Friday, January 31, 2025

बोर्ड परीक्षा मे बैठने जा रहे छात्रों के लिए दिशा निर्देश

फरवरी माह से लगभग सभी राज्य की बोर्ड परीक्षाएं शुरू होने जा रही है। इस दौरान परीक्षा केंद्र मे जाने से पूर्व छात्रों, खास तौर पर वह छात्र जो कि पहली बार बोर्ड की परीक्षा मे बैठने जा रहे है और उनके अभिभावक के मन मे कई तरह के संदेह रहते है। उनके मन मे डर रहता है कि परीक्षा केंद्र मे जाने से पूर्व या प्रवेश करते समय कौन से डोक्यूमेंट ले जाने जरूरी है। छात्रों के मन मे बैठे डर और संदेह को दूर करने के लिए बोर्ड द्वारा कई तरह के दिशा निर्देश जारी किए गए है। आज हम इस लेख के माध्यम से बताएँगे कि छात्रों को परीक्षा केंद्र मे जाने से पूर्व किस तरह कि सावधानी बरतनी चाहिए और प्रवेश करते समय कौन कौन से डोक्यूमेंट अपने साथ ले जाने आवश्यक है। 

बोर्ड द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड  :-

  • रेगुलर स्टूडेंट्स के लिए - स्कूल यूनिफ़ोर्म 
  • प्राइवेट स्टूडेंट्स के लिए - लाइट कलर के हल्के कपड़े  

बोर्ड परीक्षा में जाने से पूर्व, परीक्षा केंद्र मे प्रवेश करते समय छात्रों को निम्न चीजों को लाने की होगी अनुमति :- 

  • प्रवेश पत्र और स्कूल पहचान पत्र (रेग्यूलर छात्रों के लिए)
  • एडमिट कार्ड और वैलिड आईडी प्रूफ (प्राइवेट छात्रों के लिए)
  • स्टेशनरी आइटम्स, जैसे- ट्रांसपेरेंट पाउच, ज्योमेट्री/पेंसिल बॉक्स, नीला/रॉयल ब्लू इन्क /बॉल प्वाइंट/जेल पेन, स्केल, इरेज़र,
  • एनालॉग घड़ी,
  • पारदर्शी पानी की बोतल
  • मेट्रो कार्ड, बस पास और पैसे 
  • अगर कोई छात्र दिवयांग ( डिसबिलिटी) या मेडिकल अनफ़िट है तो उस छात्र को अपने साथ दिवयांग /अनफ़िट  सर्टिफिकेट को ले जाना आवश्यक है  
परीक्षा केंद्र मे निम्न चीजों को अपने साथ ले जाने मे बैन 
  • कोई भी प्रिंटेड या लिखी हुई पाठ्य सामाग्री 
  • किसी भी तरह की इलेक्ट्रोनिक डिवाइस ( स्मार्ट वॉच, मोबाइल फोन, ब्लुटूथ, ईयरफोन, पेजर इत्यादि) 

नोट :- सीबीएसई ने परीक्षा केंद्र मे शांति पूर्वक परीक्षा आयोजित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए है जिससे की बिना किसी अड़चन के परीक्षा का आयोजन हो सकें। सीबीएसई ने साफ तौर पर कहा है कि नियमों का उल्लंघन करने वालों के बख्सा नहीं जाएगा उनके खिलाफ सख़्त कारवाई करने के अनुदेश जारी किए है । 

भूपेंद्र रावत   

Thursday, January 30, 2025

ये दर्द है की सब कुछ भूला देता है

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ये  दर्द  है  की  सब  कुछ  भूला  देता  है 
जख्मों  को  भी  सीना  सीखा  देता  है
जो  सीख  ले  जीना  इन  पलों  को 
जिंदगी की राह मे वो तबस्सुम  खिला देता है  


तेरे संग मुझे सहारा मिल जाता है 
जैसे सफीने को किनारा मिल जाता है
तुझसे मिलते ही बंज़र जिंदगी  मे  मेरी 
मानो जैसे  गुलिस्तां  खिल  जाता  है 


 
  

Wednesday, January 29, 2025

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा नीति

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा के गिरते हुए स्तर में सुधार लाने के लिए सत्ताधीश सरकार द्वारा समय समय पर कई प्रयास किये गए । शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करने के लिए कई सारी नीतियां लागू की गई । इन नीतियों को लागू करने का मुख्य उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना था। लेकिन आधुनिकता, वैश्वीकरण,पाश्चात्य सभ्यता के इस युग में भारतीय शिक्षा पद्धति,तथा संस्कृति का पतन होता गया । जिसका बुरा असर हमारे आज के समाज पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। अपनी मातृभाषा को त्याग कर विदेशी भाषा को भी भारतीय संविधान में जोड़ दिया गया। मैकाले द्वारा बनाई गई वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने भारतीय समाज की एकता को नष्ट करने तथा वर्णाश्रित कर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने का एक काम किया। मैकाले की शिक्षा पद्धति का मुख्य उद्देश्य भारत देश मे – संस्कृत, फारसी तथा लोक भाषाओं के वर्चस्व को तोड़कर अंग्रेजी का वर्चस्व कायम करना तथा इसके साथ ही सरकार चलाने के लिए देश के युवा अंग्रेजों को तैयार करना था । मैकाले की इस शिक्षा प्रणाली के जरिए वंशानुगत कर्म के प्रति घृणा पैदा करने और परस्पर विद्वेष फैलाने की भी कोशिश की गई थी। इसके अलावा पश्चिमी सभ्यता एवं जीवन पद्धति के प्रति आकर्षण पैदा करना भी मैकाले का लक्षय था। भारत की आजादी के पश्चात भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समय-समय पर सही दिशा देनें के लिए कई प्रयास किए गए । 




विश्वविद्यालयी शिक्षा की अवस्था पर रिपोर्ट देने के लिये डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्य्क्षता में राधाकृष्ण आयोग या विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन भारत सरकार द्वारा नवम्बर 1948-1947 में किया गया था। यह स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग था ।माध्यमिक शिक्षा की स्थिति में सुधार लाने के लिए लक्ष्मण स्वामी मुदालियर की अध्यक्षता में माध्यमिक शिक्षा आयोग,1952-53 का गठन किया गया। इस आयोग का मुख्य उद्देश्य माध्यमिक स्तर की प्राथमिक ,बेसिक तथा उच्च शिक्षा से सम्बन्ध्ति समस्याओ का अध्धयन करस्कूली शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए सुझाव देना था ।

1964-66 डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नयी दिशा देने के उद्देश्य से कोठारी आयोग या राष्ट्रीय शिक्षा नीति का गठन किया गया। इस आयोग में समाज मे हो रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए अपने सुझाव प्रस्तुत किये। यह भारत का पहला ऐसा शिक्षा आयोग था जिसने समय की मांग को ध्यान में रखते हुए स्कूली शिक्षा में लड़कों तथा लड़कियों के लिए एक समान पाठ्यक्रम,व्यवसायिक स्कूल,प्राइमरी कक्षाओं में मातृभाषा में ही शिक्षा तथा माध्यमिक स्तर (सेकेण्डरी लेवेल) पर स्थानीय भाषाओं में शिक्षण को प्रोत्साहन दिया। 

वर्तमान में चल रही शिक्षा, 1986 राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आधारित है। इस शिक्षा नीति में सबके लिए शिक्षा’’ भौतिक और आध्यात्मिक विकास की बुनियादी जरूरत है पर बल दिया गया । इस शिक्षा नीति ने समाज को शिक्षित करने के लिए बिना किसी भेदभाव के शिक्षा में समानता के भाव को उजागर किया । जिससे कि शिक्षा तक सबकी पहुंच संभव हो सके । स्वतन्त्रता के इन 77  वर्षों के अंतर्गत सत्ता में आसीन सरकार द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए कई आयोगों तथा नीतियों का निर्माण किया गया। परन्तु उन नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने में आज तक विफल रही है। शिक्षा की बिगड़ती हुई व्यवस्था उसका एक जीता जागता उदहारण है। सरकार द्वारा शिक्षा की स्थिति या व्यवस्था को सुधारने के लिए जारी किया फंड तथा अनगिनत नीतियां मात्र बन्द आंखों से स्वप्न देखने तक ही सीमित है।

भूपेंद्र रावत 

Tuesday, January 28, 2025

अंधेरे की ओट मे ये जो दिया जलता है

अंधेरे  की  ओट  मे,  ये  जो  दीया जलता  है

दुनिया को रोशन करने की चाह मे खुद को वो छलता है

नजाने  किस  भ्रम  मे  वो  रखता  है  खुद  को 

जल  कर  खुद  कतरा  कतरा  पिघलता  है


  

Monday, January 27, 2025

इंसानियत को परखने के लिए बदन का लिबास नहीं देखा जाता

 घर पर आये मुसाफिर को खाली हाथ नहीं भेजा जाता

सौदों  मे  हर  बार  स्वार्थ  नहीं  देखा  जाता

ज़िंदगी की राह पर मुसाफिर मिल ही जाते है

इंसानियत को परखने के लिए बदन का लिबास नहीं देखा जाता.

घर पर आये मुसाफिर को खाली हाथ नहीं भेजा जाता  सौदों मे हर बार स्वार्थ नहीं देखा जाता
https://draft.blogger.com/blog/post/edit/3204513329264443755/4287435210650540058


Sunday, January 26, 2025

बच्चे का व्यवहार, माता-पिता के व्यवहार का प्रतिबिंब

15 वर्षों के शिक्षण के दौरान, अक्सर मैंने यह अनुभव किया है कि, आजकल के अधिकतर अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों से शिकायत रहती है कि, उनका बच्चा उनकी बातें नहीं सुनता या फिर उन्हें इगनोर कर देता है। अपने से बड़ों के साथ उनका व्यवहार तथा बातचीत का तरीका सही नहीं है, वह दिनभर फोन चलाता रहता है या फिर खाना खाने मे आनाकानी करता है, आदि। इसके अतिरिक्त भी कई तरह के सोच रखने वाले  अभिभावकों से समय समय पर मिलना-जुलना  लगा रहता है और सभी कि राय या फिर शिकायत कहे आदि सुनने को मिलती रहती है। उनके पास बच्चों के व्यवहार से संबन्धित समस्याएँ तो अनगिनत रहती है लेकिन समाधान के नाम पर उनके पास होता है,एक तरह का डोमिनेटिंग बिहेवियर, उनका मानना है कि बच्चों को डांट या शारीरिक दंड इत्यादि से सुधारा जा सकता है। इसके अलावा समाधान के नाम पर अभिभावक अपने बच्चे कि तुलना उसके हम उम्र बच्चों से करने लगते है। वो ऐसा इसलिए करते है, क्योंकि शायद उन्हें लगता है कि इस तरह एक दूसरे से तुलना करके या फिर शारीरिक दंड आदि से  उनका बच्चा सुधार जाएगा या फिर मोटीवेट  होगा। लेकिन आज वर्तमान समय मे देखा गया है कि बच्चों के व्यवहार मे इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहा है। और वह दिन प्रतिदिन पहले से और ज्यादा जिद्दी और अग्रेसिव हो रहे है। लेकिन ऐसे मे अभिभावक कों क्या करना चाहिए कि वह अपने बच्चों के व्यवहार मे सकारात्मक बदलाव ला सके। चलिए अब बात करते है कि कैसे अभिभावक अपने बच्चों के व्यवहार मे सकारात्मक बदलाव लाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, या निभा सकते है।




  • कोरे कागज के समान बच्चा :- हम सबको यह ज्ञात होना चाहिए कि बच्चे कोरे कागज के समान होते है।इसी पर आचार्य आर्जव सागर महाराज ने कहा कि बच्चे कोरे कागज के समान होते हैं। इस पर अच्छे संस्कार लिखें, क्योंकि संस्कार बचपन में ही होते हैं, न कि पचपन में। आचार्य श्री ने कहा कि बचपन में हृदय बड़ा कोमल होता है और कोमल हृदय को अच्छे संस्कारों की ओर सरलता से मोड़ा जा सकता है। 

  • एक बच्चे का व्यवहार अक्सर उनके माता-पिता के व्यवहार के प्रतिबिंब के रूप में कार्य करता है : - बहुत बार पेरेंट्स बच्चों को कुछ कहने से पहले सोचते नहीं और बच्चा समझकर कुछ भी कह देते हैं। ऐसे मे अभिभावकों को बड़ी सतर्कता से बच्चों के समक्ष पेश आना चाहिए।अक्सर एक बच्चा अपने चारों ओर जो देखता है। उसी के अनुरूप वह कार्य करना शुरू कर देता है और धीरे धीरे उसके व्यक्तित्व का निर्माण होने लगता है। 

  • अच्छी आदतों का निर्माण  : - कई अभिभावकों का यह प्रश्न होता है कि वह अपने बच्चों के अंदर अच्छी आदतों का निर्माण कैसे करें। तो सबसे पहले घर मे रह रहे बड़ों को इसकी शुरुआत खुद से करनी होगी।  क्योंकि माँ के पेट से बच्चा कुछ भी सीख कर नहीं आता है। वह अपने आस पास के वातावरण मे जो कुछ भी देखता है या फिर अब्ज़र्व करता है उसके अनुसार वह व्यवहार करना शुरू कर देता है। जैसा कि एक बच्चे को नहीं पता कि फोन का प्रयोग करना उसके लिए उचित है या अनुचित लेकिन वह बचपन से देखता आता है कि घर का हर एक सदस्य दिनभर फोन मे व्यस्त है। ऐसे मे बच्चे के अंदर भी फोन का प्रयोग करने कि जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है। और इस तरह घर मे रहने वाले बड़े लोगों के आदतों को अब्ज़र्व करते हुए उसके अंदर भी फोन चलाने या अनावश्यक प्रयोग करने कि आदत का निर्माण होने लगता है। 

  • दिनचर्या के कार्यों कि समय सीमा को करें निर्धारित :-  कई घरों मे अक्सर समय को लेकर सतर्क नहीं रहते है। उन्हें लगता है कि समय के साथ बच्चा सब कुछ सीख जाएगा लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसके लिए हमें दिनचर्या के हर एक कार्य को लेकर अपने समय निर्धारित करना होता है। जिससे बच्चों को यह पता चल सकें कि किसी कार्य को करने का उचित समय और कितनी समय सीमा कितनी है।    

  • दूसरे बच्चों से तुलना न करें : - कई बार अभिभावक अपने बच्चों कि तुलना दुसरे बच्चों से करने लगते है जो कि बिलकुल भी उचित नहीं है। इससे उनके अंदर आत्मविश्वास कि कमी होने लगती है। उन्हे यह समझना जरूरी है कि विभिन्नताएं हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है और उसे हमे स्वीकार करना चाहिए। जिस तरह हमारे हाथ कि सारी अंगुलियाँ एक समान नहीं होती उसी तरह सभी बच्चे एक समान नहीं होते।  सबके बच्चों के अंदर विभिन्न योग्यताएं विधमान है। और हमारा कर्तव्य है कि हम उनके अंदर छिपी हुई योग्यताओं को पहचान कर उन्हें निखारे। 
इसके अतिरिक्त हमें बच्चों को अवसर देने चाहिए कि वह खुल कर अपनी परेशानी माता-पिता को बता सके तथा वह एक ऐसे माहौल का निर्माण करें कि बच्चा बेझिझक  अपने मन कि बात माता-पिता के सामने रख सकें। तथा बच्चों कि मानसिक,शारीरिक और उम्र आदि कि जरूरतों को  समझकर उचित  मार्गदर्शन देकर उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया जा सकता है। 



भूपेंद्र रावत 

Saturday, January 25, 2025

बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों के बेहतर प्रदर्शन तथा तनाव दूर करने मे अभिभावकों की भूमिका अहम

देशभर के सभी राज्यों मे बोर्ड परीक्षा की शुरुआत होने वाली है। परीक्षा का यह समय छात्रों के साथ अभिभावक और शिक्षक के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। एक ओर जहां छात्रों के ऊपर उत्तीर्ण होने के साथ अच्छे मार्क्स लाने का दबाव होता है, वही दूसरी ओर शिक्षक और अभिभावक के ऊपर यह दबाव रहता है कि उनके छात्र और बच्चे अच्छा प्रदर्शन करें। लेकिन परीक्षा से पूर्व छात्रों के मन मे कई तरह के प्रश्न आते है, जिससे उनका नर्वस होना सवाभाविक है। इसके कारण उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। ऐसी स्थिति में अभिभावक और शिक्षक का दायित्व बनता है कि छात्रों की मानसिक स्थिति को समझकर उचित मार्गदर्शन और काउन्सलिंग  करें। जिससे उनके प्रदर्शन में किसी किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव ना पड़े और वे सकारात्मक सोच के साथ अपनी परीक्षाएं देकर सफल हो।

इसलिए बोर्ड परीक्षा के दौरान होने वाले  तनाव को कम करने और अच्छे प्रदर्शन के लिए हम छात्रों और अभिभावकों के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स सांझा कर रहे है।    



1.   टाइम मैनेजमेंट : - परीक्षा समाप्त होने के बाद अक्सर कई बार छात्र यह कहते है कि  कम समय होने के कारण या फिर लेंथी पेपर होने कि वजह से पेपर पूरा नहीं कर सकें। अक्सर ऐसा टाइम मैनेजमेंट ना होने कि वजह से होता है। क्योंकि कई बार छात्र किसी प्रश्न मे तय समय सीमा से अधिक समय व्यय कर देते है, जिसके कारण टाइम मैनेजमेंट बिगड़ जाता है और इसके कारण छात्रों का परिणाम प्रभावित होता है।  ऐसे मे छात्रों को चाहिए कि वह परीक्षा से पूर्व लिमिटेड शब्दों और समय में आंसर लिखने की प्रैक्टिस करें।  जितना हो सके  बचे हुए समय में रिवीजन के साथ आंसर राइटिंग प्रैक्टिस करें।  रोजाना प्रश्नों के उत्तर को लिखकर प्रैक्टिस करने की आदत डालें. इससे मेन एग्जाम के लिए खुद को अच्छे से तैयार कर पाएंगे। समय और शब्दों की सीमा का ध्यान रखना होगा।  इससे फाइनल एग्जाम में कोई दिक्कत नहीं होगी और आप समय के हिसाब से प्रश्न पत्र हल कर सकेंगे। 

2.   सेंपल पेपर हल करें :-  बोर्ड तथा पब्लिशर द्वारा पब्लिश किए गए विभिन्न विषयों के सेंपल पेपर्स को ठीक उसी तरह सॉल्व/अभ्याष करें, जैसे फाइनल एग्जाम दे रहे हों। इससे आप अपनी हैंड राइटिंग और टाइम मैनेजमेंट का आंकलन कर सकेंगे और समय रहते कमियों को दूर कर पाएंगे। 

3.    ब्लू प्रिंट के आधार पर तैयारी करें :- बोर्ड द्वारा कक्षा 10वीं एवं 12वीं के छात्रों के लिए ब्लू प्रिंट जारी किया जाता है।  उसकी सहायता से एग्जाम की तैयारी करें। बोर्ड द्वारा निर्धारित पेपर का पैटर्न ब्लू प्रिंट के आधार पर ही आता है।  अगर छात्र समझकर इसके अनुसार तैयारी करें तो परीक्षा में उनको आसानी होगी.

4.    टाइम टेबल के अनुरूप  तैयारी :-  सबसे पहले छात्रों के लिए जरूरी है कि परीक्षा के अनुसार टाइम टेबल बनाकर तैयारी करें। सभी विषयों का एक टाइमटेबल बनाकर उसके हिसाब से पढ़ाई करने कि आदत डालिए। क्योंकि टाइम-टेबल के साथ नियमित पढ़ाई करना, सफलता की पहली सीढ़ी मानी गई है। टाइम टेबल बनाते वक्त हर सब्जेक्ट के लिए अपनी सुविधा अनुसार टाइम जरूर फिक्स करें।  

5.   हेल्दी खाना  :- छात्रों को स्टडी के साथ खानपान हेल्दी रखने की भी सलाह दी जाती है। जिससे कि वह बीमार ना पड़ें क्योंकि परीक्षा के दौरान बीमार होना छात्रों के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है। ऐसे मे छात्रों को सलाह दी जाती है कि वह जंक फूड का सेवन ना करें उचित मात्र मे पानी पिए मॉर्निंग में फ्रूट्स और रात में स्टडी के साथ हल्का खाने खाएं, ताकि वह फ्रेश महसूस करें और आलस्य से दूर रहें।

6. अपने विचारों तथा भावनाओं को अपने ऊपर हावी ना होने दें :- परीक्षा के दिनों के दौरान हमारे मन में कई तरह के विचार उत्तपन होना या आना एक सावभाविक प्रक्रिया है। लेकिन इस दौरान हमें अपने विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण करके उनको अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है। क्योंकि इससे  हमारा शरीर और दिमाग भी उसके अनुरूप कार्य करना शुरू कर देता है। जिसका प्रभाव हमारी परीक्षा पर पड़ सकता है। 

अभिभावकों का दायित्व

1.   अभिभावकों कों सबसे पहले अपने बच्चों कि योग्यता कों समझना जरूरी है। किसी दूसरे बच्चे से आकलन कर अधिक अंक लाने का अनावश्यक दबाव से छात्रों अंदर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है या पड़ सकता है, और इसके कारण छात्र योग्यता अनुसार उचित प्रदर्शन नहीं कर पाते। परीक्षा के दौरान माता-पिता कों अपने बच्चों कों प्रेरित कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए जिससे कि उन्हे लगे कि उनके माता-पिता उनके साथ है।

2.   परीक्षा के दौरान माता-पिता कों अपने बच्चों के सामने किसी तरह कि नाकारत्मक बातें नहीं करनी चाहिए। माता-पिता कों अपने बच्चों से प्यार से सहज रूप से बातें करनी जरूरी होती है ऐसा ना हो कि उन्हें किसी बात कों समझाने के लिए ऊंची आवाज, डांट कर या फिर ताने मार कर उनसे बातें की जाएं।

3.   परीक्षा के दौरान अभिभावक छात्रों कों परीक्षा केंद्र मे छोडने और लेने जाएं। हम ऐसा इसलिए कह रह है क्योंकि परीक्षा का समय छत्रों के लिए एक कठिन परिस्थिति होती है। ऐसे मे उन्हे अकैडमिक सपोर्ट के साथ इमोश्नल सपोर्ट की भी जरूरत होती है। इस दौरान अभिभावक उनके साथ अपने अनुभव भी आप सांझा कर सकते हैं। 


भूपेंद्र रावत 

Friday, January 24, 2025

उलझा हूँ,जिंदगी की हर एक गुत्थियाँ सुलझाने मे

उलझा हूँ,जिंदगी की हर एक गुत्थियाँ सुलझाने मे 

जब  से  दस्तक   दी   है  दर्द  ने  मेरे  सिराने  मे 


बड़ी   मशक्कत   से   पाला   था   मैंने   एक   भ्रम 

ठोकरों ने बताया ,कोई नहीं होता अपना इस जमाने मे 


दोस्ती इतनी अच्छी भी नहीं कि भूल बैठो खुद को 

दोस्त ही वार करता है,पीछे से जख्म को सहलाने मे 


बेस्वार्थ  प्यार  कि   डोर  से    जुड़ी   हुई है,   माँ 

वरना सवार्थ कि डोर से जुड़ा है, हर रिश्ता जमाने मे


माँ की गोद ने भूला दिया जहाँ के दर्द को 

कोई  जादू  हो  जैसे  माँ  के  सिराने  मे  


भूपेंद्र रावत 

Thursday, January 23, 2025

सफलता.......प्रयासों का अंतिम परिणाम


सफलता चूमती है, 

उनके कदमों को 

जिन्होने किए है, प्रयास 

एक नहीं, दो नहीं 

बल्कि, उस अंतिम पायदान तक 

जहाँ असफलताओं ने 

मान ली हार और 

कांटो से भरे उस सेज़ में 

सजा दिये पुष्प 

कुछ प्रयास करने के पश्चात 

जिन मुसाफिरों ने 

मान ली हार और 

उस परिणाम को ही 

मान लिया, अंतिम परिणाम

उन लोगों के लिए "अ" उपसर्ग ने 

शब्द के साथ जुड़कर 

सफलता का अर्थ 


कर दिया असफलता 

किस्मत के भरोसे 

बैठकर उन लोगों ने 

लगा दिये अपनी 

किस्मत के ताले 

Wednesday, January 22, 2025

एक अज़नबी जो मिल के गया

 एक अज़नबी जो  मिल के   गया

मुरझाया फूल, फिर खिल सा गया


दिल  लगाने की  कला मे माहिर  है, वो

मिला तो, जैसे मिश्री जैसा घुल सा गया



गुलाब  के खिले  हुए काँटों को

उस  राह  मे  मसल  सा  गया


गुजरा जिस राह से वो मुसाफिर 

चश्म - ए - चराग़ जल सा गया


पाकीज़ा पैगाम लेकर आया है,अज़नबी

अपरिचित,चश्म-ओ-चिराग़  बन सा गया


भूपेंद्र रावत

Tuesday, January 21, 2025

बुढ़ापा एक संघर्ष

 कौन रखेगा ख्याल 

बुजुर्ग होते उन लोगों का

जिनकी संतान ने 

अपनी मजबूरी गिना कर 

छोड़ दिया साथ

अपने बुजुर्ग माता पिता का

और छोड़ दिया 

उन्हें, उनके हालातों पर

पाई - पाई जोड़ कर 

जिन्होंने लगा दी थी

अपनी उम्र भर की कमाई

संतानों की परवरिश पर

कर दिये थे, खाली 

अपने सेविंग एकाउंट 

बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की 

कामना हेतू

शायद वो अनभिज्ञ थे, 

इस बात से कि

बुजुर्ग होते ही दूसरी ओर

कर रहा है 

उनका इंतज़ार,"अंधेरा"

जो उन्हें बना देगा मोहताज़


जीवन के इस कडवे सत्य ने

उन्हें परिचित करवाया

उन अन्छुए पहलुओं से

जो उनकी कल्पना से थे परे.

Monday, January 20, 2025

दम तोड़ते रिश्तों की वजह

रिश्ते अक्सर कच्चे धागे की डोर के समान होते है। अगर रिश्तों की नींव कमजोर हो तो वह रिश्ता अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। भारतीय समाज और संस्कृति की इन रिश्तों की कड़ी मे पति और पत्नी का रिश्ता सभी रिश्तों मे से एक पवित्र रिश्ता माना गया है और यह नाजुक कड़ी के समान होता है। लेकिन मानो आज के भारतीय समाज के रिश्तों को पाश्चत्य स्भ्यता की नज़र सी लग गयी हो। आधुनिक और सव्वालंबी, बनने की इस दौड़ मे आज रिश्ते पीछे छूटते जा रहे है और बच रहा है, एक टूटा परिवार लेकिन,जहाँ एक ओर विवाह से पूर्व कई तरह की जानकारी एकत्रित या छान-बिन की जाती है। उसके बावजूद रिश्ते कुछ ही दिनों या वर्षों मे टूट जाते है। लेकिन इतनी सावधानी बरतने के पश्चात भी आखिरकार, ऐसा क्यों हो रहा है? 

रिश्तों को मजबूत बनाने वाली सबसे मजबूत कड़ी का नाम है "विश्वास" और इस विश्वास की कड़ी को कमजोर बनाता है संदेह करने की बीमारी या आदत। किसी रिश्ते के बीच अगर संदेह उत्पन्न हो जाये तो समय के साथ धीरे धीरे वो रिश्ता कमजोर होने लगता है। जिसकी वजह से रिश्ते एक दूसरे मे बोझ बन जाते है। और उन बोझ से लदे हुए रिश्तों को ज्यादा दूर तक ले जाना सबके लिए मुश्किल हो जाता है। जिसकी वजह से रिश्ते टूट जाते है या फिर समाज को दिखाने के लिए मात्र छलावा बन कर रह जाते है। 

इसके अतिरिक्त रिश्तों मे आपसी सहयोग न होना, गलतफ़हमी, धोखा देना, सहनशील न होना तथा आपस मे बाते न करना आदि भी रिश्ता टूटने के अहम कारणों मे से एक होता है। लेकिन इन सब कारणों के बारे मे पता होने के बावजूद भी अक्सर हम इन सभी को अनदेखा कर देते है और सोचते है कि वक़्त के साथ सभी समस्या और परेशानी का हल अपने आप ही हो जाएगी। लेकिन वास्तविक जीवन मे वक़्त के साथ  ये समस्याएं कम होने के बावजूद बढ़ती जाती है। अगर समय रहते उचित कदम उठा लिया जाये तो रिश्तों को टूटने से बचाया जा सकता है। 

रिश्तों की डोर को मजबूत बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है अपने अहं को त्यागना और एक  दूसरे को समझना, स्वीकार करना और हर एक विषय पर खुल कर बाते करना आदि। बातों से ही हमें सारे प्र्श्नो के जवाब मिल सकते है। कई बार हम प्र्श्नो का बिना जवाब जाने अपनी एक अलग  विचारधारा बना लेते है जिससे  हमारे विचार हमारे रिश्तों पर हावी होने लग जाते है और सिसकिया लेते खोखले रिश्ते दम तोड़ देते है जो अपनी मंज़िल तक  पहुँच नहीं पाते।   



भूपेंद्र रावत  

 

Sunday, January 19, 2025

जख्म पर मरहम का लेप लगाने वाले

नहीं मिलता यां कोई गम समेटने के लिए

बैठे रहते है, सब दर्द ए गम बेचने के लिए

जख्म पर मरहम का लेप लगाने वाले 

अक़्सर होते है खरीददार यहाँ उन जख्मों को सींचने के लिए

अपने दर्द की आजमाइश न कर

अपने दर्द की आजमाइश न कर

हालातों की लिए फरमाइश न कर

लूट लेंगे कश्ती तेरे अपने ही

अब अपने दर्द  की और नुमाइश न कर

Saturday, January 18, 2025

तकनीकी युग मे स्वयं को यंत्रो से बचाने के उपाय

आधुनिक युग के यंत्रो ने हमे जिस तरह से अपने अधीन कर लिया है। ऐसी स्थिति मे इन यंत्रो से दूरी बनाए रख पाना अपने आप मे एक चुनौती है। जहां एक ओर यह यंत्र वरदान साबित हुए है वही दूसरी ओर अभिशाप बनकर भी उभरे है। उपकरणों के लंबे समय तक निरंतर प्रयोग करने से यह भी देखा गया है कि इनके प्रभाव हमारे सोचने कि शक्ति और शारीरिक गतिविधियों पर नाकारात्मक पड़े है। आधुनिक तकनीक हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करने के साथ मस्तिष्क के काम करने के तरीके को भी बदल रही है। दिन प्रतिदिन यंत्रो के जरूरत से अधिक प्रयोग ने हमारी अधिगम क्षमता और ध्यान कि शक्ति को भी क्षीण कर दिया है। इन तकनीक के अपने ऊपर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव को जानते हुए भी हम सब इससे अनभिज्ञ है। इन सबके फलस्वरूप हम सब अपनी इन आदतों से छुटकारा तो पाना चाहते है लेकिन अथक प्रयासो के बावजूद भी यंत्रो के अधिक प्रयोगों से छुटकारा पाना हमारे लिए मुश्किल होता जा रहा है।

अक्सर, यह देखा गया है कि, जिस काम मे हमारी रूचि नहीं होती हम वो कार्य करना कदापि पसंद नहीं करते, जिसके कारण हम अपनी बुरी आदतों का त्याग नहीं कर पाने मे असक्षम होते हैं। और हमारी यह कमजोरी या फिर कहे कि खुद को न पहचान पाना ही हमारी बुरी आदतों को न छोड़ पाने मे एक बाधा बन जाता है।
अगर हम अपनी किसी भी बुरी आदत से छुटकारा पाना चाहते है तो सर्वप्रथम हमे खुद का विश्लेषण करना होगा। यहाँ खुद का विश्लेषण करने से अभिप्राय खुद की पसंद और नापसंद से है। आप हमेशा उस कार्य को प्राथमिकता दीजिए जो आपको सबसे अधिक पसंद है जिसको करने से आप कभी बोर महसूस नहीं करते अर्थात आपका समय कब और कैसे बीत गया आपको खुद भी इसका एहसास नहीं होता।
किसी भी तरह कि बुरी आदतों को छोडने कि शुरुआत मे हमारे आस पास का वातावरण व्यवधान तो डालता ही है तथा साथ मे हमारे दिमाग मे अनेक तरह के नाकारात्मक विचार उत्तपन होना भी सावभाविक है, क्योंकि, बदलाव मे हमेशा समय लगता है। जैसे कोई भी कीमती वस्तु जैसी हम चाहते है एक दिन या कुछ क्षण मे बनकर तैयार नहीं होती उसी तरह हमारी आदतें भी एक या दो दिन मे नहीं बनती बल्कि निरंतर, निश्चित समय मे करते रहने से ही अच्छी आदतों का निर्माण होता है।

भूपेंद्र रावत

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