursday, January 30, 2025

ये दर्द है की सब कुछ भूला देता है

1
ये  दर्द  है  की  सब  कुछ  भूला  देता  है 
जख्मों  को  भी  सीना  सीखा  देता  है
जो  सीख  ले  जीना  इन  पलों  को 
जिंदगी की राह मे वो तबस्सुम  खिला देता है  


तेरे संग मुझे सहारा मिल जाता है 
जैसे सफीने को किनारा मिल जाता है
तुझसे मिलते ही बंज़र जिंदगी  मे  मेरी 
मानो जैसे  गुलिस्तां  खिल  जाता  है 


 
  

Wednesday, January 29, 2025

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा नीति

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा के गिरते हुए स्तर में सुधार लाने के लिए सत्ताधीश सरकार द्वारा समय समय पर कई प्रयास किये गए । शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने के लिए कई सारी नीतियां लागू की गई । इन नीतियों को लागू करने का मुख्य उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना था। लेकिन आधुनिकता, वैश्वीकरण,पाश्चात्य सभ्यता के इस युग में भारतीय शिक्षा पद्धति,तथा संस्कृति का पतन होता गया । जिसका बुरा असर हमारे आज के समाज पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। अपनी मातृभाषा को त्याग कर विदेशी भाषा को भी भारतीय संविधान में जोड़ दिया गया। मैकाले द्वारा बनाई गई वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने भारतीय समाज की एकता को नष्ट करने तथा वर्णाश्रित कर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने का एक काम किया। मैकाले की शिक्षा पद्धति का मुख्य उद्देश्य भारत देश मे – संस्कृत, फारसी तथा लोक भाषाओं के वर्चस्व को तोड़कर अंग्रेजी का वर्चस्व कायम करना तथा इसके साथ ही सरकार चलाने के लिए देश के युवा अंग्रेजों को तैयार करना था । मैकाले की इस शिक्षा प्रणाली के जरिए वंशानुगत कर्म के प्रति घृणा पैदा करने और परस्पर विद्वेष फैलाने की भी कोशिश की गई थी। इसके अलावा पश्चिमी सभ्यता एवं जीवन पद्धति के प्रति आकर्षण पैदा करना भी मैकाले का लक्षय था। भारत की आजादी के पश्चात भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समय-समय पर सही दिशा देनें के लिए कई प्रयास किए गए । 




विश्वविद्यालयी शिक्षा की अवस्था पर रिपोर्ट देने के लिये डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्य्क्षता में राधाकृष्ण आयोग या विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन भारत सरकार द्वारा नवम्बर 1948-1947 में किया गया था। यह स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग था ।माध्यमिक शिक्षा की स्थिति में सुधार लाने के लिए लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग,1952-53 का गठन किया गया। इस आयोग का मुख्य उद्देश्य माध्यमिक स्तर की प्राथमिक ,बेसिक तथा उच्च शिक्षा से सम्बन्ध्ति समस्याओ का अध्धयन करस्कूली शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए सुझाव देना था ।

1964-66 डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नयी दिशा देने के उद्देश्य से कोठारी आयोग या राष्ट्रीय शिक्षा नीति का गठन किया गया। इस आयोग में समाज मे हो रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए अपने सुझाव प्रस्तुत किये। यह भारत का पहला ऐसा शिक्षा आयोग था जिसने समय की मांग को ध्यान में रखते हुए स्कूली शिक्षा में लड़कों तथा लड़कियों के लिए एक समान पाठ्यक्रम,व्यवसायिक स्कूल,प्राइमरी कक्षाओं में मातृभाषा में ही शिक्षा तथा माध्यमिक स्तर (सेकेण्डरी लेवेल) पर स्थानीय भाषाओं में शिक्षण को प्रोत्साहन दिया। 

वर्तमान में चल रही शिक्षा, 1986 राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आधारित है। इस शिक्षा नीति में सबके लिए शिक्षा’’ भौतिक और आध्यात्मिक विकास की बुनियादी जरूरत है पर बल दिया गया । इस शिक्षा नीति ने समाज को शिक्षित करने के लिए बिना किसी भेदभाव के शिक्षा में समानता के भाव को उजागर किया । जिससे कि शिक्षा तक सबकी पहुंच संभव हो सके । स्वतन्त्रता के इन 77  वर्षों के अंतर्गत सत्ता में आसीन सरकार द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए कई आयोगों तथा नीतियों का निर्माण किया गया। परन्तु उन नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने में आज तक विफल रही है। शिक्षा की बिगड़ती हुई व्यवस्था उसका एक जीता जागता उदहारण है। सरकार द्वारा शिक्षा की स्थिति या व्यवस्था को सुधारने के लिए जारी किया फंड तथा अनगिनत नीतियां मात्र बन्द आंखों से स्वप्न देखने तक ही सीमित है।

भूपेंद्र रावत 

Tuesday, January 28, 2025

अंधेरे की ओट मे ये जो दिया जलता है

अंधेरे  की  ओट  मे,  ये  जो  दीया जलता  है

दुनिया को रोशन करने की चाह मे खुद को वो छलता है

नजाने  किस  भ्रम  मे  वो  रखता  है  खुद  को 

जल  कर  खुद  कतरा  कतरा  पिघलता  है


  

Monday, January 27, 2025

इंसानियत को परखने के लिए बदन का लिबास नहीं देखा जाता

 घर पर आये मुसाफिर को खाली हाथ नहीं भेजा जाता

सौदों  मे  हर  बार  स्वार्थ  नहीं  देखा  जाता

ज़िंदगी की राह पर मुसाफिर मिल ही जाते है

इंसानियत को परखने के लिए बदन का लिबास नहीं देखा जाता.

घर पर आये मुसाफिर को खाली हाथ नहीं भेजा जाता  सौदों मे हर बार स्वार्थ नहीं देखा जाता
https://draft.blogger.com/blog/post/edit/3204513329264443755/4287435210650540058


Sunday, January 26, 2025

बच्चे का व्यवहार, माता-पिता के व्यवहार का प्रतिबिंब

15 वर्षों के शिक्षण के दौरान, अक्सर मैंने यह अनुभव किया है कि, आजकल के अधिकतर अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों से शिकायत रहती है कि, उनका बच्चा उनकी बातें नहीं सुनता या फिर उन्हें इगनोर कर देता है। अपने से बड़ों के साथ उनका व्यवहार तथा बातचीत का तरीका सही नहीं है, वह दिनभर फोन चलाता रहता है या फिर खाना खाने मे आनाकानी करता है, आदि। इसके अतिरिक्त भी कई तरह के सोच रखने वाले  अभिभावकों से समय समय पर मिलना-जुलना  लगा रहता है और सभी कि राय या फिर शिकायत कहे आदि सुनने को मिलती रहती है। उनके पास बच्चों के व्यवहार से संबन्धित समस्याएँ तो अनगिनत रहती है लेकिन समाधान के नाम पर उनके पास होता है,एक तरह का डोमिनेटिंग बिहेवियर, उनका मानना है कि बच्चों को डांट या शारीरिक दंड इत्यादि से सुधारा जा सकता है। इसके अलावा समाधान के नाम पर अभिभावक अपने बच्चे कि तुलना उसके हम उम्र बच्चों से करने लगते है। वो ऐसा इसलिए करते है, क्योंकि शायद उन्हें लगता है कि इस तरह एक दूसरे से तुलना करके या फिर शारीरिक दंड आदि से  उनका बच्चा सुधार जाएगा या फिर मोटीवेट  होगा। लेकिन आज वर्तमान समय मे देखा गया है कि बच्चों के व्यवहार मे इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहा है। और वह दिन प्रतिदिन पहले से और ज्यादा जिद्दी और अग्रेसिव हो रहे है। लेकिन ऐसे मे अभिभावक कों क्या करना चाहिए कि वह अपने बच्चों के व्यवहार मे सकारात्मक बदलाव ला सके। चलिए अब बात करते है कि कैसे अभिभावक अपने बच्चों के व्यवहार मे सकारात्मक बदलाव लाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, या निभा सकते है।




  • कोरे कागज के समान बच्चा :- हम सबको यह ज्ञात होना चाहिए कि बच्चे कोरे कागज के समान होते है।इसी पर आचार्य आर्जव सागर महाराज ने कहा कि बच्चे कोरे कागज के समान होते हैं। इस पर अच्छे संस्कार लिखें, क्योंकि संस्कार बचपन में ही होते हैं, न कि पचपन में। आचार्य श्री ने कहा कि बचपन में हृदय बड़ा कोमल होता है और कोमल हृदय को अच्छे संस्कारों की ओर सरलता से मोड़ा जा सकता है। 

  • एक बच्चे का व्यवहार अक्सर उनके माता-पिता के व्यवहार के प्रतिबिंब के रूप में कार्य करता है : - बहुत बार पेरेंट्स बच्चों को कुछ कहने से पहले सोचते नहीं और बच्चा समझकर कुछ भी कह देते हैं। ऐसे मे अभिभावकों को बड़ी सतर्कता से बच्चों के समक्ष पेश आना चाहिए।अक्सर एक बच्चा अपने चारों ओर जो देखता है। उसी के अनुरूप वह कार्य करना शुरू कर देता है और धीरे धीरे उसके व्यक्तित्व का निर्माण होने लगता है। 

  • अच्छी आदतों का निर्माण  : - कई अभिभावकों का यह प्रश्न होता है कि वह अपने बच्चों के अंदर अच्छी आदतों का निर्माण कैसे करें। तो सबसे पहले घर मे रह रहे बड़ों को इसकी शुरुआत खुद से करनी होगी।  क्योंकि माँ के पेट से बच्चा कुछ भी सीख कर नहीं आता है। वह अपने आस पास के वातावरण मे जो कुछ भी देखता है या फिर अब्ज़र्व करता है उसके अनुसार वह व्यवहार करना शुरू कर देता है। जैसा कि एक बच्चे को नहीं पता कि फोन का प्रयोग करना उसके लिए उचित है या अनुचित लेकिन वह बचपन से देखता आता है कि घर का हर एक सदस्य दिनभर फोन मे व्यस्त है। ऐसे मे बच्चे के अंदर भी फोन का प्रयोग करने कि जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है। और इस तरह घर मे रहने वाले बड़े लोगों के आदतों को अब्ज़र्व करते हुए उसके अंदर भी फोन चलाने या अनावश्यक प्रयोग करने कि आदत का निर्माण होने लगता है। 

  • दिनचर्या के कार्यों कि समय सीमा को करें निर्धारित :-  कई घरों मे अक्सर समय को लेकर सतर्क नहीं रहते है। उन्हें लगता है कि समय के साथ बच्चा सब कुछ सीख जाएगा लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसके लिए हमें दिनचर्या के हर एक कार्य को लेकर अपने समय निर्धारित करना होता है। जिससे बच्चों को यह पता चल सकें कि किसी कार्य को करने का उचित समय और कितनी समय सीमा कितनी है।    

  • दूसरे बच्चों से तुलना न करें : - कई बार अभिभावक अपने बच्चों कि तुलना दुसरे बच्चों से करने लगते है जो कि बिलकुल भी उचित नहीं है। इससे उनके अंदर आत्मविश्वास कि कमी होने लगती है। उन्हे यह समझना जरूरी है कि विभिन्नताएं हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है और उसे हमे स्वीकार करना चाहिए। जिस तरह हमारे हाथ कि सारी अंगुलियाँ एक समान नहीं होती उसी तरह सभी बच्चे एक समान नहीं होते।  सबके बच्चों के अंदर विभिन्न योग्यताएं विधमान है। और हमारा कर्तव्य है कि हम उनके अंदर छिपी हुई योग्यताओं को पहचान कर उन्हें निखारे। 
इसके अतिरिक्त हमें बच्चों को अवसर देने चाहिए कि वह खुल कर अपनी परेशानी माता-पिता को बता सके तथा वह एक ऐसे माहौल का निर्माण करें कि बच्चा बेझिझक  अपने मन कि बात माता-पिता के सामने रख सकें। तथा बच्चों कि मानसिक,शारीरिक और उम्र आदि कि जरूरतों को  समझकर उचित  मार्गदर्शन देकर उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सकता है। 



भूपेंद्र रावत 

Saturday, January 25, 2025

बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों के बेहतर प्रदर्शन तथा तनाव दूर करने मे अभिभावकों की भूमिका अहम

देशभर के सभी राज्यों मे बोर्ड परीक्षा की शुरुआत होने वाली है। परीक्षा का यह समय छात्रों के साथ अभिभावक और शिक्षक के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। एक ओर जहां छात्रों के ऊपर उत्तीर्ण होने के साथ अच्छे मार्क्स लाने का दबाव होता है, वही दूसरी ओर शिक्षक और अभिभावक के ऊपर यह दबाव रहता है कि उनके छात्र और बच्चे अच्छा प्रदर्शन करें। लेकिन परीक्षा से पूर्व छात्रों के मन मे कई तरह के प्रश्न आते है, जिससे उनका नर्वस होना सवाभाविक है। इसके कारण उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। ऐसी स्थिति में अभिभावक और शिक्षक का दायित्व बनता है कि छात्रों की मानसिक स्थिति को समझकर उचित मार्गदर्शन और काउन्सलिंग  करें। जिससे उनके प्रदर्शन में किसी किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव ना पड़े और वे सकारात्मक सोच के साथ अपनी परीक्षाएं देकर सफल हो।

इसलिए बोर्ड परीक्षा के दौरान होने वाले  तनाव को कम करने और अच्छे प्रदर्शन के लिए हम छात्रों और अभिभावकों के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स सांझा कर रहे है।    



1.   टाइम मैनेजमेंट : - परीक्षा समाप्त होने के बाद अक्सर कई बार छात्र यह कहते है कि  कम समय होने के कारण या फिर लेंथी पेपर होने कि वजह से पेपर पूरा नहीं कर सकें। अक्सर ऐसा टाइम मैनेजमेंट ना होने कि वजह से होता है। क्योंकि कई बार छात्र किसी प्रश्न मे तय समय सीमा से अधिक समय व्यय कर देते है, जिसके कारण टाइम मैनेजमेंट बिगड़ जाता है और इसके कारण छात्रों का परिणाम प्रभावित होता है।  ऐसे मे छात्रों को चाहिए कि वह परीक्षा से पूर्व लिमिटेड शब्दों और समय में आंसर लिखने की प्रैक्टिस करें।  जितना हो सके  बचे हुए समय में रिवीजन के साथ आंसर राइटिंग प्रैक्टिस करें।  रोजाना प्रश्नों के उत्तर को लिखकर प्रैक्टिस करने की आदत डालें. इससे मेन एग्जाम के लिए खुद को अच्छे से तैयार कर पाएंगे। समय और शब्दों की सीमा का ध्यान रखना होगा।  इससे फाइनल एग्जाम में कोई दिक्कत नहीं होगी और आप समय के हिसाब से प्रश्न पत्र हल कर सकेंगे। 

2.   सेंपल पेपर हल करें :-  बोर्ड तथा पब्लिशर द्वारा पब्लिश किए गए विभिन्न विषयों के सेंपल पेपर्स को ठीक उसी तरह सॉल्व/अभ्याष करें, जैसे फाइनल एग्जाम दे रहे हों। इससे आप अपनी हैंड राइटिंग और टाइम मैनेजमेंट का आंकलन कर सकेंगे और समय रहते कमियों को दूर कर पाएंगे। 

3.    ब्लू प्रिंट के आधार पर तैयारी करें :- बोर्ड द्वारा कक्षा 10वीं एवं 12वीं के छात्रों के लिए ब्लू प्रिंट जारी किया जाता है।  उसकी सहायता से एग्जाम की तैयारी करें। बोर्ड द्वारा निर्धारित पेपर का पैटर्न ब्लू प्रिंट के आधार पर ही आता है।  अगर छात्र समझकर इसके अनुसार तैयारी करें तो परीक्षा में उनको आसानी होगी.

4.    टाइम टेबल के अनुरूप  तैयारी :-  सबसे पहले छात्रों के लिए जरूरी है कि परीक्षा के अनुसार टाइम टेबल बनाकर तैयारी करें। सभी विषयों का एक टाइमटेबल बनाकर उसके हिसाब से पढ़ाई करने कि आदत डालिए। क्योंकि टाइम-टेबल के साथ नियमित पढ़ाई करना, सफलता की पहली सीढ़ी मानी गई है। टाइम टेबल बनाते वक्त हर सब्जेक्ट के लिए अपनी सुविधा अनुसार टाइम जरूर फिक्स करें।  

5.   हेल्दी खाना  :- छात्रों को स्टडी के साथ खानपान हेल्दी रखने की भी सलाह दी जाती है। जिससे कि वह बीमार ना पड़ें क्योंकि परीक्षा के दौरान बीमार होना छात्रों के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है। ऐसे मे छात्रों को सलाह दी जाती है कि वह जंक फूड का सेवन ना करें उचित मात्र मे पानी पिए मॉर्निंग में फ्रूट्स और रात में स्टडी के साथ हल्का खाने खाएं, ताकि वह फ्रेश महसूस करें और आलस्य से दूर रहें।

6. अपने विचारों तथा भावनाओं को अपने ऊपर हावी ना होने दें :- परीक्षा के दिनों के दौरान हमारे मन में कई तरह के विचार उत्तपन होना या आना एक सावभाविक प्रक्रिया है। लेकिन इस दौरान हमें अपने विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण करके उनको अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है। क्योंकि इससे  हमारा शरीर और दिमाग भी उसके अनुरूप कार्य करना शुरू कर देता है। जिसका प्रभाव हमारी परीक्षा पर पड़ सकता है। 

अभिभावकों का दायित्व

1.   अभिभावकों कों सबसे पहले अपने बच्चों कि योग्यता कों समझना जरूरी है। किसी दूसरे बच्चे से आकलन कर अधिक अंक लाने का अनावश्यक दबाव से छात्रों अंदर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है या पड़ सकता है, और इसके कारण छात्र योग्यता अनुसार उचित प्रदर्शन नहीं कर पाते। परीक्षा के दौरान माता-पिता कों अपने बच्चों कों प्रेरित कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए जिससे कि उन्हे लगे कि उनके माता-पिता उनके साथ है।

2.   परीक्षा के दौरान माता-पिता कों अपने बच्चों के सामने किसी तरह कि नाकारत्मक बातें नहीं करनी चाहिए। माता-पिता कों अपने बच्चों से प्यार से सहज रूप से बातें करनी जरूरी होती है ऐसा ना हो कि उन्हें किसी बात कों समझाने के लिए ऊंची आवाज, डांट कर या फिर ताने मार कर उनसे बातें की जाएं।

3.   परीक्षा के दौरान अभिभावक छात्रों कों परीक्षा केंद्र मे छोडने और लेने जाएं। हम ऐसा इसलिए कह रह है क्योंकि परीक्षा का समय छत्रों के लिए एक कठिन परिस्थिति होती है। ऐसे मे उन्हे अकैडमिक सपोर्ट के साथ इमोश्नल सपोर्ट की भी जरूरत होती है। इस दौरान अभिभावक उनके साथ अपने अनुभव भी आप सांझा कर सकते हैं। 


भूपेंद्र रावत 

भौतिक युग में स्थायी सुख की खोज: एक मिथ्या आकर्षण

 भौतिक युग में स्थायी सुख की खोज: एक मिथ्या आकर्षण आज का युग विज्ञान और तकनीक की तेज़ रफ्तार से बदलता हुआ भौतिक युग है। हर इंसान सुख, सुविधा...