शिक्षक: समाज के निर्माता या कठपुतली?
समाज में स्कूल जैसी संस्थाओं का निर्माण इसलिए हुआ था ताकि आने वाली पीढ़ियाँ शिक्षित होकर एक बेहतर नागरिक बनें और सही मार्ग पर चल सकें। इन संस्थाओं की आत्मा शिक्षक ही थे, हैं, और रहेंगे। क्योंकि शिक्षा का दायित्व उन्हीं के कंधों पर रखा गया है। शिक्षक केवल ज्ञान देने वाले ही नहीं, बल्कि बच्चों के चरित्र निर्माण, अनुशासन और नैतिक मूल्यों को संवारने वाले मार्गदर्शक भी हैं।
लेकिन आज की परिस्थितियाँ चिंताजनक हैं। वर्षों से जिस उद्देश्य के लिए स्कूल और शिक्षक कार्यरत रहे, वह अब धीरे-धीरे धूमिल होता जा रहा है।
शिक्षक की सीमाएँ और बदलता परिवेश
आज "बाल केन्द्रित शिक्षा" (Child-Centered Education) के नाम पर शिक्षक की भूमिका को सीमित कर दिया गया है। यह सही है कि शिक्षा का केन्द्र छात्र होना चाहिए, परंतु जब छात्र और समाज इसका गलत अर्थ निकालने लगें तो समस्या गंभीर हो जाती है।
आज शिक्षक कुछ कहने से डरते हैं—कहीं विद्यार्थी नाराज़ न हो जाए, कहीं अभिभावक शिकायत लेकर न आ जाएँ, या कहीं समाज उन्हें कठघरे में खड़ा न कर दे।
स्थिति इतनी विचलित करने वाली हो गई है कि यदि कोई छात्र गलती करता है और शिक्षक उसे डाँट देता है, तो अगले ही दिन अभिभावक यह कहते हुए स्कूल पहुँच जाते हैं कि "बच्चे के इमोशन आहत हो गए हैं"। ऐसे में शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य पीछे छूट जाता है और शिक्षक अपनी भूमिका निभाने में असहाय हो जाते हैं।
शिक्षा का बदलता मूल्यांकन
आज सफलता को केवल "मार्क्स" से आँकने का चलन समाज में गहरी जड़ें जमा चुका है। ज्ञान, मूल्य, समझ, अनुशासन—सब पीछे छूट गए हैं।
बच्चे आगे तो बढ़ रहे हैं, परंतु केवल अंकों की दौड़ में। उनके व्यक्तित्व में जो परिपक्वता और गहराई आनी चाहिए थी, वह लगातार कमजोर हो रही है।
शिक्षक: मार्गदर्शक या कठपुतली?
शिक्षक का दायित्व केवल पढ़ाना ही नहीं है, बल्कि वह बच्चों को सही और गलत का भेद समझाने वाला भी है। लेकिन यदि शिक्षक को ही बोलने की स्वतंत्रता न रहे, तो वह कैसा मार्गदर्शक बनेगा?
आज के दौर में शिक्षक अभिभावकों, छात्रों और समाज के दबावों के बीच बंधुआ मजदूर जैसा जीवन जी रहा है। वह अपनी स्वतंत्र सोच और निर्णय देने की क्षमता खो रहा है और केवल कठपुतली बनकर रह गया है।
समाधान की ओर
- यदि वास्तव में शिक्षा व्यवस्था को सार्थक बनाना है, तो समाज को यह समझना होगा कि शिक्षक केवल नौकरी करने वाला कर्मचारी नहीं, बल्कि राष्ट्र के भविष्य का निर्माता है।
- अभिभावकों को चाहिए कि वे शिक्षक के निर्णयों का सम्मान करें और बच्चों को अनुशासन सिखाने में सहयोग करें।
- छात्रों को यह समझना चाहिए कि शिक्षक उनकी भलाई के लिए ही मार्गदर्शन करते हैं।
- समाज और शिक्षा नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे शिक्षक को अधिकार और सम्मान दें, ताकि वह निडर होकर शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य को पूरा कर सके।
यह कहना कदापि अनुचित नहीं होगा कि शिक्षक व्यवसाय लुप्त होने कि कागार मे है। यदि शिक्षक को केवल बंधा हुआ रखा जाएगा, तो शिक्षा संस्थाएँ अपने मूल उद्देश्य से भटक जाएँगी। हमें यह मानना होगा कि शिक्षक की स्वतंत्रता ही शिक्षा की आत्मा है। जब तक शिक्षक को उसका खोया हुआ सम्मान और अधिकार नहीं मिलेगा, तब तक आने वाली पीढ़ियाँ केवल डिग्रियों से लैस होंगी, परंतु सच्चे ज्ञान और संस्कारों से वंचित रह जाएँगी।
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