आज के समय में बच्चों का बढ़ता संवेदनशील व्यवहार – कारण और समाधान
आज के परिवेश में बच्चों का अत्यधिक संवेदनशील होना एक गंभीर और सोचने योग्य विषय बन गया है। छोटी-सी बात पर उनका गुस्सा हो जाना, गलत व्यवहार करना, गाली-गलौज करना या हिंसक प्रतिक्रिया देना — ये सब उस उम्र में हो रहा है, जो उनके खेलने-कूदने, सीखने और खुश रहने की उम्र है।
लेकिन ऐसा क्या बदल गया है?
बच्चे तो वही हैं, पर उनके व्यवहार में इतना बड़ा अंतर क्यों?
पुराने समय का वातावरण – एक सीख
- कुछ वर्ष पहले का समय देखें, तो बच्चे अधिकांश समय अपने परिवार के साथ बिताते थे।
- उनके जीवन में प्रतियोगिता कम थी
- सामाजिक संबंध गहरे थे
- परिवार में बातचीत अधिक होती थी
- माता-पिता और बच्चों के बीच भावनात्मक जुड़ाव मजबूत था
बच्चों को प्यार, अनुशासन और सुरक्षा तीनों एक साथ मिलते थे।
आज का बदलता युग – बदलते व्यवहार की जड़
समय ने तेजी से करवट बदली है।
- जीवनशैली बदली
- व्यस्तता बढ़ी
- तकनीक जीवन का केंद्र बन गई
- प्रतियोगिता का दबाव बढ़ गया
- परिवार में साथ बैठकर समय बिताना कम हो गया
नतीजतन, बच्चों के लिए भावनाएँ संभालना, असफलता से निपटना और छोटी बातों को सहन करना कठिन होता जा रहा है।
आज के समय में यदि स्कूल में शिक्षक, कोई पड़ोसी या परिवार का सदस्य उन्हें कुछ समझा दे, तो बच्चों का गुस्सा तुरंत भड़क जाता है। उन्हें सामने वाला व्यक्ति गलत या दुश्मन जैसा लगने लगता है। गुस्से में वे सही–गलत का अंतर भूल जाते हैं और कई बार गलत निर्णय भी ले बैठते हैं।
ज़िम्मेदारी किसकी है?
- यह सवाल आसान नहीं, पर साफ है कि
- बच्चे बदल नहीं रहे, वातावरण बदल रहा है।
- और इस बदलते वातावरण की ज़िम्मेदारी समाज, परिवार और शिक्षा—तीनों की है।
1. परिवार
आज के माता-पिता के पास समय कम है, पर उम्मीदें बहुत ज़्यादा।
बच्चों से बड़े-बड़े लक्ष्य की अपेक्षा तो की जाती है, लेकिन उनके भावनात्मक स्वास्थ्य पर ध्यान कम दिया जाता है।
2. समाज
आधुनिकता के नाम पर जो जीवनशैली बच्चों के सामने आ रही है, वह चमकदार है, पर स्थिर नहीं।
बच्चों को सही रोल मॉडल मिलना कम होता जा रहा है।
3. शिक्षा व्यवस्था
शिक्षा केवल किताबों तक सीमित होती जा रही है।
भावनात्मक शिक्षा, नैतिक शिक्षा और जीवन कौशल पर वह ध्यान नहीं मिल रहा, जिसकी आज सबसे अधिक आवश्यकता है।
तो समाधान क्या है?
1. बच्चों को समय दें
वे आपकी बातें सुनेंगे, यदि आप पहले उनकी बातें सुनेंगे।
हर दिन कुछ समय बिना मोबाइल, बिना टीवी—सिर्फ बातचीत में बिताएँ।
2. भावनात्मक शिक्षा को महत्व दें
बच्चों को गुस्सा, दुख, असफलता और तनाव को समझना सिखाएँ।
भावनाओं को दबाने के बजाय व्यक्त करने का सही तरीका बताएँ।
3. तुलना और अनावश्यक दबाव से बचें
हर बच्चा अलग है।
तुलना उसके मन में हीन भावना और गुस्सा दोनों एक साथ पैदा करती है।
4. शिक्षक और अभिभावक दोनों मिलकर काम करें
यदि बच्चा गलत हो, तो घर और स्कूल एक-दूसरे को दोष देने के बजाय समाधान ढूँढें।
बच्चे सिर्फ अनुशासन से नहीं, प्यार और सम्मान से भी सीखते हैं।
5. सकारात्मक वातावरण बनाएं
टीवी, मोबाइल और सोशल मीडिया पर आने वाली हिंसक, नकारात्मक सामग्री बच्चों की सोच को प्रभावित करती है।
उनके आसपास भाषा, व्यवहार और माहौल जितना अच्छा होगा, बच्चे उतने संतुलित बनेंगे।
बच्चों का संवेदनशील होना उनकी गलती नहीं, बल्कि समय की चुनौती है।
वे फूलों की तरह कोमल हैं—उन पर वातावरण का असर बहुत जल्दी होता है।
यदि समाज, परिवार और शिक्षा तीनों मिलकर उन्हें सही दिशा दें,
तो वही बच्चे आगे चलकर समझदार, जिम्मेदार और मजबूत नागरिक बनेंगे।
बच्चों को बदलने से पहले हमें अपने व्यवहार और समय को बदलना होगा।
क्योंकि भविष्य वही है, जो आज हम उन्हें सिखाते हैं।
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