शिक्षक – राष्ट्र की नींव और बदलता दृष्टिकोण
“किसी भी देश की नींव उसके शिक्षक होते हैं।” यह वाक्य केवल कहने भर के लिए नहीं बल्कि एक सच्चाई है। शिक्षक ही वह शक्ति हैं जो मिट्टी को आकार देकर इंसान बनाते हैं और इंसानों से मिलकर राष्ट्र का निर्माण करते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि जिस शिक्षक ने अपने कंधों पर देश का भविष्य सँवारने का जिम्मा उठाया, वही आज अपने भविष्य और अस्तित्व के लिए चिंतित है।
त्याग और संघर्ष की अनदेखी
शिक्षक जीवनभर अपने शिष्यों के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। समय, ऊर्जा, ज्ञान और कभी-कभी अपने सपने तक। लेकिन बदले में उसे मिलता क्या है? सम्मान, जो धीरे-धीरे कम होता जा रहा है; सुविधाएँ, जो अन्य पेशों की तुलना में न के बराबर हैं; और सुरक्षा, जो भविष्य की ओर देखते हुए धुंधली-सी लगती है।
जिम्मेदार कौन?:- इस स्थिति के लिए जिम्मेदारी केवल एक पक्ष पर डालना उचित नहीं होगा।
- बदलता सामाजिक परिवेश – आज की दुनिया में सफलता का पैमाना पैसों और पद से आँका जाने लगा है। ऐसे में शिक्षक का योगदान कमतर आँका जाता है।
- सरकार – नीतियाँ तो बनती हैं, पर शिक्षक को केंद्र में रखकर नहीं। उसका आर्थिक, सामाजिक और मानसिक विकास अक्सर उपेक्षित रह जाता है।
- अभिभावक और समाज – पहले जहाँ शिक्षक को “गुरु देवो भवः” की दृष्टि से देखा जाता था, वहीं अब उसे सिर्फ “सेवा प्रदाता” की तरह माना जाने लगा है।
- शिक्षक स्वयं – कभी-कभी शिक्षक भी अपनी सीमाओं में बंधकर अपने दायित्वों से दूर होते दिखाई देते हैं।
शिक्षा का बदलता स्वरूप
आज शिक्षा का मुख्य उद्देश्य “जिम्मेदार नागरिक” बनाना नहीं बल्कि “सफल कर्मचारी” बनाना भर रह गया है। शिक्षा को मानो एक फैक्ट्री बना दिया गया है, जहाँ से अंक और डिग्रियाँ तो निकल रही हैं, पर मानवीय मूल्य और नैतिकता कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं।
शिक्षक का असली मूल्य
एक डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, वैज्ञानिक या नेता – हर किसी के पीछे एक शिक्षक खड़ा होता है। अगर शिक्षक न हो तो इन पेशों का जन्म ही संभव नहीं। फिर भी सबसे कम सम्मान और सुविधाएँ उसी को क्यों?
आवश्यक बदलाव
- अब समय है कि हम फिर से अपने समाज में शिक्षक की प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित करें।
- सरकार को चाहिए कि शिक्षक को केवल “नौकरी” नहीं, बल्कि “राष्ट्र निर्माता” के रूप में देखें और उसकी स्थिति सुधारें।
- अभिभावकों और समाज को यह समझना होगा कि बच्चों के चरित्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका किसी से कम नहीं है।
- और स्वयं शिक्षक को भी अपने कर्तव्यों और मूल्यों को पुनः जागृत करना होगा, ताकि वह सिर्फ पढ़ाने वाला नहीं बल्कि मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत बन सके।
शिक्षक सिर्फ कक्षा में पढ़ाने वाला व्यक्ति नहीं, बल्कि वह नींव है जिस पर आने वाली पीढ़ियाँ और राष्ट्र खड़ा होता है। अगर नींव कमजोर होगी तो भवन कितना भी भव्य क्यों न बने, टिक नहीं पाएगा। इसलिए शिक्षक के व्यवसाय को जीवंत रखने के लिए आवश्यक है कि हम शिक्षक को उसका सही स्थान और सम्मान दें। और आने वाली पीढ़ी शिक्षण को मजबूरी या टाइम पास की नज़र से ना देख कर, सामाजिक सेवा और रुचि के साथ शिक्षक के पेशे को अपनाए। तभी देश का भविष्य सुरक्षित और उज्ज्वल हो पाएगा।
Very good
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