बौद्धिक दिव्यांगता: कारण, समाधान एवं पुनर्वास में सहभागिता
बौद्धिक दिव्यांगता (Intellectual Disability) एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की बौद्धिक क्षमताएं सामान्य से कम होती हैं, जिससे उसके सीखने, समझने, निर्णय लेने और रोजमर्रा के कार्यों को करने की क्षमता प्रभावित होती है। यह समस्या जन्मजात भी हो सकती है और कभी-कभी जीवन में किसी रोग, चोट या संक्रमण के कारण भी हो सकती है।
बौद्धिक दिव्यांगता के प्रकार:
बौद्धिक मंदता (Intellectual Disability):- व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता का स्तर IQ 70 या उससे कम होता है। इसका प्रभाव रोजमर्रा के कामों में दिखता है जैसे बोलने, पढ़ने, सामाजिक व्यवहार आदि।
विशिष्ट शिक्षा सम्बन्धी अक्षमता (Specific Learning Disabilities):- सामान्य बुद्धि होते हुए भी पढ़ने, लिखने, गिनती करने में कठिनाई होती है।
- डिस्लेक्सिया (Dyslexia): पढ़ने में कठिनाई
- डिस्कैल्कुलिया (Dyscalculia): गणितीय संकल्पनाओं को समझने में परेशानी
- डिस्ग्राफिया (Dysgraphia): लिखने में कठिनाई
स्वायत्तता विकार (Autism Spectrum Disorder - ASD):- यह एक न्यूरो-विकासात्मक विकार है जिसमें संचार, सामाजिक संबंध और व्यवहार में कठिनाई होती है। इसमें रुचियाँ सीमित होती हैं और व्यक्ति दोहराव वाले व्यवहार में लिप्त रहता है।
बौद्धिक दिव्यांगता के प्रमुख कारण:
- जन्मपूर्व कारण:- गर्भावस्था में संक्रमण, कुपोषण, शराब/नशे का सेवन, अनुवांशिक कारण
- जन्म के समय:- ऑक्सीजन की कमी, समय से पहले जन्म, जटिल प्रसव
- जन्म के बाद:- मस्तिष्क को चोट लगना, इंफेक्शन (जैसे मैनिन्जाइटिस), गंभीर कुपोषण
समाधान और हस्तक्षेप के उपाय:-
- जल्दी पहचान और मूल्यांकन (Early Diagnosis):
- जितनी जल्दी दिव्यांगता की पहचान हो, उतना बेहतर हस्तक्षेप संभव है।
विशेष शिक्षा (Special Education):- बच्चे की जरूरत के अनुसार पाठ्यक्रम और शिक्षण शैली को अनुकूलित किया जाता है।
- स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, बिहेवियरल थेरेपी:
- ये थैरेपी बच्चों की बोलने, दैनिक जीवन कौशल और व्यवहार सुधारने में मदद करती हैं।
समाज में समावेशन (Inclusion):- बच्चों को सामान्य स्कूलों में समावेश करने से उनका आत्मविश्वास और सामाजिक कौशल बढ़ता है।
अभिभावकों की भूमिका:
- सकारात्मक सोच बनाए रखना और बच्चे को प्रेम व समर्थन देना।
- रोजमर्रा के जीवन में व्यावहारिक कौशल सिखाना।
- विशेषज्ञों से संपर्क बनाए रखना जैसे काउंसलर, विशेष शिक्षक, चिकित्सक आदि।
- समय पर मूल्यांकन और उपचार के लिए पहल करना।
विशेष शिक्षकों की भूमिका:- प्रत्येक बच्चे के लिए व्यक्तिगत शिक्षा योजना (IEP) बनाना।
- विशेष शिक्षण तकनीकों जैसे दृश्य संकेत, गेम आधारित लर्निंग, पुनरावृत्ति आदि का उपयोग करना।
- बच्चे में आत्मनिर्भरता, भाषा, संज्ञानात्मक एवं सामाजिक कौशल विकसित करना।
- अभिभावकों को दिशा-निर्देश देना और उन्हें जागरूक करना।
बौद्धिक मंदता को बुद्धिलब्धि (IQ – Intelligence Quotient) के आधार पर चार स्तरों में बाँटा जाता है। ये स्तर इस बात को दर्शाते हैं कि व्यक्ति को कितनी सहायता या समर्थन की आवश्यकता है।
1. हल्की बौद्धिक मंदता (Mild Intellectual Disability):- IQ स्तर: 50–69
लक्षण:
- धीरे-धीरे बोलना और सीखना
- व्यावहारिक गतिविधियों में सहायता की सीमित आवश्यकता
- वयस्क होने पर साधारण कार्य (जैसे सफाई, खाना बनाना, काम पर जाना) कर सकता है
शिक्षा:
- प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त कर सकता है
- कुछ मामलों में सामान्य स्कूल में पढ़ाई संभव है
- समर्थन: न्यूनतम
2. मध्यम बौद्धिक मंदता (Moderate Intellectual Disability):- IQ स्तर: 35–49
लक्षण:
- स्पष्ट बोलने और समझने में परेशानी
- सामाजिक कौशल सीमित
- दैनिक क्रियाओं में नियमित मार्गदर्शन की आवश्यकता
शिक्षा:
- विशेष शिक्षा की आवश्यकता
- व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Training) से आत्मनिर्भर हो सकता है
- समर्थन: मध्यम स्तर का नियमित समर्थन
3. गंभीर बौद्धिक मंदता (Severe Intellectual Disability):- IQ स्तर: 20–34
लक्षण:
- बोलने और समझने में गंभीर समस्या
- दैनिक गतिविधियों में पूर्ण सहयोग की आवश्यकता
- अक्सर अन्य मानसिक या शारीरिक विकारों के साथ
शिक्षा:
- बुनियादी आत्म-देखभाल और जीवन कौशल सिखाए जा सकते हैं
- समर्थन: पूर्णकालिक देखभाल की आवश्यकता
4. अतिगंभीर/गंभीरतम बौद्धिक मंदता (Profound Intellectual Disability):- IQ स्तर: 20 से कम
लक्षण:
- मानसिक व शारीरिक क्षमताएं अत्यंत सीमित
- संवाद करना असंभव या अत्यंत कठिन
- चलने-फिरने, खाने, कपड़े पहनने तक में सहायता आवश्यक
शिक्षा:
- विशेष देखरेख और उपचार की जरूरत
- समर्थन: चौबीसों घंटे सहायता और चिकित्सकीय निगरानी
सरकार की भूमिका:
- RPWD अधिनियम 2016 के तहत अधिकार सुनिश्चित करना।
- समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) को बढ़ावा देना – जैसे SSA, NEP 2020 का क्रियान्वयन।
- निःशुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति, विशेष शिक्षक नियुक्ति, पुनर्वास सेवाएं उपलब्ध कराना।
- जागरूकता अभियान और जनभागीदारी को प्रोत्साहित करना।
पुनर्वास के लिए कदम:
शैक्षिक पुनर्वास:- विशेष स्कूलों, समावेशी कक्षाओं, खुले स्कूलों के माध्यम से शिक्षा देना।
व्यावसायिक पुनर्वास:- जीवन कौशल प्रशिक्षण, हुनरमंदी प्रशिक्षण, लघु व्यवसाय हेतु सहायता।
सामाजिक पुनर्वास:- समाज में स्वीकार्यता और आत्मनिर्भर जीवन के लिए परिवार, पड़ोस और कार्यस्थल को संवेदनशील बनाना।
आर्थिक पुनर्वास:- सरकारी योजनाओं से आर्थिक सहायता, पेंशन, रोजगार की सुविधा।
निष्कर्ष:
बौद्धिक दिव्यांगता को किसी तरह का अभिशाप नहीं समझना चाहिए, बल्कि यह एक ऐसी स्थिति है, जिसे सही समय पर उचित मार्गदर्शन और सहयोग के माध्यम से बेहतर जीवन की ओर अग्रसर किया जा सकता है। इसमें समाज, परिवार, शिक्षक, सरकार और स्वयं दिव्यांग व्यक्ति – सभी की सहभागिता आवश्यक है। सहयोग, संवेदना और समर्पण से हम इन्हें मुख्यधारा में शामिल कर सकते हैं।
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