Saturday, May 17, 2025

भौतिक युग में स्थायी सुख की खोज: एक मिथ्या आकर्षण

 भौतिक युग में स्थायी सुख की खोज: एक मिथ्या आकर्षण


आज का युग विज्ञान और तकनीक की तेज़ रफ्तार से बदलता हुआ भौतिक युग है। हर इंसान सुख, सुविधा और समृद्धि की खोज में व्यस्त है। जीवन की दौड़ इतनी तेज हो चुकी है कि लोग यह भूल चुके हैं कि वे आखिर किस मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं। इस अंधी दौड़ में "स्थायी सुख" की तलाश एक ऐसी कल्पना बनकर रह गई है, जो हाथी के दिखावे वाले दाँतों की तरह है—दिखाने के लिए कुछ और, उपयोग में कुछ और।

भौतिक सुखों की विशेषता ही यही है कि वे क्षणिक होते हैं। एक नई वस्तु की प्राप्ति हमें कुछ समय के लिए आनंद देती है, लेकिन समय के साथ वह आनंद भी समाप्त हो जाता है, और हम अगली चीज़ की तलाश में लग जाते हैं। यह एक अंतहीन चक्र है, जो कभी भी स्थायीत्व नहीं दे सकता।

वास्तव में, जब यह भौतिक संसार स्वयं अस्थायी है, तो इसमें से स्थायी सुख की कामना करना अपने आप में एक विरोधाभास है। यह जगत परिवर्तनशील है—आज जो है, वह कल नहीं रहेगा। शरीर, वस्तुएं, संबंध—all are bound by time. ऐसे में किसी भी भौतिक वस्तु में स्थायी सुख की खोज करना केवल भ्रम है।

क्या भौतिक जगत  मे  स्थायी सुख संभव है? 

भगवद्गीता से लिया गया यह श्लोक स्थायी सुख, आत्मज्ञान, और भौतिक सुखों की क्षणिकता को गहराई से दर्शाता है:

श्लोक (भगवद्गीता 2.14):

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।

आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥

भावार्थ:

हे अर्जुन! इन्द्रियों और विषयों के संपर्क से उत्पन्न शीत-गर्मी, सुख-दुःख आदि क्षणिक होते हैं। वे आते हैं और चले जाते हैं, इसलिए तू उन्हें सहन कर।

यह श्लोक स्पष्ट करता है कि भौतिक सुख-दुख अस्थायी हैं, वे समय के साथ आते-जाते रहते हैं। इनसे ऊपर उठकर जो आत्मज्ञान, शांति और संतुलन प्राप्त होता है, वही वास्तविक और स्थायी सुख है।

स्थायी सुख की प्राप्ति के लिए हमें कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए:

आत्मचिंतन और आत्मज्ञान – स्वयं को समझना, अपनी इच्छाओं की गहराई में जाना और यह जानना कि हमें वास्तव में क्या चाहिए।

संतोष और कृतज्ञता – जो कुछ हमारे पास है, उसमें संतोष पाना और कृतज्ञ होना एक बड़ा कदम है स्थायीत्व की ओर।

योग, ध्यान और साधना – मन को स्थिर और शांत करना, जिससे आंतरिक सुख की अनुभूति संभव हो सके।

सत्संग और आध्यात्मिक मार्गदर्शन – सकारात्मक संगति और आध्यात्मिक मार्ग हमें सत्य की ओर ले जाते हैं।


अंत मे हम कह सकते है कि  भौतिक जगत में स्थायी सुख की तलाश एक छलावा है, जो कि एक मृगतृष्णा की भाँति है। परंतु ऐसा नहीं है कि हम स्थायी सुख प्राप्त नहीं कर सकते यदि हम अपने भीतर झाँकें, अपने जीवन में संतुलन और चेतना लाएँ, तो वही जीवन, जो आज असंतोष से भरा प्रतीत होता है, स्थायी आनंद का स्रोत बन सकता है। स्थायी सुख का मार्ग बाहर नहीं, भीतर है—और उस मार्ग पर चलने के लिए हमें स्वयं से प्रयास करने होंगे।


भूपेंद्र रावत 

17.05.2025 

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