“एक मछली से नहीं, कई अच्छी मछलियों से बदलता है तालाब”
यह कहावत तो हम सबने सुनी है — "एक मछली सारे तालाब को मैला कर देती है"। इसका मतलब होता है कि अगर किसी समाज या समूह में एक भी व्यक्ति गलत रास्ते पर चल पड़े, तो उसके बुरे कर्मों का असर पूरे समाज पर पड़ता है। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि अगर यही कहावत उलट दी जाए?
अगर "एक अच्छी मछली पूरे तालाब को साफ कर सकती है", तो क्या समाज बेहतर नहीं बन सकता?
असल में, बात केवल एक मछली की नहीं है, बात हमारे सोचने और करने के तरीके की है।
हम अक्सर दूसरों की गलतियों पर उंगली उठाने में तो बहुत तेज़ होते हैं, लेकिन जब अच्छाई फैलाने की बात आती है तो पीछे हट जाते हैं। हम यह सोचते हैं कि "मैं अकेला क्या कर लूंगा?" — और यही सोच समाज को आगे बढ़ने से रोकती है।
अगर एक नकारात्मक व्यक्ति अपने आसपास के माहौल को बिगाड़ सकता है, तो दस सकारात्मक व्यक्ति मिलकर उसे सुधार क्यों नहीं सकते?
समस्या यह नहीं है कि बुराई ताकतवर है, बल्कि यह है कि अच्छे लोग अक्सर चुप रहते हैं, निष्क्रिय रहते हैं।
जब अच्छाई आवाज़ नहीं उठाती, तो बुराई अपने आप हावी हो जाती है।
हम यह चाहते हैं कि समाज सुधर जाए, भ्रष्टाचार खत्म हो जाए, लोग ईमानदार बन जाएँ — लेकिन हम खुद बदलाव की शुरुआत नहीं करते। हम सोचते हैं कि सरकार बदले, व्यवस्था बदले, या कोई और कदम उठाए। लेकिन असल में परिवर्तन की शुरुआत तो हमारे भीतर से ही होती है।
अगर हर व्यक्ति यह ठान ले कि वह ईमानदारी, सच्चाई और नैतिकता के साथ जिएगा, तो धीरे-धीरे पूरा समाज बदल सकता है।
समाज का दूषित होना केवल बुरे लोगों की वजह से नहीं है, बल्कि अच्छे लोगों के मौन रहने की वजह से भी है।
अगर हर अच्छे इंसान अपने-अपने क्षेत्र में थोड़ी सी जिम्मेदारी निभा ले, तो यह दुनिया बहुत खूबसूरत हो सकती है।
इसलिए हमें यह कहावत बदलनी चाहिए —
"एक मछली तालाब को मैला कर देती है" नहीं,
बल्कि — "कई अच्छी मछलियाँ मिलकर तालाब को फिर से स्वच्छ बना सकती हैं।"
अंतत: यह कहा जा सकता है कि
अगर हम सब मिलकर अपने समाज में अच्छाई का दीप जलाएँ,
तो अंधकार खुद-ब-खुद मिट जाएगा।
नेगेटिव फोर्स तभी ताकतवर होती है जब पॉज़िटिव लोग मौन रहते हैं।
इसलिए अब वक्त है कि हम खुद से शुरुआत करें —
क्योंकि बदलाव की पहली चिंगारी हमेशा अपने भीतर से ही उठती है। 🔥
 
 
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