Saturday, August 23, 2025

इंसानियत को तार-तार करने वाले जघन्य अपराध और समाज की ज़िम्मेदारी

 इंसानियत को तार-तार करने वाले जघन्य अपराध और समाज की ज़िम्मेदारी

आज के समय में जब हम अख़बार खोलते हैं या न्यूज़ चैनल देखते हैं, तो कई बार दिल दहला देने वाली खबरें सामने आती हैं। नाबालिग बच्चों के साथ बलात्कार, अपने स्वार्थ के लिए किसी की बेरहमी से हत्या, और तरह-तरह के अपराध... ये सब इंसानियत को शर्मसार कर देते हैं। सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसे अपराध किस श्रेणी में आते हैं? इनके लिए कैसी सज़ा होनी चाहिए ताकि अपराधी अपराध करने से पहले हज़ार बार सोचें? और सबसे ज़रूरी – क्या हम और आप, समाज के नागरिक होने के नाते, इन अपराधों को रोक सकते हैं?

1. ये अपराध किस श्रेणी में आते हैं?

  • ऐसे अपराध जघन्य अपराध (Heinous Crimes) कहलाते हैं।
  • नाबालिगों से रेप
  • किसी का स्वार्थ के लिए मर्डर
  • या दूसरों को शारीरिक व मानसिक रूप से गंभीर हानि पहुँचाना
  • ये सभी ऐसे अपराध हैं जो न केवल एक व्यक्ति के खिलाफ होते हैं, बल्कि पूरे समाज और उसकी नैतिकता को चोट पहुँचाते हैं।

2. कैसी होनी चाहिए सज़ा?

  • लोग अक्सर कहते हैं कि “कड़ी सज़ा होनी चाहिए”। पर सवाल है, कैसी सज़ा?
  • कठोर दंड – रेप और मर्डर जैसे अपराधों में मृत्युदंड या आजीवन कारावास।
  • तुरंत फैसला – सालों मुकदमा चलने की बजाय फास्ट-ट्रैक कोर्ट में न्याय।
  • सामाजिक निंदा – अपराधी की पहचान उजागर करना ताकि समाज उसे स्वीकार न करे।
  • जब अपराधी को तुरंत और कठोर सज़ा मिलती है, तो बाकी लोग भी अपराध करने से पहले डरते हैं।

3. क्या ऐसे अपराध रोके जा सकते हैं?

  • पूरी तरह अपराध मिटाना शायद मुश्किल हो, लेकिन इन्हें बहुत हद तक कम ज़रूर किया जा सकता है।
  • परिवार और शिक्षा – बच्चों को अच्छे संस्कार, सहानुभूति और दूसरों की इज़्ज़त करना सिखाना।
  • कानून का सख़्ती से पालन – अपराधी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे बचाना नहीं।
  • जागरूकता – समाज को समझना होगा कि चुप रहना अपराधी को ताक़त देना है।
  • टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल – CCTV, हेल्पलाइन नंबर, सुरक्षा ऐप्स जैसे साधन अपनाना।

4. हर व्यक्ति की भूमिका

  • अब सवाल आता है – हम और आप क्या कर सकते हैं?
  • अगर किसी के साथ अन्याय दिखे तो रिपोर्ट करें, चुप न रहें।
  • पीड़ित को न्याय दिलाने में सहयोग दें।
  • अपने बच्चों और अगली पीढ़ी को सही-गलत का ज्ञान दें।
  • पड़ोस, स्कूल और समाज में बच्चों व महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान दें।

5. पहले के युगों में अपराध और सज़ा:- हमारे धर्मग्रंथों में भी अलग-अलग युगों में अपराध और दंड की व्यवस्था का ज़िक्र मिलता है।

  • सतयुग – उस समय धर्म इतना प्रबल था कि अपराध लगभग होते ही नहीं थे। समाज ही अनुशासन से चलता था।
  • त्रेतायुग – रामराज्य का उदाहरण लें, जहाँ न्याय तुरंत और निष्पक्ष होता था। अपराधी को तत्काल दंड मिलता था।
  • द्वापरयुग – महाभारत काल में भी अन्याय को रोकने के लिए युद्ध और कठोर दंड ही रास्ता बने।
  • कलियुग (आज का समय) – यहाँ कानून, पुलिस और न्यायपालिका ही सबसे बड़े साधन हैं। साथ ही, समाज और नागरिकों की ज़िम्मेदारी भी।


अपराधों को रोकने के लिए किसी तरह का कानून बना देना या फिर सिर्फ़ सरकार पर निर्भर रहना काफ़ी नहीं है। ज़रूरी है कि हम सब एक जिम्मेदार नागरिक कि भांति अपनी जिम्मेदारी निभाएँ। अगर हर नागरिक यह ठान ले कि न तो खुद अपराध करेगा, न अपराधी को बचाएगा, बल्कि पीड़ित का साथ देगा, तो अपराधों को बहुत हद तक रोका जा सकता है।

समाज को जीवित रखने के लिए आवश्यक है कि हम सब हरेक के प्रति सहानुभूति का भाव रखते हुए अपने अंदर इंसान को जिंदा रखें। क्योंकि, समाज तभी सुरक्षित रहेगा, जब इंसानियत बची रहेगी,  

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