टेक्नोलॉजी ने एक ओर जहां हमारे जीवन को सहज, सुलभ और त्वरित बनाया है। वहीं दूसरी ओर यह भी सच है कि यह एक नई मानसिक गुलामी का रूप ले चुकी है। अब सवाल यह उठता है कि क्या हम टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर रहे हैं, या टेक्नोलॉजी हमें चला रही है?
इस लेख के माध्यम से हम उन संकेतों के बारे मे जानेंगे जो हमें बताते है कि, क्या हम मानसिक रूप से टेक्नोलॉजी के शिकार तो नहीं हो रहें है?
- हर 5-10 मिनट में मोबाइल चेक करना।
- सोशल मीडिया पर 'लाइक' और 'कमेंट' के लिए बेचैनी।
- ऑफलाइन रिश्तों में दूरी, अकेलापन और चिड़चिड़ापन।
- एकाग्रता में कमी और मानसिक थकावट।
- नींद की गुणवत्ता में गिरावट।
टेक्नोलॉजी कंपनियाँ द्वारा हमारे ध्यान को आकर्षित करने के लिए कई तरह कि तकनीक का प्रयोग जैसे कि एल्गोरिदम, नोटिफिकेशन और आकर्षक डिजाइन आदि, और यही कारण है कि हम अपने फोन की स्क्रीन बार-बार ऊपर-नीचे करते है। इससे हमारे मस्तिष्क में डोपामिन रिलीज होता है – यह एक "अच्छा महसूस" कराने वाला हार्मोन है। धीरे-धीरे यह आदत, लत में बदल जाती है। हम इसके शिकार हो जाते है।
अगर हम छात्रों के संदर्भ मे बात करें तो टेक्नोलॉजी का जरूरत से ज्यादा उपयोग उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। परंतु इसके समाधान को जानने से पूर्व हमें इसकी जड़ों मे जाकर समस्या को जानना होगा। जिससे कि हम इसका उचित समाधान खोज सकें और छात्रों के मानसिक और शारीरिक विकास को सकारात्मक दिशा की ओर ले जाएं।
समस्या का मूल कारण
- सोशल मीडिया, गेम्स और यूट्यूब की लत
- ऑनलाइन पढ़ाई के बहाने फोन का ज़्यादा उपयोग
- अभिभावकों और शिक्षकों का अनुशासन में ढील
- अकेलापन या मानसिक तनाव
अपनी दिनचर्या मे फोन का उपयोग पूरी तरह से बंद करना संभव तो नहीं है। लेकिन अपनी आदतों मे कुछ बदलाव करके इसे कुछ हद तक नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। अपने जीवन मे अनुशासन और तकनीक के संतुलित उपयोग से विद्यार्थियों को इसकी आदत से दूर करना संभव है। फोन कि इस बुरी लत से छुटकारा पाने के लिए भारत तथा देश-विदेश में कई तरह कि तकनीकें अपनाई जा रही है।
भारत में क्या किया जा सकता है:
1. डिजिटल अनुशासन सिखाना
- बच्चों को डिजिटल टाइम-टेबल में बांधें (जैसे 1 घंटा फोन, बाकी समय पढ़ाई/खेल)
- हर दिन "नो फोन टाइम" रखें – जैसे रात 9 बजे के बाद
2. स्कूल स्तर पर तकनीकी समाधान
- फोन जप्त बॉक्स: कई स्कूल छात्रों के फोन एक बॉक्स में इकट्ठा कर लेते हैं और छुट्टी में वापस करते हैं।
- सॉफ्टवेयर प्रतिबंध: स्कूलों की वाई-फाई पर कुछ ऐप्स और साइटों को ब्लॉक किया जाता है।
3. परिवार की भूमिका
- माता-पिता खुद फोन कम इस्तेमाल करें – आदर्श बनें।
- बच्चों के साथ खेलें, बातें करें, रचनात्मक गतिविधियाँ करें।
दूसरे देशों में अपनाई गई तकनीक और उपाय
फ्रांस
- स्कूलों में फोन पूरी तरह बैन हैं – यहां तक कि ब्रेक टाइम में भी।
- कक्षा के बाहर फोन लॉकर्स लगाए जाते हैं।
चीन
- बच्चों के फोन में ऐसे ऐप लगाए जाते हैं जो एक सीमा के बाद ऑटोमैटिक बंद हो जाते हैं।
- "डिजिटल हेल्थ कोड" और चेहरे की पहचान के ज़रिए फोन उपयोग पर नजर रखी जाती है।
अमेरिका
- कई स्कूलों में "Yondr pouch" नाम की तकनीक: छात्र फोन pouch में रखते हैं जो लॉक हो जाता है, और स्कूल के बाहर ही खोला जा सकता है।
- डिजिटल वेलनेस कोर्स सिखाए जाते हैं।
जापान
- बच्चों को फोन उपयोग का साप्ताहिक रिपोर्ट माता-पिता को भेजा जाता है।
- मोबाइल कंपनियाँ खुद बच्चों के लिए लिमिटेड फीचर्स वाले फोन देती हैं।
मनौवैज्ञानिक उपाय
- बच्चों को समझाएं कि उनकी एकाग्रता, नींद और मानसिक स्वास्थ्य पर फोन का असर पड़ता है।
- उन्हें वैकल्पिक "डोपामिन स्रोत" (जैसे खेल, चित्रकारी, संगीत आदि) उपलब्ध कराएं।
अंत मे हम यह कह सकते है कि टेक्नोलॉजी हम सबके लिए वरदान तो है ही लेकिन बहुत हद तक टेक्नोलॉजी ने हमे कुसंगतियों के दलदल मे फंसा के भी छोड़ दिया है। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि इस नर्क रूपी दलदल से हम किस तरह बाहर आए। जिससे कि हम अपने जीवन को टेक्नोलॉजी की गिरफ्त से बचाने के साथ-साथ, समाज मे लुप्त हो रहे रिश्तो को एक सार्थक अर्थ प्रदान कर सके।
भूपेंद्र रावत
💯 right
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