बहुत समय पहले यूरोप में फ़्रांस की क्रांति हुई थी। उस क्रांति से पूरे यूरोप में बदलाव की लहर चली। लोग समझने लगे कि केवल राजा और रईसों के पास ही ताक़त क्यों हो? आम जनता को भी बराबरी और अधिकार क्यों न मिलें?
इसी समय अलग-अलग विचार सामने आए –
Conservative (रूढ़िवादी) लोग कहते थे कि पुराना ही सबसे अच्छा है। राजा और चर्च (धर्म) को छेड़ना नहीं चाहिए।
Liberal (उदारवादी) लोग चाहते थे कि राजा की ताक़त कम हो और संसद बने, जहाँ जनता की भी आवाज़ सुनी जाए।
Radical (कट्टरपंथी) लोग मानते थे कि सिर्फ़ संसद से काम नहीं चलेगा, असली बदलाव तब होगा जब अमीर-ग़रीब का फ़र्क़ मिटे और सबको बराबरी मिले।
धीरे-धीरे उद्योग (Industry) बढ़ने लगे। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ बनीं। इससे एक नया वर्ग पैदा हुआ – मज़दूर वर्ग। ये लोग दिन-रात मेहनत करते थे, लेकिन मालिक अमीर होते गए और मज़दूर ग़रीब ही रहे। दूसरी ओर किसान भी बहुत परेशान थे, क्योंकि उन पर कर (tax) ज़्यादा था और जीवन कठिन था।
इन्हीं हालात में एक विचारक सामने आए – कार्ल मार्क्स (Karl Marx)। उन्होंने कहा कि असली ताक़त मेहनत करने वालों – यानी मज़दूरों और किसानों – के पास है। अगर वे मिलकर खड़े हो जाएँ तो दुनिया बदल सकती है। उनके विचारों ने रूस और यूरोप के बहुत से लोगों को प्रभावित किया।
अब रूस की तरफ़ आते हैं। वहाँ का राजा Tsar (ज़ार) कहलाता था। उसके पास पूरी ताक़त थी, लेकिन जनता ग़रीबी और भूख से जूझ रही थी। फिर आया प्रथम विश्व युद्ध (First World War, 1914)। इस युद्ध ने रूस की स्थिति और खराब कर दी। सैनिक भूखे और ठंड से मर रहे थे, घरों में अन्न की कमी थी और लोग परेशान थे।
आख़िरकार, साल 1917 में रूस की जनता सड़कों पर उतर आई। उन्होंने कहा –
“हमें रोटी चाहिए, हमें काम चाहिए और हमें बराबरी चाहिए।”
इस समय सोशलिस्ट नेताओं ने जनता का नेतृत्व किया। इनमें सबसे बड़े नेता थे लेनिन (Lenin)। उन्होंने कहा कि अब Tsar का शासन ख़त्म होगा और मज़दूरों-किसानों की सरकार बनेगी। जनता ने उनका साथ दिया और Tsar को गद्दी छोड़नी पड़ी। रूस में एक नई व्यवस्था शुरू हुई – सोवियत व्यवस्था (Soviet System), जहाँ फैक्ट्रियाँ, ज़मीन और संसाधन सबकी साझी संपत्ति मानी गईं।
लेकिन बाद में, जब स्टालिन (Stalin) नेता बने, तो उन्होंने देश को मज़बूत बनाने के लिए बहुत सख़्ती अपनाई। उन्होंने तेज़ी से उद्योग लगाए और खेती को भी सरकार के हाथ में ले लिया। कुछ लोग खुश थे कि रूस मज़बूत बन रहा है, लेकिन बहुत से लोग उनकी सख़्ती और डर से परेशान भी हुए।
इस तरह रूस की क्रांति ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि अगर जनता मिलकर खड़ी हो, तो राजा और अन्याय को हटा सकती है। यह क्रांति केवल रूस ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में समानता और अधिकारों के लिए लड़ाई की प्रेरणा बन गई।
भूपेंद्र रावत
संजय गांधी मेमोरियल सीनियर सेकेंडेरी स्कूल, लाडवा, कुरुक्षेत्र
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