शिकायत नहीं, समाधान है असली परवरिश
आज के दौर में लगभग हर घर की एक आम कहानी है – बच्चे ठीक से खाना नहीं खाते, पढ़ाई में ध्यान नहीं लगाते और घंटों मोबाइल-फोन या टीवी में व्यस्त रहते हैं। माता-पिता, अपने मन की बात कहने के लिए, कभी दोस्तों से, कभी रिश्तेदारों से और कभी पड़ोसियों से अपने बच्चों की कमियाँ गिनाते रहते हैं।
लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि ऐसा करने से बच्चे पर क्या असर पड़ता होगा?
जब बच्चा बार-बार यह सुनता है कि उसके माता-पिता हर जगह उसकी शिकायत कर रहे हैं, तो उसके दिल और दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि वह केवल “गलत” ही है। धीरे-धीरे वह अपने माता-पिता के प्रति ही नकारात्मक दृष्टिकोण बनाने लगता है। यानी समस्या हल होने की बजाय और गहरी हो जाती है।
असल में, शिकायत करना आसान है लेकिन समाधान खोजना ही सच्ची परवरिश की पहचान है। बच्चे छोटे होते हैं, गलतियाँ करना उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। अभिभावक का काम केवल कमी ढूँढना नहीं बल्कि उन कमियों को दूर करने के लिए सही रास्ता दिखाना है।
समस्या: शिकायत का दुष्चक्र
- आत्मविश्वास की कमी – लगातार आलोचना सुनने से बच्चा अपने आप को अयोग्य मानने लगता है।
- नकारात्मक सोच – उसे लगता है कि वह चाहे कुछ भी करे, माता-पिता संतुष्ट नहीं होंगे।
- दूरी और विद्रोह – बार-बार शिकायत सुनने से बच्चा माता-पिता से दूरी बनाने लगता है और विरोधी व्यवहार करने लगता है।
- समाज के सामने हीन भावना – जब रिश्तेदारों या दोस्तों के बीच उसकी बुराई होती है, तो बच्चा खुद को औरों से कमतर महसूस करता है।
समाधान: शिकायत नहीं, संवाद और सहयोग
- समस्या को समझकर अगर अभिभावक सही दृष्टिकोण अपनाएँ, तो बच्चों का व्यवहार सकारात्मक रूप से बदल सकता है।
- संवाद और सुनना – बच्चे की बात को ध्यान से सुनें, उसकी समस्या जानें। कई बार बच्चे इसलिए चिड़चिड़े या जिद्दी होते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि कोई उन्हें समझता ही नहीं।
- उदाहरण प्रस्तुत करें – अगर माता-पिता ही दिन भर मोबाइल पर रहेंगे, तो बच्चे को रोकना कठिन होगा। खुद अच्छा व्यवहार दिखाकर बच्चों को प्रेरित करें।
- सकारात्मक प्रोत्साहन – केवल गलती पर ध्यान न दें। जब बच्चा अच्छा व्यवहार करता है, तो उसकी प्रशंसा करें।
- समय और साथ – बच्चे के साथ समय बिताएँ, खेलें, पढ़ाई में रुचि दिखाएँ। अभिभावकों का साथ ही बच्चों को सही दिशा देता है।
- अनुशासन का संतुलन – न तो अति सख्ती करें, न ही पूरी छूट दें। प्यार और अनुशासन का संतुलित मेल ही बच्चे के व्यक्तित्व को निखारता है।
बच्चों को सुधारने की मनसा से माता - पिता के द्वारा, जाने अनजाने मे की जाने वाली शिकायत उनमें सुधार करने की जगह उनके मनोबल को गिराती हैं। बच्चों की आदतें सुधारने के लिए माता-पिता को धैर्य, संवाद और सकारात्मक दृष्टिकोण की ज़रूरत है। अभिभावक को समझना चाहिए की शिकायत से नहीं, बल्कि समाधान से ही परिवार खुशहाल बनता है और बच्चे आत्मविश्वास के साथ अपने जीवन की राह पर आगे बढ़ते हैं।
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