Wednesday, August 13, 2025

किशोरावस्था में छात्रों के व्यवहार में बदलाव: कारण, समस्याएँ, समाधान और अभिभावकों का कर्तव्य

 किशोरावस्था में छात्रों के व्यवहार में बदलाव: कारण, समस्याएँ, समाधान और अभिभावकों का कर्तव्य

किशोरावस्था, जिसे टीन एज भी कहा जाता है, जीवन का वह दौर है जब बच्चा धीरे-धीरे वयस्कता की ओर बढ़ रहा होता है। यह उम्र लगभग 13 से 19 वर्ष के बीच मानी जाती है। इस समय शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर कई बड़े बदलाव आते हैं, जो उनके सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीकों को प्रभावित करते हैं। 

किशोरावस्था के दौरान होने वाले ये परिवर्तन अक्सर किशोरों में तनाव और बेचैनी का कारण भी बन सकते हैं। वे अपने शरीर और भावनाओं में हो रहे बदलावों को लेकर चिंतित हो सकते हैं, और अपने साथियों और परिवार के साथ संबंधों में भी बदलाव का अनुभव कर सकते हैं। यह सबके जीवन मे यह एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन माता-पिता और शिक्षकों के लिए यह आवश्यक है कि वे किशोरों को समझें और इस दौरान उनका समर्थन करें. 

1. बदलाव आने के प्रमुख कारण

शारीरिक परिवर्तन:- इस उम्र में हार्मोनल बदलाव तेज़ी से होते हैं। लड़कों में दाढ़ी-मूंछ, भारी आवाज़ और मांसपेशियों का विकास, वहीं लड़कियों में मासिक धर्म की शुरुआत, शरीर के आकार में परिवर्तन और त्वचा संबंधी समस्याएँ दिखाई देती हैं। इन बदलावों से आत्म-छवि (Self-image) को लेकर संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन:- किशोर अपने जीवन में "मैं कौन हूँ" का उत्तर खोजने लगते हैं। वे अपनी पहचान (Identity) बनाने की कोशिश करते हैं। मूड स्विंग्स, भावनात्मक संवेदनशीलता और कभी-कभी चिड़चिड़ापन इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं।

ध्यान भंग होने के कारण:- आज के समय में मोबाइल, सोशल मीडिया, वीडियो गेम और इंटरनेट पढ़ाई से ध्यान हटाने के सबसे बड़े कारण हैं। इसके अलावा दोस्तों का प्रभाव (Peer Pressure) और एक ही तरह की पढ़ाई में रुचि कम होना भी ध्यान भंग करता है।

विचारों में परिवर्तन:- इस उम्र में किशोर अपने विचार बनाने लगते हैं। वे परिवार के नियमों और परंपराओं पर सवाल उठाते हैं, तुलना करते हैं और नए प्रयोग करना चाहते हैं।

2. सामान्य समस्याएँ

  • पढ़ाई में ध्यान की कमी – पढ़ाई की बजाय मनोरंजन या मोबाइल में अधिक समय देना।
  • विद्रोही स्वभाव – माता-पिता और शिक्षकों की सलाह को अनदेखा करना।
  • गलत संगत – नकारात्मक आदतें और जोखिम भरे व्यवहार अपनाना।
  • तनाव और चिंता – भविष्य, परीक्षा, रिश्ते या शारीरिक दिखावे को लेकर चिंता।
  • अकेलापन और अवसाद – परिवार से दूरी और आत्मविश्वास में कमी।

3. संभावित समाधान

सकारात्मक संवाद:- माता-पिता रोज़ाना कुछ समय अपने बच्चे से खुलकर बात करें। उन्हें सुना जाए और बिना तुरंत आलोचना किए उनके विचारों को समझा जाए।

समय प्रबंधन:- पढ़ाई, खेल, मनोरंजन और आराम के लिए एक संतुलित दिनचर्या बनाई जाए। छोटे-छोटे लक्ष्य तय करके उन्हें पूरा करने पर सराहना की जाए।

डिजिटल अनुशासन:- स्क्रीन टाइम पर नियंत्रण रखा जाए। मोबाइल का उपयोग सीमित और निगरानी के साथ हो।

अच्छे आदर्श (Role Models):- घर में बड़े अपने व्यवहार से बच्चों को अनुशासन और सकारात्मक सोच का उदाहरण दें। प्रेरणादायक व्यक्तियों की कहानियाँ साझा करें।

सह-पाठ्यक्रम गतिविधियाँ:- खेल, कला, संगीत और सामाजिक कार्य में भागीदारी से आत्मविश्वास और टीमवर्क की भावना बढ़ती है।

मनोवैज्ञानिक परामर्श:- यदि बच्चा लंबे समय तक उदास, गुस्सैल या नकारात्मक सोच में उलझा हो तो काउंसलर की मदद ली जाए।

4. अभिभावकों का कर्तव्य

  • समझ और धैर्य रखना – बदलाव को विकास का स्वाभाविक हिस्सा मानना।
  • विश्वास का माहौल बनाना – ताकि बच्चा अपने मन की बातें बिना डर के कह सके।
  • निजता का सम्मान – उनकी प्राइवेसी बनाए रखते हुए सही मार्गदर्शन देना।
  • सकारात्मक अनुशासन अपनाना – डांट या सज़ा की बजाय समझदारी से नियम लागू करना।
  • निर्णय लेने का अवसर देना – ताकि उनमें जिम्मेदारी और आत्मनिर्भरता विकसित हो।
  • मूल्य शिक्षा देना – नैतिकता, सहानुभूति और जिम्मेदारी का बोध कराना।

किशोरावस्था को  "तूफान और तनाव की अवस्था" भी कहा जाता है यह जीवन की  संवेदनशील  अवस्था के साथ एक महत्वपूर्ण चरण भी है। यदि इस समय बच्चों को सही मार्गदर्शन, विश्वास और प्यार मिले तो वे आत्मविश्वासी, जिम्मेदार और सकारात्मक सोच वाले वयस्क बन सकते हैं। अभिभावकों का धैर्य, समझ और सहयोग ही इस परिवर्तनशील दौर में उनके सबसे बड़े सहारे होते हैं।


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