Wednesday, November 5, 2025

"बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं"

 "बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं"


अक्सर हम सभी यह चाहते हैं कि हमारे बच्चे संस्कारी, जिम्मेदार और अच्छी आदतों वाले बनें। हर माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा जीवन में सफलता प्राप्त करे और समाज में सम्मान पाए। पर क्या हमने कभी ठहरकर यह सोचा है कि जिन अच्छी आदतों को हम अपने बच्चों में विकसित करना चाहते हैं, क्या हम स्वयं उन आदतों का पालन करते हैं?


यह बात समझना बहुत आवश्यक है कि बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं, न कि जो उन्हें केवल सिखाया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई माता-पिता अपने बच्चे को ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं लेकिन खुद छोटी-छोटी बातों में झूठ बोलते हैं — जैसे फोन पर कहना “बोल देना मैं घर पर नहीं हूँ” — तो बच्चा इसे एक स्वाभाविक व्यवहार मान लेता है।


आजकल एक जीवंत उदाहरण आम देखने को मिलता है — कई माता-पिता अपने कार्य स्वयं नहीं करते, पर वही कार्य अपने छोटे बच्चों पर थोप देते हैं। प्रारंभ में बच्चा प्यार या डर के कारण वह काम कर देता है, पर जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, वह यह महसूस करने लगता है कि उसके माता-पिता तो आराम से बैठकर फोन चला रहे हैं और उस पर काम का बोझ डाल रहे हैं। धीरे-धीरे उसके मन में यह धारणा बन जाती है कि "बड़े होने का मतलब है — दूसरों से काम करवाना।"


इस तरह, अनजाने में ही माता-पिता अपने बच्चे के भीतर ग़लत व्यवहार की नींव डाल देते हैं। बाद में वही माता-पिता उस बच्चे की तुलना अपने बचपन या दूसरों के बच्चों से करने लगते हैं — "देखो, वो कितना आज्ञाकारी है, और हमारा बेटा तो सुनता ही नहीं!"

परंतु वे यह भूल जाते हैं कि बच्चे का पहला शिक्षक उसका घर और उसके माता-पिता होते हैं।


बच्चा केवल वह नहीं सीखता जो उसे कहा जाता है, बल्कि वह वह सब सीखता है जो वह अपने चारों ओर घटते हुए देखता है। यदि घर का वातावरण सकारात्मक होगा — जहाँ काम बाँटकर किए जाएँ, एक-दूसरे की मदद की जाए, और बड़ों का आचरण आदर्श हो — तो बच्चा भी वैसा ही बनेगा।


लेकिन यदि घर में उपेक्षा, असमानता और केवल आदेश देने की प्रवृत्ति होगी, तो वही बच्चा आगे चलकर वही रवैया अपनाएगा। इस तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक यह व्यवहार चलता चला जाता है, और किसी को इसका मूल कारण समझने की फुर्सत नहीं होती।


इसलिए, अगर हमें अपने बच्चों में अच्छी आदतों का निर्माण करना है, तो पहले हमें खुद अपने आचरण में सुधार लाना होगा।

बच्चे को उपदेश देने से अधिक प्रभावी होता है — उदाहरण प्रस्तुत करना।

क्योंकि अंततः,


“बच्चे वही बनते हैं जो वे अपने घर में देखते हैं, न कि जो वे अपने माता-पिता के मुँह से सुनते हैं।”

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